सकारात्मक ऊर्जा
'मन की बात' ने ऐसे 'गुमनाम नायकों' को बड़ा मंच दिया है, जो मौन रहकर समाज की बेहतरी के लिए अपना काम करते जा रहे हैं
'मन की बात' का विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में भी अनुवाद किया जाता है
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'मन की बात' कार्यक्रम के 100 एपिसोड पूरे हो गए। जब 3 अक्टूबर, 2014 को इसकी शुरुआत हुई तो कई लोगों ने सवाल उठाए, मजाक भी उड़ाया कि 'मन की बात' नहीं, 'काम की बात' करें!
ऐसी भी चर्चा थी कि अब रेडियो पर गंभीर विषय से संबंधित चीजें कोई नहीं सुनता, चूंकि टीवी और इंटरनेट का दौर आ गया है। हालांकि समय के साथ ये आशंकाएं निराधार साबित हुईं, क्योंकि 'मन की बात' को महानगरों से लेकर दूर-दराज के इलाकों तक खूब सुना जा रहा है। इसमें रेडियो से लेकर इंटरनेट माध्यमों तक की बड़ी भागीदारी है।यूं तो प्रधानमंत्री रोज ही किसी न किसी विषय पर भाषण देते हैं। इस दौरान प्राय: राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप भी चलते रहते हैं, लेकिन 'मन की बात' कार्यक्रम कई मायनों में अनूठा है। इसने देशवासियों को सकारात्मक दृष्टि दी है, नजरिया बदला है। कोरोना काल में जब पूरी दुनिया निराशा के भंवर में फंसी थी और भारत भी गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा था, तब 'मन की बात' ने करोड़ों लोगों का हौसला बढ़ाया, बहुत हिम्मत दी।
उस दौरान प्रधानमंत्री उन 'योद्धाओं' से भी संवाद करते रहे, जो कोरोना महामारी के खिलाफ मैदान में डटकर खड़े थे। प्रधानमंत्री ने उचित ही कहा है कि ‘मन की बात’ भी देशवासियों की अच्छाइयों, सकारात्मकता का एक अनोखा पर्व बन गया है। एक ऐसा पर्व, जो हर महीने आता है, जिसका इंतजार हम सभी को होता है। निस्संदेह इस कार्यक्रम से करोड़ों श्रोता जुड़े हैं, लेकिन करोड़ों लोग ऐसे भी हैं, जो व्यस्तता के कारण ‘मन की बात’ नहीं सुन पाते। वे भी यह जानने के लिए उत्सुक रहते हैं कि प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में किन बातों का उल्लेख किया है।
'मन की बात' ने ऐसे 'गुमनाम नायकों' को बड़ा मंच दिया है, जो मौन रहकर समाज की बेहतरी के लिए अपना काम करते जा रहे हैं। आज जहां सोशल मीडिया पर नकारात्मकता का बोलबाला बढ़ता जा रहा है, तब 'मन की बात' ने ऐसे नायकों को समाज के लिए आदर्श के तौर पर प्रस्तुत किया है, जिनकी कहानी न कभी वायरल होती थी और न सुर्खियों में आती थी। प्रधानमंत्री ने शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वरोजगार, पेयजल, जीवदया आदि से संबंधित कितने ही लोगों का जिक्र कर उनका हौसला बढ़ाया है, जो प्रशंसनीय है।
चूंकि 'मन की बात' के प्रसारण के लिए समय सीमित होता है, जबकि लोगों के संदेश बड़ी संख्या में आते हैं। ऐसे में सबकी कहानी 'मन की बात' का हिस्सा नहीं बन पाती, लेकिन प्रधानमंत्री ने उनके कार्यों का सम्मान करते हुए पत्र भेजकर हौसला बढ़ाया।
कोरोना काल में जब हर कोई अपने खाने-पीने के इंतजाम में जुटा था, तब राजस्थान के कोटा शहर निवासी श्यामवीर सिंह और उनकी बेटी मेजर प्रमिला सिंह अपने संसाधनों से निराश्रित और बीमार श्वानों (डॉग्स) के लिए भोजन, पानी, आवास और चिकित्सा संबंधी आवश्यक प्रबंध कर रहे थे। प्रधानमंत्री ने ऐसे सेवाभावी पिता-पुत्री को पत्र लिखकर शुभकामनाएं दी थीं। इसके बाद देशभर ने उनके कार्यों को जाना और सराहा।
'मन की बात' का विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में भी अनुवाद किया जाता है, जो उचित ही है। जो लोग इन भाषाओं में अधिक सहज हैं, वे प्रधानमंत्री का संदेश आसानी से जान सकेंगे। 'मन की बात' की इन 100 कड़ियों को हिंदी, अंग्रेज़ी समेत क्षेत्रीय भाषाओं में पुस्तक के आकार में प्रकाशित किया जाना चाहिए। इनकी ऑनलाइन पीडीएफ उपलब्ध होनी चाहिए। ये 100 कड़ियां इतिहास में ऐसे दस्तावेज के रूप में दर्ज होने की क्षमता रखती हैं, जिन्होंने देशवासियों को कठिन समय में सकारात्मक ऊर्जा दी थी।