अब रामराज्य आए

आम जनता को दिखना और महसूस होना चाहिए कि भारत में रामराज्य की स्थापना हो रही है

अब रामराज्य आए

शिक्षित, स्वस्थ, समृद्ध, सशक्त और खुशहाल भारत बनाने के संकल्प के साथ आगे बढ़ते जाना है

प्रभु श्रीराम अयोध्या में अपने दिव्य धाम में विधिपूर्वक विराजमान हो गए। पूरे देश ने प्राण-प्रतिष्ठा समारोह का उत्सव मनाया, जिसकी गूंज दुनिया के कोने-कोने तक सुनाई दे रही है। जिन लोगों ने प्रत्यक्ष या टीवी/मोबाइल फोन पर इस कार्यक्रम को देखा, वे ऐतिहासिक क्षणों के साक्षी हो गए हैं। वर्षों, दशकों, सदियों और युगों-युगों तक इस कार्यक्रम की चर्चा होती रहेगी।

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प्रभु श्रीराम तो आ गए हैं, अब रामराज्य भी आना चाहिए। भगवान ने शासन-व्यवस्था के जो सिद्धांत दिए थे, उन्हें लागू करना चाहिए। आम जनता को दिखना और महसूस होना चाहिए कि भारत में रामराज्य की स्थापना हो रही है। इसी सिलसिले में देश को कई बड़े सुधारों की ज़रूरत है। प्रशासन में सुधार हो, पुलिस व्यवस्था में सुधार हो, शिक्षा सबके लिए सुलभ हो और वह अच्छे नागरिक बनाने के साथ ही रोजगार देना भी सुनिश्चित करे, उत्कृष्ट व निःशुल्क चिकित्सा सुविधाएं हों, बिजली-पानी जैसी सुविधाएं सबको मिलें, सरकारी दफ्तरों में जनता का आसानी से काम हो, अनावश्यक चक्कर लगवाना बंद हो, अपराधों पर सख्ती से लगाम लगे ... जनता का व्यवस्था में विश्वास दृढ़ हो।

प्रभु श्रीराम ने तत्कालीन युग की नकारात्मक शक्तियों के आतंकवाद को नष्ट किया था। कलियुग में आतंकवाद रूप बदलकर आ गया है। भारत को पुनः उसी ‘रामनीति’ का अनुसरण करते हुए आतंकवाद का समूल नाश करना होगा। प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त महावीर हनुमान ने लंका में घुसकर न केवल सूचनाएं इकट्ठी की थीं, बल्कि जोरदार ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ भी की थी।

आतंकवाद के खात्मे के लिए भारत को उसी तर्ज पर अपना खुफिया नेटवर्क और मजबूत बनाना होगा तथा ज़रूरत पड़ने पर वही दोहराना होगा, जो हनुमानजी ने लंका में कर दिखाया था। भगवान की प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा के अनुष्ठान के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में एक बहुत खास बात कही थी, जिस पर हमें चिंतन, मनन करना चाहिए- ‘मैं आज प्रभु श्रीराम से क्षमा याचना भी करता हूं। हमारे पुरुषार्थ, त्याग और तपस्या में कुछ तो कमी रह गई होगी कि हम इतनी सदियों तक यह कार्य नहीं कर पाए।’

हमें अपने इतिहास को भूलना नहीं है। हमें उन बिंदुओं का पता लगाना है, जिनके कारण विदेशी आक्रांता हमारे ‘शासक’ बन बैठे थे, जिन्होंने शक्ति व सत्ता के अहंकार में हमारी आस्था को ठेस पहुंचाई थी। निश्चित रूप से हमसे ग़लतियां हुई थीं, जिसके बाद हम पराधीन हुए थे। विडंबना ही थी कि लूट-मार का मंसूबा लेकर निकले विदेशी गिरोह यहां काबिज हुए! उन्होंने हमारी कमियों का फायदा उठाया। अब हमें एकजुट रहना है, सशक्त रहना है।

याद रखें, प्रभु श्रीराम तपस्वी के वेश में वन में गए थे, लेकिन उन्होंने अपने अस्त्र-शस्त्र नहीं छोड़े थे। भारत की साख और धाक के लिए ज़रूरी है कि हमारी सेनाओं के पास अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्र हों। इसके लिए आयात नहीं, बल्कि स्वदेश में उद्योग विकसित करने होंगे। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ड्रोन, लड़ाकू विमान, हेलीकॉप्टर, टैंक, बंदूकें, कवच ... सबकुछ स्वदेशी हों, उन्नत श्रेणी के हों। भारत को समृद्ध बनाना है, ताकि देशवासियों के जीवन में संसाधनों का कोई अभाव न रहे। हर हाथ को काम मिले, हर पेट को रोटी मिले।

याद रखें, अब हमें ‘सोने की चिड़िया’ नहीं बनना है, क्योंकि ऐसी चिड़िया को लुटेरों, शिकारियों से हमेशा खतरा रहेगा। हमें ‘विश्वगुरु’ बनना है। ऐसा गुरु, जिसके एक हाथ में पुस्तक और दूसरे हाथ में छड़ी हो। पुस्तक के ज्ञान से विश्व का कल्याण करना है। छड़ी उद्दंड और उत्पाती (चीन, पाक जैसे) तत्त्वों के लिए है। आज ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था के युग में नवाचार को बढ़ावा देने की ज़रूरत है। युवाओं को इतना योग्य बनाना होगा कि वे नौकरी मांगने वाले नहीं, बल्कि नौकरी देने वाले बनें।

प्रभु श्रीराम ने वंचितों को हृदय से लगाया था। उन्होंने माता शबरी के जूठे बेर खाए थे। भगवान ने तत्कालीन समाज में व्याप्त कई तरह के भेदभावों को नकार कर सबके लिए उद्धार का मार्ग खोला था। आज हमें भी भेदभावों को मिटाना है। समाज में समानता और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना है। यह काम हो भी रहा है। शिक्षित, स्वस्थ, समृद्ध, सशक्त और खुशहाल भारत बनाने के संकल्प के साथ आगे बढ़ते जाना है।  

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