शहर-शहर 'डिजिटल अरेस्ट' का कहर, ऐसा फोन कॉल कर सकता है बैंक खाता खाली

व्यक्तिगत या वित्तीय जानकारी ऑनलाइन साझा करने से बचें

शहर-शहर 'डिजिटल अरेस्ट' का कहर, ऐसा फोन कॉल कर सकता है बैंक खाता खाली

Photo: PixaBay

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। साइबर ठग नए-नए तरीके ढूंढ़कर लोगों को ठगने की कोशिशें कर रहे हैं। वे अपने मंसूबों में काफी कामयाब भी होते जा रहे हैं। अब लोगों को परेशान करने वाले नए चलन 'डिजिट्‌ल्‌ अरेस्ट' से साइबर अपराध के मामलों में वृद्धि देखी गई है। इसके लिए धोखेबाज पैसे ऐंठने के लिए कानून प्रवर्तन अधिकारियों का रूप धारण करते हैं। वे डर की रणनीति अपनाते हुए दावा करते हैं कि आपके आधार कार्ड, पैन कार्ड आदि का उपयोग गैर-कानूनी कामों में हो रहा है, लिहाजा आपको डिजिटल अरेस्ट किया जा रहा है। 

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पीड़ितों को अक्सर फोन कॉल, वीडियो चैट और नकली कानूनी दस्तावेजों के जरिए मजबूर किया जाता है। उन पर मनी लॉन्ड्रिंग जैसे अपराधों का झूठा आरोप लगाकर भयभीत किया जाता है। उन्हें दबाव में लाकर संवेदनशील वित्तीय जानकारी मांगी जाती है। 

साइबर धोखेबाज आम तौर पर पुलिस या इनकम टैक्स विभाग जैसी एजेंसियों के अधिकारी होने का दिखावा करके वरिष्ठ नागरिकों सहित उन लोगों को निशाना बनाते हैं, जिन्हें ज्यादा तकनीकी जानकारी नहीं होती। 

वे दावा कर सकते हैं कि पीड़ित के नाम पर एक धोखाधड़ी वाला बैंक खाता खोला गया है और वे कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए सहयोग करें। पीड़ितों को कभी-कभी घंटों या दिनों तक डिजिटल रूप से बंधक बनाकर रखा जाता है। उन्हें ऑनलाइन माध्यमों से घोटालेबाजों के साथ बातचीत करने के लिए मजबूर किया जाता है।

हैदराबाद में सामने आए एक ताजा मामले में एक बुजुर्ग दंपत्ति से करोड़ों रुपए की ठगी की गई। खुद को मुंबई पुलिस अधिकारी बताने वाले जालसाजों ने दावा किया कि पीड़ित के नाम पर एक खाता अवैध लेनदेन में शामिल था।

उन्हें चल रही जांच का पालन करने की आवश्यकता का हवाला देते हुए विभिन्न बैंक खातों में रकम स्थानांतरित करने के लिए मजबूर किया गया। घोटालेबाजों ने फर्जी आधिकारिक पत्रों का इस्तेमाल किया और जेल भेजने की धमकी दी।

हैदराबाद पुलिस ने हाल ही में डिजिटल अरेस्ट से जुड़े साइबर अपराधों के जाल का खुलासा करते हुए राजस्थान से 18 लोगों को गिरफ्तार किया है। एक अधिकारी ने कहा सॉफ्टवेयर इंजीनियरों, गृहिणियों और सेवानिवृत्त लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। ये अपराधी कई मामलों में पीड़ितों से 11 लाख रुपए से लेकर 29 करोड़ रुपए तक की रकम ऐंठने में कामयाब रहे।

एक अधिकारी ने बताया कि धोखाधड़ी करने वाले लोग पीड़ित के बैंक खातों के बारे में संवेदनशील जानकारी पाने के लिए आधार नंबर या फ़ोन नंबर का उपयोग करते हैं। खुद को उच्च पदस्थ पुलिस अधिकारी बताकर वे पीड़ितों को डराते व धमकाते हैं। अक्सर उन्हें कहा जाता है कि एजेंसियां आपको गिरफ्तार कर लेंगी।

पुलिस के अनुसार, साइबर ठग प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग के फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल करते हैं। यह रणनीति पीड़ितों को धोखा देने के लिए अपनाई जाती है। 

साइबर अपराध अधिकारियों कहा कहना है कि व्यक्तिगत या वित्तीय जानकारी ऑनलाइन साझा करने से बचें। सरकारी अधिकारी के रूप में कॉल करने वाले किसी भी व्यक्ति की प्रामाणिकता को सत्यापित करने और फोन आधारित जांच में शामिल होने से बचें। 

ऐसी घटनाओं की हेल्पलाइन 1930 या राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल के माध्यम से रिपोर्ट कर सकते हैं।

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