संसद में क्यों हो रहा बात का बतंगड़?

जनता के बुनियादी हक का मुद्दा सर्वोपरि है

संसद में क्यों हो रहा बात का बतंगड़?

Photo: PixaBay

अशोक भाटिया
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संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है| २५ नवंबर से शुरू हुआ सत्र अब तक काम से ज्यादा व्यवधान के लिए सुर्खियों में रहा है| विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच गतिरोध जारी है| किसी दिन १० मिनट तो किसी दिन १५ मिनट सदन चला| आखिर इस गतिरोध के पीछे की वजह क्या है? इससे जनता से जुड़े मुद्दों का कितना नुकसान हो रहा है| ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि संसद चल नहीं पा रही है| सिर्फ दो तीन मुद्दे हैं जो महाराष्ट्र चुनाव में उठाए गए थे| वही फिर से दोहराए से जा रहे हैं| जो नारे और जो मुद्दे चुनावी भाषणों में उठाए जा रहे थे, वही सदन में उठाए जा रहे हैं| लोग सकारात्मक बहस देखना और सुनना चाहते हैं| इसमें जितना विपक्ष जिम्मेदार है, उतना ही सत्तापक्ष भी जिम्मेदार है| सदन में ऐसी बातें हो रही हैं, जिनका देश के लोगों से कोई सरोकार नहीं है|  पहले यह होता था कि विपक्ष विमर्श से सत्तापक्ष को झुका देता था| प्रश्न यह है कि क्या सांसदों  का उद्देश्य सिर्फ संसद को बाधित करना होता है| आजकल यह होता है कि हंगामा जिसने जितना बड़ा  कर लिया, वो ज्यादा ताकतवर समझा जा रहा है| ऐसा मत समझिए कि जनता सिर्फ श्रीराम और अल्लाह के नाम पर वोट करती है| सबके जीवन में बुनियादी जरूरतें होती हैं| इसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की जिम्मेदारी है| गंभीर टिप्पणी करने के लिए बहुत अध्ययन की जरूरत होती है, जो आज के जनप्रतिनिधियों में दिखाई नहीं देती है|

सांसदों को भान होना चाहिए कि भारतीय संसद, देश की सर्वोच्च विधायिका, जो जनता की आवाज को बुलंद करने और उनके मुद्दों पर गहन विचार-विमर्श करने के लिए स्थापित की गई थी, पर सांसद आज जनता के मुद्दों को छोड़ दूसरे विषयों पर चर्चा करने में ज्यादा वक्त जाया कर रही  है| यानी भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली में जो संसद एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, वहां पिछले कुछ वर्षों में आम जनता से जुड़े मुद्दों पर चर्चा अपेक्षाकृत कम हो गई है| इसका मुख्य कारण राजनीतिक दलों के बीच बढ़ता टकराव और विभिन्न विवादास्पद मुद्दों पर ज्यादा ध्यान दिया जाना है| देशहित में बड़े-बड़े मुद्दों पर बहस होती है, जिसमें धर्म, संस्कृति और समाज का महत्व शामिल होता है, लेकिन इन तमाम चर्चाओं के बीच, आम जनता के वास्तविक मुद्दे जैसे कहीं खो जाते हैं| विडंबना यह है कि देश की एकता, अखंडता, संविधान  और संप्रभुता को बनाए रखने की बात तो की जाती है, लेकिन आम जनता के दुख, पीड़ा और उनकी समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जाता| निश्चित रूप से यह स्थिति चिंताजनक है और इसका निराकरण जरूरी है| मगर, संसद में बहस और चर्चा के लिए फुर्सत नहीं निकाल पाना भी एक बड़ी समस्या बन गई है|

कई बार महत्वपूर्ण विधेयकों को जल्दबाजी में पारित किया जाता है, जिससे व्यापक चर्चा और जनता की आवाज सुनी नहीं जाती| इससे आम जनता के मुद्दों पर सार्थक बहस की संभावना कम हो जाती है| इसके अलावा, सांसदों का व्यक्तिगत एजेंडा और राजनीतिक दलों की प्राथमिकताएं भी आम जनता के मुद्दों पर कम ध्यान देने का कारण बन जाती हैं| कई बार सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्रों से जुड़े मुद्दों को उठाने के बजाय, राष्ट्रीय राजनीति और पार्टी के हितों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करते हैं| झांसी की घटना को वहां के सांसद ने अब  तक  नहीं उठाया क्योंकि वो भाजपा से हैं और राज्य में भाजपा की सरकार है| दुःख इसी बात का है कि  उन मुद्दों पर पर्याप्त चर्चा नहीं हो पाती, जो आम जनता के जीवन को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं| संसद में विभिन्न मुद्दों पर बहस होती है, जिसमें राजनीति, धर्म और सामाजिक विषयों पर जोर दिया जाता है| ये बहस आवश्यक है, क्योंकि ये देश की दिशा और दशा को निर्धारित करती है, लेकिन क्या यह पर्याप्त है? संसद में रोटी, कपड़ा, मकान के अलावा भी कई बुनियादी समस्याएं हैं, जिन्हें सुलझाने की जरूरत है| कहीं गंदगी का अंबार लगा है, पीने का पानी नहीं है, कहीं सड़क टूटी है तो कहीं सड़क ही नहीं है|

