अजब फिक्र, गजब मापदंड

ऐसा तो नहीं है कि डोनाल्ड लू और अन्य वरिष्ठ राजनयिक पाकिस्तान की हकीकत न जानते हों

अजब फिक्र, गजब मापदंड

पाकिस्तान को डॉलर देने से नेता व फौजी अफसर मौज उड़ाएंगे

अमेरिका के शीर्ष राजनयिक डोनाल्ड लू का यह बयान कई विरोधाभासों से भरा हुआ है कि उनके देश के प्रशासन ने पाकिस्तान के लिए 'लोकतंत्र को मजबूत करने, आतंकवाद से लड़ने और अर्थव्यवस्था को स्थिर करने' के लिए 101 मिलियन डॉलर का बजट मांगा है! इतने वर्षों तक देश-दुनिया के घटनाक्रम पर नजर रखने वाले डोनाल्ड लू क्या यह नहीं जानते कि पाकिस्तान में न तो लोकतंत्र है, न वह देश आतंकवाद से लड़ने की इच्छाशक्ति रखता है और न ही अर्थव्यवस्था की स्थिरता को लेकर उसके पास कोई योजना है? इसके बावजूद वे अमेरिकी जनता की गाढ़ी कमाई से पाक को 101 मिलियन डॉलर का तोहफा देना चाहते हैं! क्या यह राशि सच में इन्हीं प्राथमिकताओं पर खर्च होगी, जिनका डोनाल्ड लू जिक्र कर रहे हैं? एक तरफ तो अमेरिका आतंकवाद को कुचलने के लिए अपना संकल्प दोहराता है, दूसरी तरफ उस देश के नेतृत्व को भारी-भरकम रकम देने की तैयारी करता है, जिसने कई देशों में आतंकवाद फैलाकर मानवता को लहूलुहान किया है! ये दोहरे मापदंड क्यों? ऐसा तो नहीं है कि डोनाल्ड लू और अन्य वरिष्ठ राजनयिक पाकिस्तान की हकीकत न जानते हों। पाक में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से फौज का शासन रहा है। आज भी पर्दे के पीछे से फौज ही शासन चला रही है। तो डोनाल्ड लू किस लोकतंत्र को मजबूत करने की बात कर रहे हैं? जिस 'लोकतंत्र' को मजबूत करने के लिए अमेरिका पाक में इतनी बड़ी रकम झोंक रहा है, एक बार उसके कर्ताधर्ताओं को देख लेना चाहिए कि वह किन फाइलों में दबकर दम तोड़ चुका है?

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पाकिस्तान को आतंकवाद से लड़ने के लिए आर्थिक सहायता देना किसी खूंखार अपराधी को हथियारों का जखीरा देने जैसा है, जो भविष्य में उसका इस्तेमाल अपना गिरोह तैयार करने और आम लोगों पर धावा बोलने में करेगा। अतीत में पाकिस्तान को जब भी विदेशी सहायता मिली, उसने उसका इस्तेमाल अपनी जनता की भलाई के लिए नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार और आतंकवाद को फैलाने के लिए किया था। अमेरिका उसे फिर बड़ी रकम दे रहा है! कोई आश्चर्य नहीं, अगर इसका एक बड़ा हिस्सा आतंकवाद फैलाने पर खर्च हो जाए। इससे भारत की सुरक्षा के लिए चुनौतियां पैदा होंगी। डोनाल्ड लू के बयान का यह हिस्सा अत्यंत हास्यास्पद है कि मांगे गए बजट का एक मकसद पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को स्थिर करना भी है! पाक अपनी अर्थव्यवस्था खुद स्थिर नहीं करना चाहता, तो अमेरिका कैसे करेगा? अपने बूते मजबूत अर्थव्यवस्था का निर्माण, नागरिकों की भलाई, खुशहाली, भविष्य की बेहतरी के लिए ठोस योजना ... ये बातें पाकिस्तान की प्राथमिकताओं में दूर-दूर तक दिखाई नहीं देतीं। इस समय जब पाक कंगाली के कगार पर खड़ा है, वहां आटा, दाल, सब्जी, तेल, दवाइयों समेत जरूरत की हर चीज़ के दाम आसमान छू रहे हैं, तो उसके नेता, फौजी अफसर, विश्लेषक और मीडियाकर्मी 'कश्मीर राग' अलापने में व्यस्त हैं। ऐसा नहीं है कि यह तबका ही इस किस्म की सोच रखता है। वहां कई मशहूर यूट्यूब चैनलों के सर्वेक्षणों में यह बात बार-बार सामने आ चुकी है कि ज्यादातर आम पाकिस्तानी अपने जीवन की बेहतरी के बजाय भारत के अहित को प्राथमिकता देते हैं। वहां लोग खुलकर स्वीकार करते हैं कि वे और महंगाई बर्दाश्त करने के लिए तैयार हैं, बशर्ते भारत को नुकसान पहुंचे। क्या इस्लामाबाद स्थित अमेरिकी दूतावास अपने उच्चाधिकारियों को ऐसी खुफिया रिपोर्टें नहीं भेजता कि पाकिस्तानी नागरिकों का मिज़ाज कैसा है? अगर डोनाल्ड लू वास्तव में पाकिस्तान में लोकतंत्र, शांति और अर्थव्यवस्था को लेकर फिक्रमंद हैं तो उसे दी जाने वाली आर्थिक सहायता पर प्रतिबंध लगाने, पाक फौज के उच्चाधिकारियों को आतंकवाद व अशांति के लिए जिम्मेदार ठहराने तथा दाऊद इब्राहिम, हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे आतंकवादियों को तुरंत भारत को सौंप देने की सिफारिश करें। पाकिस्तान को डॉलर देने से नेता व फौजी अफसर मौज उड़ाएंगे और आतंकवादी खूब उत्पात मचाएंगे।

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