जाकिर हुसैन के निधन से थम गई तबले की थाप
तबला वादन संसार की एक पाठशाला आज वीरान हो गई्
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ललित गर्ग
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उस्ताद जाकिर हुसैन का जन्म ९ मार्च १९५१ को हुआ, जाकिर हुसैन तबला वादक उस्ताद अल्ला रक्खा के बेटे थे| हुसैन का बचपन मुंबई में ही बीता| १२ साल की उम्र से ही जाकिर हुसैन ने संगीत की दुनिया में अपने तबले की आवाज को बिखेरना शुरू कर दिया था| प्रारंभिक शिक्षा और कॉलेज के बाद हुसैन ने कला के क्षेत्र में अपने आप को स्थापित करना शुरू कर दिया| १९%३ में उनका पहला एलबम लिविंग इन द मैटेरियल वर्ल्ड आया था| उसके बाद तो जैसे जाकिर हुसैन ने ठान लिया कि अपने तबले की आवाज को दुनिया भर में बिखेरेंगे| १९%९ से लेकर अब तक जाकिर हुसैन विभिन्न अंतरराष्ट्रीय समारोहों और एलबमों में अपने तबले का दम दिखाते रहे| जाकिर हुसैन भारत में तो बहुत ही प्रसिद्ध थे साथ ही साथ विश्व के विभिन्न हिस्सों में भी समान रूप से लोकप्रिय थे| वे भारतीय संगीत जगत का एक उज्ज्वल नक्षत्र थे| वे पारम्परिक कौशल, रचनात्मकता एवं संवेदनशीलता से युक्त तबला वादन में कल्पनाशील विस्तार, गहन अलौकिकता और अचूक कलात्मक संयम एवं वैभव के लिये विख्यात थे| वे अपनी कला के अकेले महारथि थे| उन्होंने शास्त्रीय संगीत एवं कला को लोकरंजन का साधन बनाने के लिये क्लिष्टता को दूर कर उसे सुगम बनाया| ईश्वर को आलोकपुंज मानते हुए उससे एकाकार होकर अपनी कला को प्रस्तुति देते हुए हुसैन ऐसा प्रतीत कराते थे, मानो उनका ईश्वर से सीधा साक्षात्कार हो रहा है| यही कारण है कि उनके तबले वादन एवं संगीत साधना से रू-ब-रू होने वाले असंख्य लोग उनकी साधना में गौता लगाते हुए मंत्रमुग्ध हो जाते थे| उनका यह स्थान सर्वोपरि रहा है, जिसे अब कोई पूरा नहीं कर सकता| उनके निधन से तबला वादन संसार की एक पाठशाला आज वीरान हो गई्|
जाकिर हुसैन यूं तो सम्मान एवं पुरस्कारों से ऊपर थे| फिर भी उन्हें १९८८ में जब पद्मश्री का पुरस्कार मिला था तब वह महज ३% वर्ष के थे और इस उम्र में यह पुरस्कार पाने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति भी थे| इसी तरह २००२ में संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें पद्म भूषण का पुरस्कार दिया गया था| २२ मार्च २०२३ को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया| उस्ताद जाकिर हुसैन तबले को हमेशा आम लोगों से जोड़ने की कोशिश करते थे| यही वजह थी कि शास्त्रीय विधा में प्रस्तुतियों के दौरान बीच-बीच में वे अपने तबले से कभी डमरू, कभी शंख तो कभी बारिश की बूंदों जैसी अलग-अलग तरह की ध्वनियां निकालकर सुनाते थे| वे कहते थे कि शिवजी के डमरू से कैलाश पर्वत से जो शब्द निकले थे, वही शब्द लेकर उन्हें ताल की जुबान में बांधा| हम सब तालवादक, तालयोगी या तालसेवक उन्हीं शब्दों को अपने वाद्य पर बजाते हैं्| गणेशजी इन सबके कुलदेव हैं्| उस्ताद जाकिर हुसैन की शख्सियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने महज ११ साल की उम्र में अमेरिका में पहला कॉन्सर्ट किया| यानी तकरीबन ६२ साल तक उनका और तबले का साथ नहीं छूटा| उन्हें उनकी पीढ़ी के सबसे महान तबला वादकों में माना जाता है|
