बैंक और ग्राहक सेवा
यह कड़वी हकीकत है कि आज कुछ कर्मचारियों की वजह से बैंकों के प्रति ग्राहकों में असंतुष्टि बढ़ती जा रही है
भारत की प्रगति में बैंकों का बहुत बड़ा योगदान है
केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री भागवत के कराड ने बैंकिंग सेवाओं में और सुधार का आह्वान करते हुए बैंकों से ग्राहकों को 'भगवान समझकर काम करने' का जो आग्रह किया है, उसकी आज अत्यधिक प्रासंगिकता है। मंत्री ने बैंक ऑफ महाराष्ट्र (बीओएम) द्वारा आयोजित ‘ग्राहक सम्मेलन’ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उचित ही कहा कि बैंकों को अपनी ग्राहक सेवा में सुधार करना और समस्याओं वाले बिंदुओं को कम करने की दिशा में काम करना चाहिए।
अमेरिका और यूरोप में गहराते बैंकिंग संकट के बीच सरकार को उन बिंदुओं पर खास ध्यान देने की जरूरत है, जिससे हमारे बैंक न केवल उत्कृष्ट ग्राहक सेवा के लिए जाने जाएं, बल्कि वैश्विक स्तर पर अनुकरणीय भी बनें। निस्संदेह भारत की प्रगति में बैंकों का बहुत बड़ा योगदान है। विभिन्न बैंकों के लाखों कर्मचारी कड़ी मेहनत करते हुए महानगरों से लेकर दूर-दराज के गांवों तक वित्तीय सेवाएं पहुंचा रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह डिजिटल भुगतान में तेजी आई है और पूरी दुनिया भारत को आशा भरी दृष्टि से देख रही है, उसके पीछे बैंक कर्मचारियों का भी योगदान है।जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा की थी तो बैंक कर्मचारियों की व्यस्तता बहुत ज्यादा बढ़ गई थी। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से उस फैसले को लागू करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
इन तमाम खूबियों का जिक्र करने के साथ हमें दूसरे पहलू को भी देखने की जरूरत है। भारत में बैंकों, खासतौर से सरकारी बैंकों की कार्य प्रणाली में सुधार की बहुत गुंजाइश है। कहा जाता है कि ग्राहक 'देवता' होता है। यह पंक्ति बैंकिंग पर भी लागू होती है। अगर बैंकों से ग्राहकों का विश्वास डगमगा जाए तो स्थिति सिलिकॉन वैली बैंक और सिग्नेचर बैंक जैसी हो जाती है, इसलिए ग्राहकों की संतुष्टि और विश्वास अनिवार्य है।
यह कड़वी हकीकत है कि आज कुछ कर्मचारियों की वजह से बैंकों के प्रति ग्राहकों में असंतुष्टि बढ़ती जा रही है। पहले ग्राहकों के पास अभिव्यक्ति का सुलभ मंच नहीं था, लेकिन आज सोशल मीडिया पर उनका आक्रोश साफ दिखाई देता है। प्राय: उनकी शिकायत होती है कि कुछ कर्मचारी उनकी बात अनसुनी कर देते हैं, सहयोग नहीं करते और लंच टाइम कहकर टालने की कोशिश करते हैं अथवा एक काउंटर से दूसरे काउंटर पर चक्कर लगवाते रहते हैं।
एक ग्राहक अपनी 'पीड़ा' बयान करते हुए लिखते हैं कि मेरा ... बैंक में अकाउंट था, जहां कुछ कर्मचारियों का व्यवहार शालीन और विनम्र नहीं था। वे 'कल आना, परसों आना, फलां काउंटर पर पूछो' जैसी बातों से चक्कर लगवाते रहते थे। आखिरकार हार-थककर मैंने अकाउंट ही बंद करवा दिया। अब मेरा अकाउंट एक प्राइवेट बैंक में है, जहां मैनेजर भी मुस्कुराकर बात करता है।'
राजस्थान के झुंझुनूं जिले से एक बैंक ग्राहक ने लिखा कि उनके कस्बे की बैंक शाखा में भारी भीड़ उमड़ती थी, जिसमें ज्यादातर किसान होते थे। कुछ बैंक कर्मचारी उनसे बहुत कड़वे लहजे से बात करते थे। भयंकर गर्मी के बावजूद वहां पेयजल की कोई उचित व्यवस्था नहीं थी। एक बार वे अपने किसी मित्र के साथ दक्षिण भारत के चर्चित प्राइवेट बैंक की शाखा में गए। रास्ते में बारिश होने लगी। जब वे बैंक पहुंचे तो पूरी तरह भीग चुके थे। उनकी यह स्थिति देखकर बैंक मैनेजर ने एक टेबल फैन का इंतजाम किया, ताकि उनके कपड़े सूख सकें। उसके बाद उन्हें गरमागरम चाय भी पिलाई। ऐसा सत्कार देखकर उस व्यक्ति ने भी अपना अकाउंट वहां खुलवा लिया।
चीन में रहने वाले एक भारतीय योगगुरु वहां के बैंकों के बारे में जो अनुभव बताते हैं, उसका जिक्र जरूरी है। वे कहते हैं कि जब यहां किसी बैंक में जाते हैं तो कर्मचारी उनके साथ इस तरह व्यवहार करते हैं, जैसे कि वे दुनिया के सबसे धनी और महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हैं। वे हर ग्राहक के साथ ऐसा ही व्यवहार करते हैं। उनका पूरा जोर ग्राहकों को बेहतर से बेहतर सुविधा उपलब्ध कराकर बैंक से जोड़कर रखने पर होता है।
क्या हम ऐसा माहौल भारतीय बैंकों की शाखाओं में उपलब्ध नहीं करवा सकते? निस्संदेह भारतीय बैंकों की सेवाओं की गुणवत्ता में बहुत सकारात्मक परिवर्तन आए हैं। बैंकों के मेहनती और प्रतिभावान कर्मचारियों की बदौलत यह क्षेत्र उल्लेखनीय प्रगति कर रहा है।
अगर इसमें आम ग्राहक को ध्यान में रखते हुए कुछ छोटे-छोटे सुधार और किए जाएं तो यह क्षेत्र आशातीत प्रगति कर सकता है। निस्संदेह भारतीय बैंकों में यह सामर्थ्य मौजूद है। वे पहल करेंगे तो उनके प्रति ग्राहकों का विश्वास और मजबूत होगा। विश्वास का दूसरा नाम ही बैंकिंग है।