'कटोरा' और ठंडे छींटे
पाकिस्तान में लगभग दो दशकों में 'कश्कोल' शब्द चर्चा में रहा है
शहबाज भविष्य में भी आर्थिक सहायता पाने का रास्ता तैयार कर रहे हैं
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का यह बयान कि अब उनके देश के अधिकारी आर्थिक संकट से निपटने के लिए भीख का कटोरा लेकर मित्र देश नहीं जाएंगे, से मिले संकेतों को ध्यान में रखते हुए भारत को विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है। इस समय पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कोई बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही है, लेकिन उसके प्रधानमंत्री का बयान यह संकेत जरूर देता है कि उसे किसी 'स्रोत' से इतने डॉलर मिल गए / मिलने की संभावना है, जिससे वह आतंकवाद की आग फिर भड़का सकता है। इन दिनों पाकिस्तानी मीडिया में इस बात को लेकर काफी चर्चा है कि सरकार राष्ट्रीय संपत्तियों को 'बेचकर' अपना खजाना भरने की फिराक में है। इसका एक बड़ा हिस्सा नेताओं, सरकारी अधिकारियों और फौजी अफसरों की जेब में जाएगा। एक छोटा हिस्सा आम जनता पर खर्च होगा। एक और हिस्सा आतंकवाद की फंडिंग के लिए रख लिया जाएगा। इस तरह पाकिस्तान के खजाने में आया एक-एक डॉलर शांति के लिए खतरा है। पाकिस्तान में पिछले लगभग दो दशकों में 'कश्कोल' शब्द चर्चा में रहा है। इसका अर्थ होता है- भीख मांगने का कटोरा। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने इसे बहुत मशहूर कर दिया था। वे कहते थे कि यह 'कश्कोल' मैं तोड़ूंगा। उनके सत्ता में आने के बाद पाकिस्तान का कश्कोल तो नहीं टूटा, अलबत्ता उसका आकार और बड़ा हो गया, ताकि उसमें ज्यादा संख्या में 'माल' आ सके। संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जायद अल नाह्यान को संबोधित करते हुए शहबाज का यह कहना कि 'मेरे प्यारे भाई, आपने अपने महान पिता की तरह, एक भाई की तरह, परिवार के सदस्य की तरह पाकिस्तान का समर्थन किया', को भी समझने की जरूरत है।
दरअसल शहबाज भविष्य में भी आर्थिक सहायता पाने का रास्ता तैयार कर रहे हैं, ताकि जब तक उनकी सरकार रहे, आर्थिक संकट उनके लिए और बड़ी मुसीबत न बने। पाकिस्तान के लिए आने वाला समय आसान नहीं होने जा रहा है। उसके राजस्व का एक बड़ा हिस्सा कर्ज का ब्याज चुकाने पर खर्च हो जाता है। अब चीन भी पाक को 'लाल आंखें' दिखा रहा है। हाल के वर्षों में वहां चीनियों पर ताबड़तोड़ आतंकवादी हमले हुए हैं। पाक सरकार की मंशा थी कि इन हमलों के बाद जिस तरह पाकिस्तानियों को टरका दिया जाता है, उसी तरह चीनियों को भी टरका देंगे, लेकिन बीजिंग ने इस्लामाबाद की यह 'चाल' विफल कर दी। अब उसे पांच चीनी नागरिकों के परिवारों को 2.58 मिलियन डॉलर देने होंगे। ये लोग इस साल मार्च में खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत के बिशम इलाके में एक आत्मघाती धमाके में मारे गए थे। पाकिस्तान ने इसे 'सद्भावना' के तौर पर दिया जा रहा मुआवजा बताया है, लेकिन असलियत कुछ और है। चीन अपने नागरिकों का पाकिस्तान में यूं मारा जाना बर्दाश्त नहीं कर सकता। ऐसी घटनाओं से चीन में आक्रोश भी बढ़ता जा रहा है। पाक में कार्यरत चीनी कर्मचारी आतंकवादी हमलों से भयभीत हैं। उनमें से कई तो स्वदेश लौटने की तैयारी कर रहे हैं। पाकिस्तान की ओर से मुआवजे की घोषणा चीनियों के आक्रोश पर ठंडे छींटे डालने की कोशिश है। इससे पाक अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ेगा। यह नहीं भूलना चाहिए कि इस पड़ोसी देश में चीनियों पर पहली बार आतंकी हमला नहीं हुआ है। पिछले पांच वर्षों में हुईं घटनाओं पर ध्यान दें तो पता चलता है कि समय के साथ हमले ज्यादा घातक हुए हैं। भविष्य में भी ऐसी घटनाओं के होने से इन्कार नहीं किया जा सकता। अगर आतंकवादियों ने चीनियों को फिर निशाना बनाया तो पाकिस्तान का 'कटोरा' और बड़ा हो सकता है।