बिजली, परिवहन, स्कूल, अस्पताल, पार्क जैसी कई बुनियादी सुविधाओं की मांग को लेकर भी सवाल उठाए जाते हैं, लेकिन उसको कोई तवज्जो नहीं दी जाती है| अलग-अलग क्षेत्रों की समस्याएं भी अलग होती हैं, जिन पर क्षेत्रीय सांसदों का ध्यान केंद्रित होना चाहिए| यह भी सच है कि कई सांसद अपने हिस्से की निधि का पूर्ण उपयोग नहीं कर पाते| इसके बावजूद विपक्ष ने संसद के अंदर जनता के मुद्दों को बुलंद करने की कोशिश की है| यह आवश्यक है कि सभी पार्टियां, चाहे वे सत्ता में हों या विपक्ष में, जनता के मुद्दों को प्राथमिकता दें और उनके समाधान के लिए प्रयासरत रहें| भारत में बेरोजगारी, महंगाई और अन्य सामाजिक समस्याएं, जैसे कि  पेपर लीक, किसानों की समस्याएं, और सीमा पर चीन से मिलने वाली चुनौतियां, ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर संसद में चर्चा होना जरूरी है| संसद के मानसून सत्र में आरक्षण, वक्फ बोर्ड और अन्य मुद्दों पर चर्चा हुई, लेकिन जनता के कई मुद्दे गौण हो गए, हालांकि सरकार ने रोजगार बढ़ाने और सूजन करने की मंशा व्यक्त की है, लेकिन वास्तविकता यह है कि भारत जैसे विकासशील देश में रोजगार की समस्या अभी भी प्रमुख है|

युवाओं में कौशल और प्रशिक्षण की कमी, बेरोजगारी का एक मुख्य कारण है| सरकार ने बजट में युवाओं में उचित कौशल विकसित करने का लक्ष्य रखा है, जिसके लिए शिक्षा, रोजगार और कौशल विकास को प्राथमिकता दी गई है| यदि, भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाना है, तो युवाओं को रोजगार प्रदान करना एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा| देश में प्रदूषण, आतंकवाद, सड़क सुरक्षा और निर्माण संबंधी खतरे जैसे प्रमुख मुद्दे हैं, जिन्हें सार्वजनिक हित के मुद्दे कहा जा सकता है| इन मुद्दों को कानूनी ढांचे के भीतर हल किया जा सकता है, लेकिन आज देश में हर जगह परिवारवाद, भाई-भतीजावाद, जातिवाद, आतंकवाद, क्षेत्रवाद, बढ़ती जनसंख्या, महंगाई, बेरोजगारी, जमाखोरी, भ्रूण हत्या, मानव तस्करी, बलात्कार और भ्रष्टाचार जैसी गंभीर समस्याएं बढ़ रही हैं| इन समस्याओं पर नियंत्रण करना बहुत जरूरी है| देश के अंदर किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं, उनकी फसलें बर्बाद हो रहीं हैं| सड़कों पर दूध और सब्जियां फेंकी जा रही हैं, लेकिन इन मुद्दों पर संसद के अंदर गंभीर चर्चा नहीं होती है| इसके विपरीत, कई विवादास्पद मुद्दों के कारण सांप्रदायिक माहौल बिगड़ रहा है, जो देश की अखंडता के लिए खतरनाक है| राजनीतिक दल भी जनहित के मुद्दों पर चर्चा करने से बचते हैं| पार्षद, विधायक और सांसद अपने क्षेत्रों के विकास पर ध्यान देने के बजाय पार्टी लाइन से चली बड़ी-बड़ी बातें करने में व्यस्त रहते हैं| ऐसा लगता है कि सभी पार्टियों ने जनता की समस्याओं को नजरअंदाज करने की आदत बना ली है| हाल ही में आम आदमी पार्टी की राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल ने यमुना नदी में प्रदूषण का मुद्दा उठाया और कहा कि जब तक दिल्ली में बुद्ध स्तर पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं बनाए जाएंगे, यमुना की स्थिति में सुधार नहीं होगा| उन्होंने इसके लिए केंद्र सरकार के असहयोगात्मक रवैये की ओर ध्यान आकृष्ट किया और दिल्ली सरकार पर भी निशाना साधा| यह बेहद दुखद है कि सदियों से पूजी जाने वाली यमुना नदी आज नाले में तब्दील हो गई है|

करीब डेढ़ सौ करोड़ की आबादी वाले इस देश में जनता के बुनियादी हक का मुद्दा सर्वोपरि है, लेकिन दुर्भाग्य है कि हमारे चुने हुए जनप्रतिनिधि आम जनता की आवाज को समझ नहीं पा रहे हैं| संसद या विधानसभाओं में बैठे जनप्रतिनिधियों को यह समझना होगा कि जनता की आवाज को बुलंद करना और उनके मुद्दों का समाधान ढूंढना ही देश का भला कर सकता है| देश के अंदर जो अद्भुत सृजनशीलता और उद्यमिता है, उसे संवारने और नई ऊंचाइयों पर ले जाने की आवश्यकता है| जनता सब देख रही है कि कौन क्या कर रहा है क्योकि आजकल संसंद की कार्यवाही का सीधा प्रसारण होता है| इसलिए संसद में बात होनी चाहिए, बहस होनी चाहिए और मुद्दे उठने चाहिए| अगर मुद्दे दल के हिसाब से उठेंगे तो यह होगा| लंबे समय तक कार्यवाही को रोकना भी सही नहीं है| ऐसे में कई कानून बिना चर्चा के भी पारित हो जाते हैं| बेहतर यह है कि आप चर्चा करें और जिस पर आपकी सहमति ना हो तो आप बहिर्गमन करें| मुझे लगता है कि जिम्मेदारी दोनों पक्षों की है और सबसे बड़ी जिम्मेदारी सरकार की है|

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