इज़राइल कितना तैयार?

इज़राइल को अमेरिका का समर्थन प्राप्त है

इज़राइल कितना तैयार?

पिछले साल 7 अक्टूबर को हमास ने इज़राइल पर हमला बोला था

फ़िलिस्तीनी चरमपंथी संगठन हमास के राजनीतिक ब्यूरो के प्रमुख इस्माइल हानिया की हत्या से ईरान-इज़राइल संबंधों में तनाव चरम पर पहुंच गया है। भविष्य में इसके नतीजे विस्फोटक हो सकते हैं। ईरान के नए राष्ट्रपति के शपथ-ग्रहण समारोह में शामिल होने के बाद इस्माइल को जिस तरह मौत के घाट उतारा गया, वह इज़राइल का चिर-परिचित तरीका है। हमास ने स्वीकार किया है कि इस्माइल को निशाना बनाने के लिए इज़राइल ने हवाई हमला किया था। हालांकि पिछले साल 7 अक्टूबर को जब हमास ने इज़राइल पर हमला बोला था और कई लोगों की हत्याएं करते हुए सैकड़ों लोगों का अपहरण कर लिया था, उससे स्पष्ट संकेत मिल रहा था कि अब जवाबी कार्रवाई बहुत भयानक होगी तथा जो लोग इस घटना के पीछे हैं, उनके लिए मुश्किलें खड़ी होंगी। इज़राइल ने ऐसा ही किया। उसकी खुफिया एजेंसी मोसाद, जिसकी कार्यकुशलता को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे थे, ने अपने नेटवर्क को मजबूत किया और हमास के रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण ठिकानों की जानकारी जुटाई। उन पर इज़राइली बलों ने भारी बमबारी करते हुए हमास के कई लड़ाकों को मार गिराया और यह सिलसिला जारी है। इस कार्रवाई में कई निर्दोष लोग भी मारे गए, जिसके लिए इज़राइल की खूब आलोचना हुई थी। इज़राइली बलों की कार्रवाई में हमास के छोटे-बड़े लड़ाकों पर हमला होना तो तय था, लेकिन इस संगठन के शीर्ष नेतृत्व तक उनका पहुंचना चौंकाता है। जब ईरान में नए राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियान शपथ ग्रहण कर रहे थे, देश-विदेश से चर्चित मेहमान राजधानी में आए हुए थे, सुरक्षा चाक-चौबंद थी, इसके बावजूद इस्माइल पर हमला हो गया!

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यह तो वह समय था, जब ईरानी सुरक्षा बलों और खुफिया एजेंसियों से उम्मीद थी कि वे अपने किसी भी 'मेहमान' की हिफाजत में कोई जोखिम नहीं लेंगे। फिर भी कोई उनके घर में घुसकर इतनी बड़ी कार्रवाई कर गया! भले ही ईरान के ‘रिवोल्यूशनरी गार्ड’ की ओर से यह कहा जा रहा हो कि वह मामले की जांच कर रहा है और उसके बाद ही हत्यारे के बारे में बताएगा, लेकिन ईरान में सरकारी मीडिया शीर्ष नेताओं और अधिकारियों के हवाले से साफ कह चुका है कि इसमें इज़राइल का हाथ है। यह कोई बहुत बड़ा रहस्य नहीं है। सात अक्टूबर की घटना के बाद इज़राइल ने कसम खाई थी कि वह 'दोषियों' को दंडित करेगा। आश्चर्य की बात यह है कि ईरानी सुरक्षा बलों के घेरे को भेदकर इज़राइल इस्माइल हानिया तक कैसे पहुंचा! इससे शक की सुई ईरानी बलों के कर्मियों की ओर भी घूमती है। क्या किसी ने इज़राइल तक सटीक सूचना पहुंचाई, जिसके बाद उसने बिना एक पल गंवाए इस्माइल को उसके अंगरक्षक समेत उड़ा दिया? इज़राइल इसी तर्ज पर घातक कार्रवाई करते हुए ईरान के कई सैन्य अधिकारियों, वैज्ञानिकों और महत्त्वपूर्ण पदाधिकारियों को निशाना बना चुका है। अतीत में ईरान में रहकर इज़राइल के लिए जासूसी करते हुए कई लोग पकड़े जा चुके हैं। ऐसे मामलों में ईरान का रवैया बहुत सख्त रहा है। उसने दोषियों पर कोई रहम न करते हुए उन्हें मृत्युदंड दे दिया था। अब ईरान इस्माइल हानिया की हत्या मामले के तार भी जोड़ने की कोशिश करेगा। अधिकारियों पर दबाव है कि वे दोषियों को जल्द सामने लाएं। यह ईरान के शीर्ष नेतृत्व की साख पर भी सवाल है। उसने जनभावनाओं को ध्यान में रखते हुए अपने एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल पर लाल झंडा लगा दिया है, जो बलिदान का प्रतीक माना जाता है। अगर ईरान सीधे इज़राइल से टक्कर लेता है तो उसके लिए कई गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं। चूंकि उसकी अर्थव्यवस्था इस स्थिति में नहीं है कि वह किसी बड़े युद्ध का सामना कर सके। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इज़राइल को अमेरिका का समर्थन प्राप्त है। अगर ईरान कोई कार्रवाई नहीं करेगा तो जनता में आक्रोश पैदा हो सकता है। ऐसे में इज़राइल पर हमास और इसी श्रेणी के अन्य संगठनों के हमलों की आशंकाओं को बल मिलता है। इज़राइल उनका सामना करने के लिए कितना तैयार है, यह तो वक्त ही बताएगा।

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