जब तबले का जिक्र आता है तो सबसे बड़े नामों में उस्ताद जाकिर हुसैन का नाम प्रमुखता से लिया जाता है| उन्होंने न सिर्फ अपने पिता उस्ताद अल्ला रक्खा खां की पंजाब घराने (पंजाब बाज) की विरासत को आगे बढ़ाया, बल्कि तबले के शास्त्रीय वादन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ले गए्| उस्ताद को संगीत की दुनिया का सबसे बड़ा ग्रैमी अवॉर्ड १९९२ में ‘द प्लेनेट ड्रम’ और २००९ में ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट’ के लिए मिला| इसके बाद २०२४ में उन्हें तीन अलग-अलग संगीत एलबमों के लिए एकसाथ तीन ग्रैमी मिले| १९७८ में जाकिर हुसैन ने कथक नृत्यांगना एंटोनिया मिनीकोला से शादी की थी| उनकी दो बेटियां हैं, अनीसा कुरैशी और इसाबेला कुरैशी| अनीसा ने यूसीएलए से स्नातक किया है और वह एक फिल्म निर्माता हैं्| १९८३ में जाकिर हुसैन ने फिल्म ‘हीट एंड डस्ट’ से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा| इसके बाद १९८८ में ‘द परफेक्ट मर्डर’, १९९२ में ‘मिस बैटीज चिल्डर्स’ और १९९८ में ‘साज’ फिल्म में भी उन्होंने अभिनय किया|
हुसैन का तबला वादन का सृजन एवं संगीत मनोरंजन एवं व्यावसायिकता के साथ आध्यात्मिकता एवं सृजनात्मकता का आभामंडल निर्मित करने वाला है| उनके भारतीय शास्त्रीय संगीत की साधना एवं तबला वादन का उद्देश्य आत्माभिव्यक्ति, प्रशंसा या किसी को प्रभावित करना नहीं, अपितु स्वान्तः सुखाय, पर-कल्याण एवं ईश्वर भक्ति की भावना है| इसी कारण उनका शास्त्रीय संगीत, एवं तबला वादन स्वरों की साधना सीमा को लांघकर असीम की ओर गति करती हुई दृष्टिगोचर होती है| उनका उनका तबला वादन हृदयग्राही एवं प्रेरक है क्योंकि वह सहज एवं हर इंसान को आत्ममुग्ध करने, झकझोरने एवं आनन्द-विभोर करने में सक्षम है| भगवान शिव की जीवंतता को साकार करने वाला यह महान् कलाकार सदियों तक अपनी शास्त्रीय-संगीत साधना एवं तबला वादन के बल पर हिन्दुस्तान की जनता पर अपनी अमिट छाप कायम रखेगा| ९० के दशक में ताजमहल चाय के वाह ताज’ विज्ञापन ने उन्हें हर घर में पहचान दिलाई्| इस विज्ञापन में चाय की चुस्की लेते हुए उनकी तबला जुगलबंदी के दौरान बोली गई वाह ताज ने ताजमहल चाय को आम लोगों में फेमस कर दिया था|
जाकिर हुसैन के तबला वादन की तासीर ही है कि उन्हें सुनते एवं देखते हुए कोई शख्स तनावों की भीड़ में शांति महसूस करता तो किसी के अशांत मन के लिये वह समाधि का नाद होता है| उनका संगीत एवं तबला वादन चंचल चित्त के लिये एकाग्रता की प्रेरणा होता तो संघर्ष के क्षणों में संतुलन का उपदेश्| वह एक दिव्य एवं विलक्षण चेतना थी जो स्वयं संगीत एवं तबला वादन में जागृत रहती और असंख्य श्रोताओं के भीतर ज्योति जलाने का प्रयास करती| हर जगह यह बेजोड़ तबला वादक शास्त्रीयता की राह पर चलते हुए भक्ति का एक लोकपथ सृजित करता था, धरती से ब्रह्माण्ड तक, संगीतप्रेमियों से वैज्ञानिकों तक, राजनीतिज्ञों से साधकों तक सबकी नजरें इस अलौकिक एवं विलक्षण तबला वादक पर लगी रहती थी| आधुनिक संदर्भांे में शास्त्रीय तबला के मूर्धन्य एवं सिद्ध उपासकों की कड़ी में जाकिर हुसैन का देवलोकगमन होना एक महान संगीत एवं तबला परंपरा में गहरी रिक्तता एवं एक बड़े खालीपन का सबब है| भले ही मृत्यु उन्हें छिपा ले और महत्तर मौन उन्हें घेर ले, फिर भी उनके स्वर, तबला वादन एवं संगीत का नाद इस धरती को सुकोमलता का अहसास कराता रहेगा|