वैभव लौटाएं
पीओके को पाने के लिए भारतीय संसद का ध्वनिमत से पारित प्रस्ताव मौजूद है
पीओके में सांस्कृतिक चेतना का प्रवाह भी होना चाहिए
हाल में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने पीओके के संबंध में जो बयान दिए, उनसे यह संभावना बलवती होती है कि विदेशी साजिशों के कारण भारत माता का जो 'मुकुट' खंडित हुआ था, उसके फिर से जुड़ने का समय आने वाला है। पाक ने वर्ष 1947 में इस इलाके पर अवैध कब्जा किया था। उम्मीद है कि हमें इसका भारत में विलय होते देखने के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा। बेशक पीओके हमारा है। उसे पाने के लिए भारतीय संसद का ध्वनिमत से पारित प्रस्ताव मौजूद है। अगर भारत को इसे सैन्य तरीके से हासिल करना होता तो बहुत पहले कर चुका होता, लेकिन देश ने इंतजार किया ... आखिर जो लोग कथित आज़ादी की चाह में 'उस ओर' गए या उसके सुनहरे ख्वाबों के शिकार हुए, उन्हें भी तो पता चले कि पीओके के असल हालात कैसे हैं! वहां पिछले दो वर्षों में आटा, दाल, चीनी, सब्जी, दवाइयों की कीमतों में भारी इजाफा हुआ है, जिससे पाकिस्तान की कलई खुलने लगी है। लोग कैमरे के सामने कबूल करने लगे हैं कि कथित आज़ादी के नाम पर उनके साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है। अब लोगों का 'हृदय-परिवर्तन' होने लगा है। यह बहुत जरूरी था। पीओके में विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों ने पाक फौज के सामने तिरंगा फहरा दिया। पाकिस्तान की नाकामियों के कारण यह आक्रोश अभी और भड़केगा और उस स्तर तक पहुंचेगा, जब भारत को एक गोली चलाने की भी जरूरत नहीं होगी और ... पीओके स्वत: भारत में मिल जाएगा। 'उस पार' के लोग ही पाक के फर्जी कब्जे को उखाड़ फेंकेंगे।
इस समय हमें कुछ जरूरी बिंदुओं पर चिंतन करना चाहिए। हमें उनसे जुड़ीं बातों का ज्ञान होना चाहिए। अभी पीओके में जो हालात पैदा हुए हैं और लोग भारत के साथ मिलने की मांग कर रहे हैं, उसके पीछे सबसे बड़ा कारण महंगाई तथा पाकिस्तान का कुप्रबंधन है। जब ये लोग देखते हैं कि चंद कदमों की दूरी पर (जम्मू-कश्मीर में) आटा, दाल, चीनी, सब्जी, दवाइयां जैसी चीजें काफी सस्ती मिल रही हैं, (तुलनात्मक रूप से) नाममात्र के शुल्क पर भरपूर बिजली मिल रही है, स्कूलों में पढ़ाई का स्तर अच्छा है, चिकित्सा सुविधाएं बढ़िया हैं ... तो उनके दिलो-दिमाग में उमंग उठती है कि पाकिस्तान के सड़े हुए सिस्टम से निकलकर भारत के साथ मिल जाना बेहतर है, क्योंकि वहां भविष्य के लिए उम्मीद है। पाकिस्तान से लोग नाउम्मीद हो चुके हैं। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पीओके में आ रही यह 'तब्दीली' अभी कच्ची है, अधूरी है। यह इलाका जिस तरह पाक फौज, आतंकवादी संगठनों, एजेंसियों, भारतविरोधी मीडिया के चंगुल में रहा है, उसका काफी असर उन लोगों की मानसिकता पर भी हुआ है। फौज से लेकर मीडिया तक, हर किसी ने इनके मन में नफरत भरी है। अगर आज पीओके में महंगाई कम हो जाए, चीजें आसानी से मिलने लग जाएं तो वहां भारतविरोधी तत्त्व फिर से सिर उठाने लगेंगे। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस पड़ोसी देश ने पीओके में (पाकिस्तानी) पंजाब से बड़ी तादाद में लोगों को लाकर बसा दिया है। सोशल मीडिया पर प्रसारित वीडियो भी इसकी गवाही देते हैं। वहां कई लोगों के लहजे पर गौर करें तो पता चलता है कि उनकी भाषा कश्मीरी, डोगरी या गोजरी नहीं, बल्कि पंजाबी है। पाकिस्तानी पंजाबियों के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे अपने (हिंदू/सिक्ख) पूर्वजों और सांस्कृतिक पहचान से घृणा करते हैं। वे खुद को विदेशी आक्रांताओं से जोड़कर देखते हैं। ऐसी मानसिकता के लोग भारत की बहुसांस्कृतिक पहचान और सद्भाव के लिए खतरा बन सकते हैं। इसलिए जो लोग पीओके में रहकर भारत में विलय की मांग कर रहे हैं, उनसे सबसे पहले तो यही आशा की जाती है कि वे खुद को भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक परंपराओं से जोड़ें। पीओके में जहां-जहां हिंदू मंदिर हैं, उनका वैभव लौटाएं। सिर्फ यह कहना काफी नहीं है कि '... रास्ते खोल दो', पीओके में सांस्कृतिक चेतना का प्रवाह भी होना चाहिए। वह कलुषिता पूरी तरह धुलनी चाहिए, जो पाक फौज और कट्टरपंथियों की देन है।