घातक प्रवृत्ति

किसी मुख्यमंत्री द्वारा देश की अर्थव्यवस्था के लिए ऐसे बयान देना उचित नहीं है

घातक प्रवृत्ति

हेमंत सोरेन को पूरा अधिकार है कि वे मोदी सरकार की खूब आलोचना करें, उसकी नीतियों पर सवाल उठाएं

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का यह बयान अत्यंत विचित्र है कि बैंकों में पैसा जमा नहीं कराना चाहिए, बल्कि प्लास्टिक की थैली में भरकर जमीन में गाड़ देना चाहिए! आमतौर पर नेतागण किसी चुनावी जनसभा में प्रचार के दौरान भावावेश में आकर एक-दूसरे के लिए कठोर शब्दों का उपयोग तो कर लेते हैं, उसकी भी मर्यादा होनी चाहिए, लेकिन एक मुख्यमंत्री द्वारा देश की अर्थव्यवस्था के लिए ऐसे बयान देना उचित नहीं है। 

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हेमंत सोरेन को पूरा अधिकार है कि वे मोदी सरकार की खूब आलोचना करें, उसकी नीतियों पर सवाल उठाएं। किसी समस्या के समाधान में केंद्र सरकार के प्रयासों में कहां कमी रह गई, उसे उजागर करते हुए खुद समाधान का तरीका बताएं। यह कौनसा समाधान हुआ कि अपना पैसा जमीन में गाड़ दें? 

क्या सोरेन चाहते हैं कि 21वीं सदी का अर्थतंत्र सदियों पुरानी उस प्रणाली पर चलना चाहिए, जब आजकल की तरह समृद्ध बैंकिंग नहीं थी और लोगों के पास जो बचत होती, उसे सोने-चांदी में बदलकर जमीन में गाड़ देते थे; कई परिवारों को तो मालूम ही नहीं होता था कि उनके बड़े-बुजुर्ग कितना 'गुप्तधन' छोड़कर चले गए? हेमंत सोरेन संवैधानिक पद पर हैं। उन्हें बड़ी संख्या में लोग सुनते हैं, अनुकरण करते हैं। उन्हें कोई भी बयान देते समय उसके प्रभाव के बारे में जरूर विचार कर लेना चाहिए। 

कहीं ऐसा न हो कि मुख्यमंत्री महोदय अपनी सियासत चमकाने के लिए बयान देकर चले जाएं, पीछे जनता उन्हें इतना गंभीरता से ले ले कि अपनी कमाई जमीन में गाड़ने लगे! अगर इस दौरान किसी को आर्थिक नुकसान हो जाए तो कौन जिम्मेदार होगा? ऐसे बयान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कैसे लिया जाएगा, खासतौर से चीन और पाकिस्तान जैसे देशों में, जो भारत की छवि बिगाड़ने के लिए हर मौके को लपकने के लिए तैयार बैठे हैं?

इन दिनों सोशल मीडिया पर एक और तस्वीर वायरल हो रही है, जिसमें दावा किया जा रहा है कि यूएई में स्थित भारत के एक सरकारी बैंक के बाहर इसलिए कतार लगी हुई है, क्योंकि उस देश में कार्यरत भारतीय अपनी रकम निकाल रहे हैं, चूंकि उनका बैंकों से भरोसा उठ गया! हालांकि बैंक के बाहर कतार वैसी ही है, जैसे आमतौर पर कुछ ज्यादा ग्राहकों के आने पर होती है। उसमें अफरा-तफरी, धक्का-मुक्की जैसा कोई माहौल नज़र नहीं आ रहा है, लेकिन सोशल मीडिया पर कुछ लोग उसे इस तरह साझा कर रहे हैं, जैसे कि यह बहुत खुशी का लम्हा हो और वे जन्म-जन्म से इसी का इंतजार कर रहे थे! 

सरकार को ऐसी सोशल मीडिया पोस्ट को गंभीरता से लेते हुए उचित कार्रवाई करनी चाहिए। आजकल छोटी-छोटी अफवाहें शेयर बाजार में अरबों रुपए का नुकसान करवा देती हैं। पिछले दिनों ट्विटर द्वारा आनन-फानन में ब्लू टिक बांटे जाने के बाद किस तरह फर्जी अकाउंट बनाकर कंपनियों को भारी-भरकम चूना लगाया गया, वह दुनिया ने देखा था। 

इन दिनों कुछ विदेशी 'रिसर्च' फर्मों, मीडिया समूहों के कारनामे चर्चा में हैं, जो एक खास एजेंडे के तहत काम करते हुए इस बात के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाया जाए, उसे किसी भी तरह दुनिया की शीर्ष पांच अर्थव्यवस्थाओं से बाहर किया जाए। सरकार को जांच करनी चाहिए कि फेसबुक, वॉट्सऐप, यूट्यूब और तमाम सोशल मीडिया वेबसाइटों पर ऐसी सामग्री कहां से आ रही है, जिसे पढ़कर/देखकर लोगों में भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रति अविश्वास पैदा हो सकता है। 

सोशल मीडिया पर ऐसी पोस्ट आग की तरह फैल रही हैं, जिन पर कुछ लोग अत्यंत हर्षित हैं। खुद के देश को नुकसान होते देख खुशी मनाने की यह प्रवृत्ति घातक है। जब मुख्यमंत्री ही अनर्गल बयान देने लग जाएं तो ऐसे लोगों को प्रोत्साहन मिलना स्वाभाविक है।banking

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