मजबूत मनोबल
यह प्रबल आशावाद का एक उत्कृष्ट उदाहरण है
आज युवाओं में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति अत्यंत चिंता का विषय है
कतर की जेल से रिहा होने के बाद भारत के आठ पूर्व नौसेना कर्मियों ने जो अनुभव साझा किए, उनसे यह भी संदेश मिलता है कि कठिन समय में खुद को कैसे संभालें और कैसे मजबूत रहें। यह प्रबल आशावाद का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। ये पूर्व कर्मी कतर की जिस जेल में कैद थे, वहां काफी सख्ती थी और सुरक्षा के कड़े इंतजाम थे। इनके मन में अपने जीवन को लेकर कई सवाल उमड़ रहे थे, लेकिन साथ ही यह विश्वास भी था कि एक दिन ऐसा आएगा, जब वे इस कैदखाने से निकलेंगे और अपने परिवारों से मिलेंगे। इस जेल से रिहा होकर आए एक पूर्व नौसैनिक रागेश गोपाकुमार ने जो कहा, वह उल्लेखनीय है- ‘मैं और मेरे सहयोगी, रक्षा बलों के प्रशिक्षण के कारण जीवित बच पाए।’ उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों की भी प्रशंसा की। कठिन समय को खुद पर हावी न होने देना और सकारात्मक नजरिया रखना - ये दो ऐसे बिंदु हैं, जो बड़ी चुनौतियों से पार पाने में बेहद असरदार साबित हो सकते हैं। पिछले साल नवंबर में उत्तराखंड की सिलक्यारा सुरंग में एक पखवाड़े से ज्यादा समय तक फंसे रहने के बाद श्रमिकों को सकुशल बाहर निकाल लिया गया था। उस अभियान में प्रशासन की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही, लेकिन अंदर फंसे श्रमिकों ने खुद को अलग-अलग तरीके से ऊर्जावान बनाकर रखा था।
मुश्किल हालात में मजबूत बने रहना एक विज्ञान और कला है, जिसका कुछ ज्ञान युवाओं को जरूर होना चाहिए। आज युवाओं में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति अत्यंत चिंता का विषय है। परीक्षा में कम नंबर आने, प्रवेश परीक्षा में आशाजनक प्रदर्शन न कर पाने, नौकरी की परीक्षा में सफलता से वंचित होने, इंटरव्यू में निकाल दिए जाने ... जैसे कई कारण हैं, जिनके आगे कुछ युवा हार मान जाते हैं। राजस्थान के कोटा शहर से प्रायः हर महीने ऐसा दुःखद समाचार मिलता है, जिसमें मेडिकल या इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की तैयारी से जुड़े विद्यार्थी द्वारा ग़लत कदम उठा लिए जाने का उल्लेख होता है। निस्संदेह युवाओं से उनकी ‘जीत’ की उम्मीद रखनी चाहिए, लेकिन उन्हें मुश्किल हालात का मजबूती से सामना करने की सीख भी देनी चाहिए। उन्हें प्रतिकूल परिणाम पर सकारात्मक तरीके से प्रतिक्रिया देने के लिए तैयार करना चाहिए। कतर समेत उस क्षेत्र में स्थित सभी देशों के कानून बहुत सख्त हैं। वहां एक बार किसी के लिए मृत्युदंड की घोषणा हो जाए तो उसका ज़िंदा लौटना किसी चमत्कार से कम नहीं माना जा सकता। जब उन आठ पूर्व कर्मियों पर कथित आरोप लगाकर उन्हें जेल भेजा गया तो वे किताबों, योग, ध्यान, प्रार्थनाओं आदि से खुद के इस विश्वास को मजबूत बनाने में लगे रहे कि वे निर्दोष हैं और एक दिन इस जेल से सकुशल रिहा होने में कामयाब होंगे। निस्संदेह इसके साथ-साथ भारत सरकार के प्रयासों की बड़ी भूमिका रही, लेकिन संबंधित पूर्व कर्मियों ने यह साबित कर दिया कि अगर मनोबल को मजबूत रखा जाए तो हालात से लड़ना आसान हो जाता है। स्कूली बच्चों को शुरू से ही ऐसे लोगों के बारे में पढ़ाया जाए, जिन्होंने बेहद मुश्किल हालात होने के बावजूद हार नहीं मानी। स्कूलों की प्रार्थना-सभाओं में ऐसे लोगों के बारे में बताया जा सकता है। जो बच्चे परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन करें, उन्हें पुरस्कृत करें, लेकिन जो बच्चे किसी कारणवश उतने अंक नहीं प्राप्त कर पाए, उन्हें भी प्रोत्साहित किया जाए और बताया जाए कि आप प्रतिभाशाली हैं। उन्हें अगली बार अच्छे अंक लाने के लिए बढ़िया तैयारी के तौर-तरीके बताए जाएं। इससे उन बच्चों में हीनभावना पैदा नहीं होगी। कालांतर में वे भी बड़ी कामयाबी पाएंगे और दूसरों के लिए आदर्श बनेंगे।