कितने अतुल सुभाष?
पुरुषों के अधिकारों के भी संरक्षण की जरूरत है
सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए
इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या के मामले ने देशवासियों को झोकझोर दिया है। उनका वीडियो देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। बहुत मजबूत दिल का व्यक्ति ही उसे पूरा देख सकता है। अतुल बहुत प्रतिभाशाली युवक थे। अगर वे जीवित रहते तो भविष्य में खूब उन्नति करते। उनका वैवाहिक जीवन कड़वाहट भरा रहा, जो मुकदमेबाजी में बदल गया। आखिरकार उन्होंने दुनिया को ही अलविदा कह दिया! यह अत्यंत दु:खद है, दुर्भाग्यपूर्ण है। अत्याचार किसी के साथ भी नहीं होना चाहिए। इस मामले ने दिखा दिया कि भारतीय समाज गंभीर समस्याओं का सामना कर रहा है। अगर सरकार और समाज ने समय रहते समाधान नहीं ढूंढ़ा तो भविष्य में ये समस्याएं और ज्यादा गंभीर हो सकती हैं। आज पश्चिम के कई देशों में विवाह से युवाओं का भरोसा उठ गया है। वहां परिवार टूट रहे हैं। हालांकि उधर इसकी वजह थोड़ी अलग हैं, लेकिन सामाजिक ताना-बाना तो बिखर रहा है। क्या हम भारत में यही चाहते हैं? व्यक्ति, परिवार और समाज से देश बनता है। अगर इनमें ही गड़बड़ पैदा हो गई तो देश का भविष्य क्या होगा? इस धारणा को बदलने की जरूरत है कि 'मर्द को दर्द' नहीं होता। क्यों नहीं होता? क्या वह इन्सान नहीं है? दर्द सिर्फ निर्जीव पदार्थों को नहीं होता। उनके अलावा सबको होता है। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि हमारे देश में महिलाओं पर अत्याचार की कई घटनाएं हुई हैं, हो रही हैं। उन्हें इन्साफ जरूर मिलना चाहिए। इसके साथ हमें दूसरे पहलू को देखना होगा। भारत में पुरुषों पर भी अत्याचार की घटनाएं हो रही हैं। बेशक वे उतनी नहीं हैं, जितनी महिलाओं के साथ होती हैं, लेकिन इस बुनियाद पर यह तो नहीं कहा जा सकता कि पुरुषों पर अत्याचार होता ही नहीं है और उनके अधिकारों के संरक्षण की कोई जरूरत नहीं है!
महिला हो या पुरुष, सबके जीवन और सम्मान की सुरक्षा होनी चाहिए, सबके साथ गरिमापूर्ण व्यवहार होना चाहिए। किसी को सशक्त बनाने का यह मतलब नहीं होना चाहिए कि दूसरे को कमजोर कर दिया जाए। भारत में दहेज मांगने की कुप्रथा रही है। यह किसी-न-किसी रूप में आज भी चल रही है। सत्तर-अस्सी के दशक में तो इसने बहुत विकराल रूप धारण कर लिया था। बाद में फिल्मों, सामाजिक जागरूकता और कानूनी प्रावधानों के कारण दहेजलोभियों की अकड़ ढीली हुई। अब महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति बहुत जागरूक हैं, होनी भी चाहिएं। जब उन्हें दहेज के लिए सताया जाता है तो वे अदालतों में जाती हैं और इन्साफ पाती हैं। वहीं, हम इस हकीकत से इन्कार नहीं कर सकते कि कुछ मामलों में दहेज विरोधी कानून का दुरुपयोग हुआ है। उच्चतम न्यायालय कह चुका है कि 'दहेज उत्पीड़न के मामलों में अदालतों को कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए और पति के सगे-संबंधियों को फंसाने की प्रवृत्ति को देखते हुए निर्दोष परिवार के सदस्यों को अनावश्यक परेशानी से बचाना चाहिए।' न्यायालय ने सत्य कहा है कि 'हाल के वर्षों में देशभर में वैवाहिक विवादों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। साथ ही विवाह संस्था के भीतर कलह और तनाव भी बढ़ रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप, आईपीसी की धारा 498ए (पत्नी के खिलाफ पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता) जैसे प्रावधानों का दुरुपयोग करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, ताकि पत्नी द्वारा पति और उसके परिवार के खिलाफ व्यक्तिगत प्रतिशोध को बढ़ावा दिया जा सके।’ ऐसी घटनाएं समाज के लिए शुभ नहीं हैं। भविष्य में किसी के साथ वह न हो, जो अतुल सुभाष के साथ हुआ। सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए। इस मुद्दे को लेकर चर्चा होनी चाहिए।