ज़िंदगी से खिलवाड़

किसी भी वाहन के साथ होने वाले हादसे को टालने की कोशिश होनी चाहिए

ज़िंदगी से खिलवाड़

भारत में हर साल बड़ी तादाद में हादसे होते हैं, जिनमें बहुत लोग जान गंवाते हैं

हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले में स्कूल बस हादसे में छह बच्चों की मौत होना अत्यंत दु:खद है। यह हादसा अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया, साथ ही उन बच्चों के परिवारों के लिए ज़िंदगीभर का दर्द भी। बच्चों का अपनी आंखों के सामने यूं चले जाना ऐसी वेदना देता है, जिसे माता-पिता कभी भुला नहीं सकते। अगर उस स्कूल ने थोड़ी सावधानी बरती होती और स्थानीय प्रशासन चौकस रहता तो इस हादसे को टाला जा सकता था। इस मामले में प्रधानाध्यापक और बस चालक समेत तीन लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है, लेकिन इतनी कार्रवाई से ही 'संतुष्ट' नहीं होना चाहिए। अब कोशिश यह हो कि भविष्य में किसी स्कूल बस के साथ ऐसा हादसा न हो। स्कूल बस ही क्यों, किसी भी वाहन के साथ होने वाले हादसे को टालने की कोशिश होनी चाहिए। उक्त मामले में अब तक जो जानकारी सामने आई, उसमें बस चालक को 'नशे' में बताया गया है। अगर ऐसा है तो घोर लापरवाही है। बच्चों की ज़िंदगी से खिलवाड़ है। क्या उस चालक को मालूम नहीं था कि उसकी इस हरकत से कितने बच्चों की जान जोखिम में पड़ सकती है? सच कहा गया है कि नशा नाश की जड़ है। भारत में हर साल बड़ी तादाद में हादसे होते हैं, जिनमें बहुत लोग जान गंवाते हैं। ऐसे हादसों के पीछे प्रमुख कारणों में से नशाखोरी और लापरवाही से वाहन चलाना जैसे कारण भी हैं। यातायात पुलिस को चाहिए कि वह ऐसे चालकों का पता लगाए, जो नशीले पदार्थों का सेवन करने के बाद वाहन चलाते हैं। उसके पास उपकरण भी हैं, लेकिन एक कड़वी हकीकत है कि यातायात पुलिस के कुछ कर्मियों की भूमिका पर सवालिया निशान लगते रहते हैं।

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स्कूली वाहनों की सुरक्षा से संबंधित विभिन्न मुद्दे पहले भी चर्चा में रहे हैं, लेकिन उन पर ठोस काम नहीं हुआ। प्राय: हर शहर में सुबह ऐसे वाहन दिख जाते हैं, जिनमें क्षमता से ज्यादा स्कूली बच्चों को बैठा लिया जाता है। सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो वायरल होते रहते हैं, जिन्हें देखकर यह कहना ज्यादा मुनासिब होगा कि उन वाहनों में स्कूली बच्चों को 'बैठाया' नहीं, बल्कि 'भरा' जाता है। अगर ऐसे वाहनों की ठीक तरह से जांच की जाए तो पचासों खामियां और मिल जाएंगी। गर्मियों के मौसम में तो हालात बहुत मुश्किल हो जाते हैं। बस्ते का बोझ, बेहतर प्रदर्शन का दबाव, माता-पिता और परिजन के अरमान, उस पर ऐसे वाहन ... बच्चा करे तो क्या करे? अगर इन सब से पार पा ले और वाहन चालक नशे में या लापरवाही से गाड़ी चलाए तो? प्राय: स्कूली बच्चों के वाहनों के बारे में तो चर्चा होती है। प्रशासन भी ऐसे मामलों को कुछ गंभीरता से ले लेता है। वहीं, कॉलेज विद्यार्थियों को होने वाली दिक्कतों की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। खासकर वे, जो सार्वजनिक बसों से आवागमन करते हैं। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे वाहन चलते हैं, जिनसे कॉलेज विद्यार्थी बहुत जोखिम भरा सफर करते हैं। इन वाहनों के अंदर और ऊपर सवारियां बैठी रहती हैं। पीछे भी लोग लटके रहते हैं। जरा-सी लापरवाही बड़े हादसे को न्योता दे सकती है। जब हादसा हो जाता है तो प्रशासन एक बार कार्रवाई करने की इच्छाशक्ति दिखाता है। वाहनों के कागजात देखे जाते हैं। निर्धारित क्षमता से ज्यादा सवारियां बैठाने, तेज गति से वाहन चलाने जैसे मामलों में जुर्माने लगा दिए जाते हैं। कुछ दिन बाद वही 'ढाक के तीन पात'! अब प्रशासन दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाए। वाहनों की नियमित रूप से जांच की जाए। लोगों को जागरूक किया जाए। नशा करके और लापरवाही से वाहन चलाने जैसे मामलों में कोई नरमी न बरती जाए।

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