पौराणिक काल से ही होती रही है नागों की पूजा
नाग भगवान शिव के गले का हार तो हैं ही, भगवान विष्णु भी समुद्र में शेषनाग की शैया पर विश्राम करते हैं
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.. योगेश कुमार गोयल ..
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कुछ धर्म ग्रंथों में नागों को पूर्वजों की आत्मा के रूप में भी माना गया है| हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार नागों को पौराणिक काल से ही देवता के रूप में पूजा जाता रहा है और नाग पंचमी के दिन नाग पूजन करने का तो काफी ज्यादा महत्व माना गया है| भारत में कई स्थानों पर नाग देवता के कई प्राचीन मंदिर हैं और नागालैंड, नागपुर, अनंतनाग, शेषनाग, नागवनी, नागारखंड, भागसूनाग इत्यादि देश में कई स्थानों का तो नाम ही नागों के नाम पर ही रखा गया है| नागालैंड को तो नागवंशियों का मुख्य स्थान माना गया है और कुछ ग्रंथों में कश्मीर को भी नागभूमि कहा गया है| भारत में दक्षिण भारत के पर्वतीय इलाकों के अलावा उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, अरूणाचल प्रदेश, असम इत्यादि में नाग पूजा प्रमुखता से होती है| जिस प्रकार हमारे कुल देवताओं में देवी-देवता शामिल होते हैं, ठीक उसी प्रकार विभिन्न क्षेत्रों में नागों को भी स्थान देवता’ माना जाता है| कई जगहों पर तो नागों को कुल देवता, ग्राम देवता और क्षेत्रपाल भी कहा जाता है| हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार कुल ३३ कोटि देवी-देवता हैं, जिनमें नाग भी शामिल हैं|
नागों की उत्पत्ति और उनके पाताललोक वासी होने को लेकर महाभारतकालीन एक कथा प्रचलित है| वराहपुराण के अनुसार, महर्षि कश्यप की तेरह पत्नियां थी, जिनमें से एक थी राजा दक्ष की पुत्री कद्रू, जिसने महर्षि कश्यप की बहुत सेवा की, जिससे प्रसन्न होकर महर्षि ने कद्रू को वरदाने मांगने के लिए कहा| कद्रू ने उनसे एक हजार तेजस्वी नाग पुत्रों का वरदान मांगा| महर्षि कश्यप के वरदानस्वरूप कद्रू से ही नाग वंश की उत्पत्ति हुई लेकिन जब इन नागों ने धरती पर लोगों को डसना शुरू किया तो नागों से रक्षा के लिए सभी ने ब्रह्माजी से प्रार्थना की| तब ब्रह्माजी ने सभी नागों को श्राप देते हुए कहा कि जिस तरीके से तुम लोगों पर अत्याचार कर रहे हो, अगले जन्म में तुम सभी का नाश हो जाएगा| यह श्राप सुनकर नाग भयभीत हो गए और उन्होंने कातर स्वर में ब्रह्माजी से प्रार्थना की कि जिस प्रकार मनुष्यों के रहने के लिए उन्हें पृथ्वी दी गई है, उसी प्रकार उन्हें भी इस ब्रह्माण्ड में कोई अलग स्थान दिया जाए, जिससे इस समस्या का भी समाधान हो जाएगा| तब ब्रह्माजी ने उन्हें रहने के लिए पाताल देते हुए कहा कि अब से तुम सभी भूमि के अंदर पाताललोक में ही रहोगे| उसके बाद सभी नाग पाताललोक में निवास करने लगे| माना जाता है कि ब्रह्म्राजी ने मनुष्यों की नागों से रक्षा के लिए जिस दिन उनके पाताल में रहने की व्यवस्था की, उस दिन सावन महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी और तभी से इसी तिथि पर नागों की पूजा के लिए नाग पंचमी’ त्योहार मनाया जाने लगा|
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नाग भगवान शिव के गले का हार तो हैं ही, भगवान विष्णु भी समुद्र में शेषनाग की शैया पर विश्राम करते हैं और यह भी मान्यता है कि हमारी धरती इन्हीं शेषनाग के फन पर टिकी है| त्रेता युग में शेषनाग ने भगवान श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण के रूप में धरती पर जन्म लिया था और द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम भी शेषनाग के अवतार माने गए हैं| वैसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नागों को कृषक मित्र जीव माना गया है| दरअसल ये खेतों में फसलों के लिए खतरनाक जीवों, चूहों इत्यादि का भक्षण कर फसलों के लिए मित्र साबित होते हैं लेकिन वर्तमान समय में नागों या सांपों की खाल, जहर इत्यादि चीजों से बड़े व्यापारिक लाभ के लिए बड़ी संख्या में इन्हें मारा और बेचा जाता है| इसी कारण वन्य और जीव-जंतु विभाग तथा सरकारों द्वारा नागों को संरक्षित करने के लिए सांपों को पकड़ने और उन्हें दूध पिलाने पर रोक लगाई जाती है|