पाकिस्तान के सिर 'पुरानी बला'

इमरान खान ने कहा था कि तालिबान ने गुलामी की जंजीरें तोड़ दीं

पाकिस्तान के सिर 'पुरानी बला'

तालिबान का पालन-पोषण रावलपिंडी के जनरलों ने ही किया था

पाकिस्तान ने जिन 'दलीलों' का हवाला देकर अफगानिस्तान के पकतिका प्रांत में बरमाल जिले के कुछ हिस्सों पर हवाई हमले किए हैं, उससे उसके सरहदी इलाकों में हालात बिगड़ सकते हैं। चूंकि पाकिस्तान के इन हमलों से तालिबान भड़क गया है, ऐसे में 'रावलपिंडी के जनरल' अपने नागरिकों का ध्यान हटाने के लिए एलओसी पर आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने की कोशिश कर सकते हैं, जैसा कि वे पूर्व में करते रहे हैं। निश्चित रूप से भारतीय सशस्त्र बल इस बिंदु को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा संबंधी इंतजाम और मजबूत कर चुके होंगे। अगस्त 2021 में जब तालिबान अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज हुआ था तो पूरे पाकिस्तान में खुशी की लहर दौड़ गई थी। हर छोटे-बड़े नेता ने यह कहते हुए तालिबान को बधाई दी थी कि इसने अमेरिका को शिकस्त दे दी, क्योंकि उसकी फौज अरबों रुपए के हथियार अफगानिस्तान में छोड़कर चली गई! पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा था कि तालिबान ने गुलामी की जंजीरें तोड़ दीं। उस समय पाकिस्तानी समाचार चैनलों में इस बात को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जा रहे थे कि अब तालिबान के लड़ाके रावलपिंडी का साथ देंगे और एलओसी के रास्ते भारतीय सशस्त्र बलों पर हमले करेंगे! हालांकि हुआ इसका ठीक उलटा। तालिबान ने सत्ता पाते ही पाकिस्तान के साथ लगती सरहद पर गोलीबारी शुरू कर दी थी। वह अब तक पाकिस्तानी फौज के दर्जनों जवानों को धराशायी कर चुका है। पाकिस्तानी नेताओं और कथित बुद्धिजीवियों का यह दावा बुरी तरह फेल हुआ है कि अमेरिकी सेना ने शिकस्त की वजह से हथियारों का भारी जखीरा अफगानिस्तान में छोड़ा था।

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दरअसल अमेरिकी सेना ने ये हथियार एक खास मकसद के लिए छोड़े थे। उसे मालूम था कि उसके जाते ही इन पर तालिबान के लड़ाके कब्जा करेंगे, वे इन्हीं हथियारों से पाकिस्तान पर धावा बोलेंगे। बाद में यही हुआ। अब अफगानिस्तान में हवाई हमलों, जिनमें महिलाओं और बच्चों सहित दर्जनों लोगों की मौतें हुई हैं, के जवाब में पाक-अफगान सीमा पर हमले बढ़ सकते हैं, वहीं पाकिस्तान के अंदरूनी इलाकों में भी आतंकवाद की नई लहर आ सकती है। जो तालिबान लड़ाके आज पाकिस्तान को आंखें दिखा रहे हैं, कभी उनका पालन-पोषण रावलपिंडी के जनरलों ने ही किया था। उनका ख्वाब था कि अफगानिस्तान दुनिया की नजरों में भले ही अलग मुल्क रहे, लेकिन वे उसके साथ अपने 'पांचवें सूबे' की तरह व्यवहार करेंगे। अब नौबत यहां तक आ गई है कि खुद पाकिस्तान का अस्तित्व गंभीर संकट से घिर गया है। रावलपिंडी ने जो विषवृक्ष लगाया था, उसके फल पाकिस्तान के गली-मोहल्लों तक पहुंच रहे हैं। अब उसे इनका 'आनंद' प्राप्त करना चाहिए! पाकिस्तान के विदेश कार्यालय की प्रवक्ता मुमताज जहरा बलोच का यह बयान हास्यास्पद है कि देश को आतंकवादी तत्त्वों से खतरा है। इन प्रवक्ता को चाहिए कि ये जनरल ज़िया-उल हक़ और परवेज़ मुशर्रफ़ के 'कारनामों' का इतिहास पढ़ें। ये दोनों तो तालिबान लड़ाकों को अपना हीरो मानते थे। इनका मंसूबा था कि तालिबान की वाहवाही करते रहेंगे और उसका इस्तेमाल भारत के खिलाफ करेंगे। अब पाकिस्तान को तालिबान से खतरा महसूस हो रहा है! यह क्या बात हुई? रावलपिंडी को चाहिए कि वह इस घटना से सबक ले और दाऊद इब्राहिम, हाफिज सईद, जकीउर्रहमान लखवी एवं मसूद अजहर समेत सभी वांछित आतंकवादियों को नई दिल्ली के हवाले करे। जो आतंकवादी अभी पाकिस्तान के लिए 'आंख के तारे' बने हुए हैं, वे भविष्य में खंजर बनकर उसे ही लहूलुहान करेंगे।

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