विश्वास का वातावरण बनाएं

पाकिस्तान आर्थिक रूप से तबाह है तो इसके पीछे उसके शासकों की भारत-विरोधी एवं हिंदू-विरोधी नीतियां जिम्मेदार हैं

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पाक प्रधानमंत्री  का यह 'पछतावा' किसी हृदय-परिवर्तन का परिणाम नहीं है

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का यह बयान कि 'मित्र देशों से और कर्ज मांगने में उन्हें शर्मिंदगी महसूस होती है, क्योंकि यह नकदी संकट से जूझ रहे देश की आर्थिक चुनौतियों का स्थायी समाधान नहीं है', इस पड़ोसी देश के शासक वर्ग की आंखें खोलने के लिए काफी है, बशर्ते वह इससे सबक ले। 

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आज पाकिस्तान आर्थिक रूप से तबाह है तो इसके पीछे उसके शासकों की भारत-विरोधी एवं हिंदू-विरोधी नीतियां जिम्मेदार हैं। इस देश ने अस्तित्व में आने के बाद इतनी ज्यादा विदेशी सहायता और कर्ज का सहारा लिया कि उसने खुद संसाधन विकसित करना सीखा ही नहीं। पूरा जोर सिर्फ भारत से नफरत और आतंकवाद को परवान चढ़ाने पर लगाया, जिसका नतीजा शहबाज शरीफ के भाषण में सुना जा सकता है। 

वास्तव में पाक प्रधानमंत्री  का यह 'पछतावा' किसी हृदय-परिवर्तन का परिणाम नहीं है। अगर उन्हें कुछ और कर्ज मिल जाए, आर्थिक स्थिति थोड़ी-सी बेहतर हो जाए तो यह 'पछतावा' गायब हो जाएगा। फिर ये शरीफ 'शरीफ' नहीं रहेंगे, भारत में आतंकवादी भेजने के मिशन में पूरी ताकत से जुट जाएंगे। शहबाज शरीफ की हालत उस जुआरी जैसी है, जो जुए में अपना सबकुछ हार गया, लेकिन लत है कि छूटती नहीं। 

हालांकि शहबाज का यह कहना उचित है कि पिछले 75 वर्षों के दौरान देश की विभिन्न सरकारों ने आर्थिक मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया। सवाल है- इन वर्षों में शासन कौन करता रहा? इस अवधि में सैन्य शासन को छोड़ दें तो अधिकतर समय भुट्टो और शरीफ खानदान ही शासन करता रहा है। अगर पाकिस्तान ने विदेशी सहायता और कर्ज का सही इस्तेमाल किया होता और भारत के साथ मधुर संबंध रखे होते तो यह देश बहुत खुशहाल होता।

आज पाकिस्तान को सीखना है तो बांग्लादेश से सीखना चाहिए, जो कभी उसका हिस्सा (पूर्वी पाकिस्तान) था। जिन बांग्ला भाषियों का पश्चिमी पाकिस्तानी मखौल उड़ाया करते थे, आज उनका देश तमाम समस्याओं के बावजूद कितना आगे बढ़ गया है। बांग्लादेश की मुद्रा, पासपोर्ट, अंतरराष्ट्रीय छवि पाकिस्तान की तुलना में बहुत बेहतर हैं। 

इसकी सबसे बड़ी वजह है बांग्लादेश के भारत के साथ मधुर संबंध। बांग्लादेशियों ने खुद को परमाणु बम की होड़ से दूर रखा, भारत से सैन्य टकराव मोल नहीं लिया। बदले में भारत की ओर से उन्हें पूरा सहयोग मिला। आज बांग्लादेश का कपड़ा उद्योग दुनिया में मशहूर है। जो कंपनियां पाकिस्तान से संचालित होती थीं, उनमें से कितनी ही अपना निवेश निकालकर बांग्लादेश से संचालन कर रही हैं। 

अगर शहबाज शरीफ पाकिस्तान का हित चाहते हैं तो उन्हें अपने देश के लिए उचित प्राथमिकताएं तय करनी होंगी। वे अल अरबिया को दिए साक्षात्कार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संदेश देते हैं कि परस्पर बातचीत कर विवादों का हल निकालें। शहबाज भूल रहे हैं कि मोदी ने पहले कार्यकाल में, प्रधानमंत्री बनते ही इसकी पहल शुरू कर दी थी। नवाज शरीफ को अपने शपथग्रहण कार्यक्रम में बुलाया था। जब इमरान खान पाक के प्रधानमंत्री बने तो मोदी ने आह्वान किया था कि आपस में लड़ने के बजाय गरीबी और बेरोजगारी से लड़ें। लेकिन इन सबके बदले भारत को क्या मिला? उरी हमला, पठानकोट हमला, पुलवामा हमला ...। 

क्या शहबाज शरीफ सोचते हैं कि अब भारतीय प्रधानमंत्री उन्हें विश्वसनीय समझते होंगे? प्रधानमंत्री ही क्यों, अब भारत का कोई भी विवेकशील नागरिक शहबाज के शब्दों पर विश्वास नहीं करेगा। इसलिए जरूरी है कि शहबाज पहले विश्वास का वातावरण बनाएं। आतंकवाद पर पूरी तरह लगाम लगाएं। दाऊद इब्राहिम, हाफिज सईद समेत जो आतंकवादी भारत में दहशतगर्दी के गुनहगार हैं, उन्हें भारत को सौंपें। कश्मीर राग अलापना बंद करें। जब पाक प्रधानमंत्री शरीफ कथनी और करनी दोनों में 'शरीफ' होंगे तो भारत को बातचीत से कोई आपत्ति नहीं होगी।

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