खुशहाली की रोशनी

चीन दुनियाभर के बाजारों पर नजर रखता है

खुशहाली की रोशनी

चीनी माल का बहिष्कार करने की मुहिम चला देना ही काफी नहीं है

दीपावली पर देशवासियों का चीनी उत्पादों से मोहभंग होना स्वदेशी उत्पादों को प्रोत्साहन देने के लिए अच्छी शुरुआत है। हमने इस मामले में पहले ही बहुत देर कर दी है। चीन को भारतीय बाजारों से अरबों डॉलर की कमाई हो रही है। वह इस राशि का उपयोग भारतविरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देने में कर रहा है। 

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पाकिस्तान के कई आतंकवादी संगठन उसकी मदद से पल रहे हैं। भारतवासियों ने हाल के वर्षों में चीन के खिलाफ आवाज उठाने के लिए जिस तरह सोशल मीडिया को माध्यम बनाया, वह भी प्रशंसनीय है। दीपावली की खरीदारी की शुरुआत से पहले ही ऐसे संदेश सोशल मीडिया में वायरल होने लगते हैं। इनका खासा असर देखने को मिल रहा है। 

अब बाजारों में बहुत लोग इस बात का ध्यान रखते हुए खरीदारी कर रहे हैं कि चीनी माल न लें या बहुत कम लें। उन्होंने मिट्टी के दीपक, तेल, बाती, माला और पूजन सामग्री खरीदी, जो विशुद्ध रूप से स्वदेशी हैं। हालांकि कई घरों पर अभी चीनी झालरें जगमगा रही हैं। लोगों का कहना है कि ये उन्होंने बहुत पहले खरीदी थीं। 

वहीं, कुछ लोग अब भी चीनी माल ले रहे हैं। उनका कहना है कि बाजार में जो चीजें उन्हें 'बजट के अनुकूल' लगेंगी, वे उन्हें खरीदेंगे। निस्संदेह लोग इस बात के लिए स्वतंत्र हैं कि वे बाजार में मूल्य चुकाकर मनचाही चीजें खरीदें। किसी को रोका नहीं जा सकता। हमें उनकी इच्छा का सम्मान करना होगा। साथ ही, इस बात पर विचार करना होगा कि चीनी चीजें भारत में इतनी लोकप्रिय क्यों हुईं? 

आखिर क्या वजह है कि त्योहारों से पहले हमारे बाजारों में ये दिखने-बिकने लगती हैं। प्रशासन की लाख कोशिशों के बावजूद मकर संक्रांति पर चीनी मांझा कई लोगों को लहूलुहान करता है। होली से पहले रंग-बिरंगी चीनी पिचकारियां नजर आने लगती हैं। रक्षाबंधन पर भाइयों की कलाइयों पर सुशोभित होने वाली राखियां भी चीन बना रहा है। वहां जो लोग इस धंधे में हैं, उन्हें पता भी नहीं होगा कि रक्षाबंधन किस तिथि को और क्यों मनाया जाता है!

चीन दुनियाभर के बाजारों पर नजर रखता है। जहां से मांग आती है, वह अपने कारखानों से पूर्ति कर देता है। चीनी माल की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठते रहते हैं, लेकिन इस बात से सभी सहमत होंगे कि वह सस्ता माल बनाता है। हालांकि अब वह महंगी और गुणवत्तापूर्ण चीजें बनाने की ओर ध्यान दे रहा है। 

वास्तव में आज चीन के पास हर ग्राहक की मांग के मुताबिक माल है। उसने अपने उद्योगों का विस्तार किया। साथ ही, समय-समय पर माल के आकार-प्रकार में बदलाव करता गया। बाजार का सीधा-सा गणित यह है कि जो माल ग्राहक को आकर्षक लगेगा और उसके बजट में होगा, वह उसे खरीदेगा। भारतीय कारखानों में बनीं चीजें भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में खास मुकाम रखती हैं, लेकिन इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि बिक्री में चीन का हिस्सा ज्यादा है। 

ऐसे में हमारे त्योहारों से पहले चीनी माल का बहिष्कार करने की मुहिम चला देना ही काफी नहीं है। बाजारों में भारतीय उत्पादों का होना भी बहुत जरूरी है। ग्राहक उनकी कीमतों और गुणवत्ता के संबंध में संतुष्ट होने चाहिएं। भारत में उद्योगों को मजबूत बनाने के लिए बहुत प्रयासों की जरूरत है। सबसे पहले, युवाओं में ऐसी सोच तो पैदा करें। 

क्या वजह है कि बीजिंग, गुआंगज़ौ, शंघाई, शेन्ज़ेन जैसे शहरों में बैठे लोग जानते हैं कि भारत में किस समय किस माल की खपत होगी? वे विभिन्न उत्पाद बनाकर भेज देते हैं, जबकि हम अपने ही बाजारों में उन्हें टक्कर देने में संघर्ष कर रहे हैं? 

हमारे शहरों से लेकर दूर-दराज के गांवों तक, हर मौसम में जरूरत के मुताबिक इस्तेमाल होने वाला चीनी माल आसानी से दिख जाता है। क्या हम अपने बाजारों में पैठ नहीं जमा सकते? इसके लिए स्कूली पढ़ाई के दिनों से विद्यार्थियों में नई सोच पैदा करनी होगी। देश में अपने उद्योगों से ही खुशहाली की रोशनी आती है। विदेशी झालरों का मोह त्यागना ही होगा। अनंत शुभकामनाएं!

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