बाड़ ही खेत को खाए तो ...
जब रक्षक ही भक्षक बन जाएगा तो समाज का क्या होगा?
ईमानदार व कर्मठ पुलिस अधिकारी अपने कार्यों से वर्दी का मान बढ़ाते हैं
केरल में साल 2016 से 2024 तक सेवा से बर्खास्त किए गए पुलिसकर्मियों के आंकड़े (108) से जुड़ा वह बिंदु चिंतनयोग्य है, जो इन्हें सेवा से निकाले जाने का आधार बना। ये पुलिसकर्मी 'आपराधिक गतिविधियों' में लिप्त थे! जब रक्षक ही भक्षक बन जाएगा तो समाज का क्या होगा? बाड़ ही खेत को खाने लगेगी तो रखवाली कौन करेगा? आज किसी नौजवान के लिए पुलिस में भर्ती होना आसान नहीं है। वर्षों की पढ़ाई, प्रतियोगी परीक्षा, साक्षात्कार, शारीरिक जांच, मनोवैज्ञानिक परीक्षण, प्रशिक्षण जैसी कई सीढ़ियां पार करने के बाद पुलिस की वर्दी पहनने को मिलती है। सेवा में जाने से पहले शपथ लेनी होती है कि पूरी निष्ठा और ईमानदारी से कार्य करेंगे। इसके बावजूद यह हाल है! बेशक पुलिस में मेहनती, ईमानदार और निष्ठावान अधिकारी-कर्मचारी भी होते हैं। उन्हें देखकर आम लोगों में यह भरोसा मजबूत होता है कि हमारी सुनवाई होगी, इन्साफ मिलेगा, लेकिन इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि ऐसे अधिकारी-कर्मचारी भी होते हैं, जो अपने कार्यों से वर्दी को दागदार करते हैं। सरकार को ऐसे लोगों के मामलों में कोई नरमी नहीं दिखानी चाहिए। उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई कर नजीर पेश करनी चाहिए। हर साल जब पुलिस सेवा के लिए चुने गए युवा मीडिया को दिए अपने साक्षात्कार में यह कहते हैं कि 'हम वर्दी पहनकर देश की सेवा करेंगे', तो देशवासियों के दिलों में यह उम्मीद पैदा होती है कि शायद अब पुलिस व्यवस्था में कुछ सुधार होगा, कानून का बोलबाला होगा, अपराधियों में डर पैदा होगा, लेकिन वर्षों बाद भी धरातल पर कोई खास बदलाव नजर नहीं आता।
ईमानदार व कर्मठ पुलिस अधिकारी अपने कार्यों से वर्दी का मान बढ़ाते हैं। वहीं, ऐसे मामलों की भी कमी नहीं है, जिनमें पुलिसकर्मी ही मर्यादा को भंग करते पाए गए। शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरता होगा, जब अखबारों में पुलिसकर्मियों के 'कारनामों' का जिक्र न हो। ऐसे में लोगों का पुलिस से विश्वास कम होना स्वाभाविक है। पुलिस से उम्मीद की जाती है कि उससे आम लोगों में विश्वास और अपराधियों में डर पैदा होगा। पुलिस को लेकर आम लोगों में कितना विश्वास है, यह जानने के लिए किसी भी आम नागरिक से पूछकर देखिए, जवाब मिल जाएगा। यह कड़वी हकीकत है कि आज जब किसी शरीफ व गरीब आदमी पर कोई मुसीबत आती है और उसे पुलिस के पास जाना होता है तो वह (जाने से पहले) कई बार सोचता है। उसके मन में कई आशंकाएं होती हैं। वह किसी ऐसे व्यक्ति को ढूंढ़ने की कोशिश करता है, जिसकी थाने में 'जान-पहचान' हो। आज भी जब कोई आम आदमी किसी वजह से देर रात घर लौटता है और सुनसान रास्ते में पुलिस को देखता है तो उसे डर लगता है। ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जब सुनसान रास्ते में कुछ पुलिसकर्मियों ने ही आम आदमी की जेबें खाली कर दीं। सालभर पहले सोशल मीडिया पर एक वीडियो बहुत वायरल हुआ था, जिसमें किसी विदेशी पर्यटक से एक भारतीय पुलिसकर्मी रिश्वत लेता नजर आया था। यह बात वहीं दबकर रह जाती, अगर उस पर्यटक की कार में कैमरा न होता! उस वीडियो ने देश-विदेश में पुलिस की बहुत किरकिरी कराई। कई विदेशी नागरिकों ने टिप्पणियां की थीं कि वे ऐसी जगह पर्यटन के लिए नहीं जाएंगे, जहां पुलिस ही उन्हें लूट ले! डेनमार्क, नीदरलैंड, स्वीडन, जापान, सिंगापुर और जर्मनी जैसे देशों ने समय के साथ पुलिस व्यवस्था में जो सुधार किए, उनमें आम लोगों के साथ विनम्रतापूर्ण व्यवहार पर बहुत जोर दिया गया। जब कोई पीड़ित व्यक्ति थाने में फरियाद लेकर पहुंचता है और वहां मौजूद पुलिसकर्मी उससे अच्छा व्यवहार करता है तो उसकी पीड़ा निश्चित रूप से कुछ कम हो जाती है। क्या ही अच्छा हो, अगर हर थाने में ऐसे पुलिस अधिकारी-कर्मचारी हों, जो आम जनता का दु:ख-दर्द समझें! सरकारों को चाहिए कि वे भ्रष्ट, अकर्मण्य और बुरा व्यवहार करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ खूब सख्ती दिखाएं। उन्हें नौकरी से हटाएं। इसके साथ ही पुलिस और जनता के बीच जुड़ाव मजबूत करें। कई अपराध तो इस जुड़ाव के कारण ही खत्म हो जाएंगे।