शब्दों की जलेबियां
अमेरिकी विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट तथ्यों से परे है
अमेरिकी अधिकारी 'शब्दों की जलेबियां' न बनाएं
अमेरिकी विदेश मंत्रालय की एक रिपोर्ट, जिसमें यह कहा गया है कि पाकिस्तान ने आतंकवादी गतिविधियों के वित्तपोषण और क्षेत्रीय चरमपंथी नेटवर्क से निपटने की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है, सच्चाई से कोसों दूर है। ऐसा लगता है कि अमेरिकी अधिकारी जानबूझकर पाकिस्तान की करतूतों पर लीपापोती कर रहे हैं। पाक ने ऐसी प्रगति कहां की है? पीओके में आज भी आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर चल रहे हैं। पाकिस्तान का पंजाब प्रांत आतंकवादियों की नर्सरी बना हुआ है। ऐसे में यह कहना कि पाकिस्तान आतंकवादी गतिविधियों को रोकने की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति कर चुका है, अत्यंत हास्यास्पद है। इस रिपोर्ट का उक्त निष्कर्ष स्पष्ट रूप से यह दर्शाता है कि जो बाइडन राष्ट्रपति भवन से विदा लेते हुए पाकिस्तान को अभयदान देकर जा रहे हैं। इस रिपोर्ट से पाकिस्तान का हौसला बढ़ेगा। वह इसे दिखाकर अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से कर्ज ले सकता है, जिसका बहुत बड़ा हिस्सा आतंकवाद को बढ़ावा देने में खर्च हो सकता है। रिपोर्ट के शब्दों से जाहिर होता है कि इसके लेखकों ने कभी भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा और एलओसी देखी ही नहीं होगी। अगर वे वहां मंडराते पाकिस्तानी ड्रोन देखते तो ऐसी रिपोर्ट लिखने से पहले कई बार सोचते। इन ड्रोन से नशीले पदार्थों और हथियारों की तस्करी होती है। भारतीय सुरक्षा बल समय-समय पर इनका 'शिकार' करते रहते हैं। पाकिस्तान एक ओर जहां नशीले पदार्थों से मोटी रकम कमाता है, वहीं हथियारों से आतंकवाद को बढ़ावा देता है। बीएसएफ ने कई बार ऐसे ड्रोन और उसके साथ भेजी गई सामग्री की तस्वीरें पोस्ट की हैं।
इस रिपोर्ट में साल 2023 में धनशोधन और आतंकवादी गतिविधियों के वित्तपोषण संबंधी ताजा राष्ट्रीय जोखिम आकलन (एनआरए) को पूरा करने के लिए पाकिस्तान की तारीफ होना हैरान करता है। क्या यह रिपोर्ट यूं ही तीर-तुक्के से लिखी गई है? आतंकवाद पाकिस्तान का दशकों पुराना 'धंधा' है। इससे संबंधित गतिविधियों के वित्तपोषण से जुड़े सही-सही आंकड़े बाहर आ ही नहीं सकते, क्योंकि इसमें नकद लेन-देन के अलावा नशीले पदार्थों की तस्करी शामिल है। क्या अमेरिकी अधिकारी यह सोचते हैं कि जब हाफिज सईद अपने आतंकवादियों को धन भेजेगा तो डिजिटल पेमेंट करेगा, ताकि उसका सबूत रह जाए? प्राय: यह रकम हवाला के जरिए भेजी जाती है। आईएसआई नकली मुद्रा भी छापती है, जो आतंकवादी गतिविधियों में खपाई जाती है। क्या अमेरिका के पास इसका कोई हिसाब-किताब है? अमेरिकी अधिकारी पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों को मामूली तस्करों के गिरोह की तरह न देखें। उन्हें पाकिस्तान की सरकार, फौज और आईएसआई से भरपूर मदद मिलती है। पाकिस्तानी अधिकारी इस बात को लेकर पूरी सावधानी बरतते हैं कि आतंकवादी संगठनों के वित्तपोषण का सबूत बाकी न रहे। रिपोर्ट में यह स्वीकार किया गया है कि 'पाकिस्तान में ऐसे 41 समूह सक्रिय हैं, जो नकद कूरियर और अवैध धन हस्तांतरण सेवाओं का लाभ उठाते हैं ... अफगानिस्तान के साथ लगती सीमाओं से अवैध वित्तीय प्रवाह हो रहा है।' इसका दूसरा पहलू यह है कि इन समूहों के खिलाफ जो कार्रवाई होती है, वह बिल्कुल दिखावटी होती है। अगर अफगान सीमा की ही बात करें तो वहां से अफीम की तस्करी खूब होती है। कभी-कभार पाकिस्तानी अधिकारी कुछ लोगों को पकड़कर उनसे 'माल' की बरामदगी दिखा देते हैं। जब इसकी तस्वीरें अख़बारों में छपती हैं तो जनता और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों को लगता है कि 'सख्त' कार्रवाई हो रही है। पाकिस्तानी फौज बलोचिस्तान के रास्ते ईरान से पेट्रोल-डीजल की तस्करी भी खूब करवाती है। रोजाना बड़ी तादाद में वाहन ईरान से तेल लेकर आते हैं। क्या उस रकम का इस्तेमाल सामाजिक कल्याण में होता है? अमेरिकी अधिकारियों को अपनी जानकारी दुरुस्त करनी चाहिए। अगर वे सच में आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करना चाहते हैं तो पाकिस्तान की पीठ थपथपाने के बजाय उसे आदेश दें कि वह अपने यहां पल रहे आतंकवादियों का खात्मा करे। यह कैसे संभव है कि कोई देश आतंकवाद का पालन-पोषण करे और उसके खिलाफ 'कार्रवाई' करने के बदले तारीफ भी पाए? यह तो वही बात हुई कि कोई व्यक्ति एक ही समय खूब नशा करे और उससे परहेज भी करे! क्या ऐसा हो सकता है? अमेरिकी अधिकारी 'शब्दों की जलेबियां' न बनाएं।