मिट्टी से प्रेम

मिट्टी से प्रेम

जिस देश ने इमरान को इतना सम्मान, अपनत्व, धन और प्रतिष्ठा दी, वे उसे अपना घर क्यों नहीं समझ सके?


पाकिस्तान में सत्ता गंवाने के बाद इमरान ख़ान विवेक एवं बुद्धि गंवा बैठे हैं। उनके हालिया बयान कुछ ऐसा ही संकेत दे रहे हैं कि क्रिकेट से राजनीति में आए इमरान न तो एक कुशल प्रधानमंत्री बन सके और न अब जिम्मेदारी विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं। कभी वे भारत की तारीफ करने लगते हैं, कभी आग उगलने लगते हैं। वे इस दुविधा में लगते हैं कि किस तरह की राजनीति की जाए ताकि खोई हुई सत्ता पर फिर काबिज हो सकें। इस कोशिश में जो मन करता है, बोल देते हैं।

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उन्होंने अपने मुल्क के एक मशहूर यूट्यूबर को दिए बयान में ब्रिटिश समाज के लिए जो कहा, वह न केवल उनकी, बल्कि एक आम पाकिस्तानी की मनोदशा भी पेश करता है। साथ ही उन्होंने ख़ुद की तुलना एक ऐसे जानवर से कर दी, जिसकी बुद्धि का मज़ाक उड़ाया जाता है। असल में इमरान का यह बयान हास्यास्पद भी है। उनका यह कहना कि 'मैं बाहर क्रिकेट खेलता था, जाता था। मैं उस सोसायटी का हिस्सा भी था। वहां बड़ा वेलकम भी हुआ जबकि ब्रिटिश सोसायटी में बाहरी को आसानी से एक्सेप्ट नहीं किया जाता। लेकिन मैंने कभी उसको अपना घर नहीं समझा क्योंकि मैं पाकिस्तानी था ... ।'

सवाल है, जिस देश ने इमरान को इतना सम्मान, अपनत्व, धन और प्रतिष्ठा दी, वे उसे अपना घर क्यों नहीं समझ सके? ऊपर से उदारवाद का मुखौटा लगाए इमरान भले ही ब्रिटिश समाज में शान से रहे हों, शादी की हो, लेकिन वे अंदर से उसी सोच का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो जिन्ना, मसूद अज़हर, हाफिज सईद की है ... जो इतना सम्मान देने के बाद भी उस समाज को अपना नहीं मानते।

इमरान को उन करोड़ों भारतीयों से सीखना चाहिए जो खाड़ी देशों से लेकर अमेरिका, यूरोप और तमाम देशों में रहते हैं। निस्संदेह वे भारत से प्रेम करते हैं लेकिन वे उस देश के भी अहसानमंद होते हैं जो उन्हें रहने, कमाने का अवसर देता है। वे उसकी मिट्टी से प्रेम करते हैं। वे उसे अपना समझते हैं। एक भारतीय जिस देश में रहता है, उसकी संस्कृति से तालमेल बैठाने की कोशिश करता है। वह धीरे-धीरे अपने आदर्शों के साथ उसे अपना लेता है।

जबकि पाकिस्तानियों के बारे में मशहूर है कि वे यूरोप समेत विभिन्न देशों में प्रवेश से पहले वहां की सरकारों से बहुत निवेदन करते हैं। एक बार जब उन्हें प्रवेश मिल जाता है तो उसी के समाज की बुराइयां करने लगते हैं। पाकिस्तान के मशहूर वैज्ञानिक डॉ. परवेज हूदभॉय भी इस प्रवृत्ति का उल्लेख कर चुके हैं। अमेरिका में दशकों रहने के बावजूद पाकिस्तानी उस देश को अपना नहीं मानते। वे उसके समाज और संस्कृति से घृणा करते हैं। वे अमेरिकी सरकार द्वारा दी गईं सुविधाओं का जमकर उपभोग करते हैं लेकिन समय-समय पर उस देश की खूब बुराइयां करते हैं।

यह अलग बात है कि वे अमेरिका को छोड़कर पाकिस्तान कभी नहीं आना चाहते। पाकिस्तान को हमेशा ऐसे हुक्मरान मिले जिन्होंने जनता को नफरत की घुट्टी से पाला है। इमरान भी उससे अलग नहीं थे। यह उन्होंने अपने बयान से सिद्ध कर दिया।

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