सुरक्षा में बड़ी चूक
अगर इनकी हरकतों की सूचना के बाद सुरक्षाकर्मी कठोर कार्रवाई कर देते तो क्या होता?
यह संसद भवन की सुरक्षा में स्पष्ट रूप से बड़ी चूक है
लोकसभा की दर्शकदीर्घा से दो लोगों के कूदकर हुड़दंग मचाने की घटना हैरान करने वाली है। साथ ही इससे कई सवाल भी खड़े होते हैं। ये लोग यहां तक पहुंचने में कैसे कामयाब हुए? इनमें से एक शख्स ने अपने जूते से पीले रंग का गैस स्प्रे निकालकर उसका इस्तेमाल भी किया, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है? क्या सुरक्षाकर्मियों ने पहले इस ओर ध्यान नहीं दिया था? जो व्यक्ति जूतों में छिपाकर गैस स्प्रे ले जा सकता है, वह कोई घातक चीज भी लेकर जा सकता था!
यह संसद भवन की सुरक्षा में स्पष्ट रूप से बड़ी चूक है। 'मनोरंजन' और 'सागर' नामक इन व्यक्तियों का क्या इरादा था? क्या इन्होंने महज प्रचार पाने के लिए ऐसा हथकंडा अपनाया, वह भी ऐसे दिन, जब 22 साल पहले (पुराने) संसद भवन पर आतंकवादियों ने हमला किया था? जब इन्होंने दर्शकदीर्घा तक पहुंचने और वहां से कूदने की योजना बनाई होगी, तो इन्हें इतनी जानकारी जरूर रही होगी कि संसद भवन में सुरक्षाकर्मी अत्याधुनिक हथियारों से लैस होते हैं।अगर इनकी हरकतों की सूचना के बाद सुरक्षाकर्मी कठोर कार्रवाई कर देते तो क्या होता? ये लोग जान से हाथ धो बैठते! सरकार की नीतियों का विरोध करना नागरिकों का हक है, लेकिन उसका एक जायज तरीका होता है। उसके लिए विभिन्न माध्यमों से आवाज उठाई जा सकती है, धरने दिए जा सकते हैं, विरोध-प्रदर्शन किए जा सकते हैं।
देश में रोज़ाना कहीं-न-कहीं ऐसे प्रदर्शन होते रहते हैं, लेकिन इस बात की किसी को भी इजाजत नहीं दी जा सकती कि वह संसद भवन में जाकर उत्पात मचाए। यह लोकतंत्र का मंदिर है। इसकी एक मर्यादा है। यह कोई हुल्लड़बाजी का अखाड़ा नहीं है। भारतवासियों ने विदेशी गुलामी से मुक्ति पाकर संसद तक पहुंचने के लिए कई बलिदान दिए हैं। यहां प्रवेश कर ओछी हरकतों को अंजाम देना उन बलिदानों का भी अपमान है।
एक ओर जहां लोकसभा में यह घटना हो रही थी, वहीं दूसरी ओर एक पुरुष और उसकी महिला साथी संसद भवन के बाहर वैसी ही सामग्री से पीले और लाल रंग का धुआं छोड़ते हुए विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे। यह कैसा संयोग है? शुरुआत में यही दावा किया गया कि उनका किसी संगठन से कोई संबंध नहीं है, लेकिन देर-सबेर हकीकत सामने आ ही जाएगी। बिना किसी योजना और तालमेल के इतनी बड़ी घटना का होना किसी के गले नहीं उतरता।
संसद भवन, जहां गंभीर विषय उठाए जाते हैं, उन पर बहसें होती हैं, कानून बनाए जाते हैं, जिनके एक-एक बिंदु से देशवासियों का भविष्य जुड़ा होता है, उसकी सुरक्षा में इतनी बड़ी चूक कैसे हो सकती है, जबकि इस भवन में प्रवेश से पहले कई बार जांच से गुजरना पड़ता है? अगर कोई जनरल विजिटर पास लेना चाहे तो उसके लिए पहले आवेदन करना पड़ता है। फिर उसकी पृष्ठभूमि की जांच होती है। जब वह व्यक्ति परिसर में प्रवेश करता है तो सुरक्षाकर्मियों के अलावा स्कैनरों और आधुनिक उपकरणों की जांच से गुजरना पड़ता है। वहां मौजूद कर्मचारी उस व्यक्ति की जांच को लेकर संतुष्ट हो जाते हैं, तभी वह आगे जा सकता है।
यह कहना गलत नहीं होगा कि ये दोनों लोग कहीं-न-कहीं सुरक्षा व्यवस्था को चकमा देने में कामयाब हो गए, अन्यथा ऐसी उद्दंडता नहीं कर पाते। इस घटनाक्रम की संपूर्ण जांच होनी चाहिए और भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति न हो, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए। संसद भवन के अलावा राज्यों की विधानसभाओं की सुरक्षा भी मजबूत की जाए। जहां जरूरी हो, आगंतुकों के लिए नियमों में संशोधन किया जाए।
प्राय: खुराफाती और उपद्रवी तत्त्वों में यह प्रवृत्ति होती है कि वे ऐसी घटनाओं से प्रभावित होकर खुद भी इन्हें कहीं दोहराने की कोशिश करते हैं। दिसंबर 2008 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश पर इराक के एक शख्स ने जूता फेंका था। उसके बाद 'जूताकांड' की लहर-सी आ गई थी। दुनियाभर में कई नेताओं पर जूते फेंकने की घटनाएं हुई थीं। भविष्य में गैस स्प्रे आदि खरीदने के नियम कड़े किए जाएं। विरोध-प्रदर्शन करने के लोकतांत्रिक तरीकों को प्रोत्साहित किया जाए।