किस राह पर कनाडा?
खालिस्तानी चरमपंथियों ने 'लाल रेखा' पार कर ली है
कनाडा के बुद्धिजीवी वर्ग को भी उग्रवादियों के खिलाफ आवाज उठानी होगी
कनाडा के ब्रैम्पटन में हिंदू सभा मंदिर पर कट्टरपंथियों और उग्रवादियों द्वारा किया गया हमला अत्यंत निंदनीय है। खालिस्तानी झंडे लेकर आए हमलावरों में इतना दुस्साहस पैदा हो गया है! यह होना ही था, क्योंकि इस देश के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो जिस तरह वोटबैंक और विभाजन की राजनीति कर रहे हैं, उससे कनाडा का माहौल खराब होता जा रहा है।
कभी शांत और सहिष्णु सामाजिक तानेबाने के लिए मशहूर रहा कनाडा अब कट्टरपंथियों, उग्रवादियों, अलगाववादियों और भारत से घृणा करने वालों का सुरक्षित ठिकाना बन चुका है। जस्टिन ट्रूडो का खालिस्तान समर्थकों के प्रति यह अनुराग कनाडा को भविष्य में बहुत महंगा पड़ेगा।इस खुशहाल देश में जिस तरह हिंसक तत्त्वों को 'अनमोल रत्न' मानकर पनाह दी जा रही है, उसे देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि अगर यही सिलसिला कुछ साल और चला तो कनाडा दूसरा पाकिस्तान बन जाएगा। जस्टिन ट्रूडो ने मंदिर पर हमला होने के बाद इसे 'अस्वीकार्य' बताते हुए 'त्वरित कार्रवाई करने पर’ स्थानीय अधिकारियों को धन्यवाद दिया और हर कनाडाई को अपने धर्म का स्वतंत्र तरीके से एवं सुरक्षित माहौल में पालन करने के अधिकार को लेकर अपनी चिर-परिचित शैली में उपदेश भी दिया।
क्या ट्रूडो मानते हैं कि कनाडा का माहौल हिंदुओं के लिए पहले से ज्यादा सुरक्षित हुआ है? मंदिर पर किया गया हमला आम अपराधियों का कृत्य नहीं है। इसके जो वीडियो सामने आए, उन्हें देखकर यह शक यकीन में बदल जाता है कि कनाडा में हिंदू समाज के खिलाफ बड़ी साजिश रची जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे 'हिंदू मंदिर पर जानबूझकर किया गया हमला' करार देकर कड़ी निंदा की है, तो उनके शब्द कनाडा की उस हकीकत को बयान करते मालूम होते हैं, जिसे छिपाने की नाकाम कोशिश हुई है।
क्या यह बात हैरान नहीं करती कि वहां खालिस्तान के समर्थन में कथित विरोध प्रदर्शन कर रहा एक शख्स पुलिस अधिकारी था? जब रक्षक ही भक्षक बनेंगे तो देश कितना सुरक्षित होगा? उस अधिकारी की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं तो ट्रूडो सरकार लीपापोती पर उतर आई।
अधिकारी को 'निलंबित' करने की सूचना कितने मासूमाना अंदाज़ में दी गई- 'पुलिस सोशल मीडिया पर आए उस वीडियो से अवगत है, जिसमें कनाडा पुलिस का एक अधिकारी प्रदर्शन में शामिल दिखता है। वैसे यह पुलिस अधिकारी उस वक्त ड्यूटी पर नहीं था।'
क्या कनाडा का कोई सरकारी अधिकारी, खासकर जो उसकी सुरक्षा से जुड़ा हो, यह अधिकार रखता है कि जब वह ड्यूटी पर न हो तो कट्टरपंथियों, उग्रवादियों और अलगाववादियों के झुंड में शामिल होकर हुड़दंग मचाए? जब सरकारी अधिकारी ऐसे कथित प्रदर्शनों में शामिल होने लगेंगे तो क्या वे निष्पक्षता से अपने कर्तव्य निभा सकेंगे?
पुलिस अधिकारी तो अपने सेवाकाल में कई लोगों से मिलते हैं, जिनमें ज्यादातर वे होते हैं, जिन्हें मदद की जरूरत होती है। क्या उक्त अधिकारी ऐसे लोगों से बदसलूकी नहीं करता होगा, जिनके प्रति यह अपने मन में घृणा लिए फिर रहा है? जस्टिन ट्रूडो अपने सियासी फायदे के लिए वैमनस्य की जो आग भड़का रहे हैं, वह सरकारी तंत्र को भी अपनी चपेट में लेने लगी है। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि ट्रूडो जिस राह पर कनाडा को लेकर जा रहे हैं, वह भविष्य में गहरे सामाजिक विभाजन को जन्म दे।
कनाडाई सांसद चंद्र आर्य ने सत्य कहा कि खालिस्तानी चरमपंथियों ने 'लाल रेखा' पार कर ली है। कनाडा में रहने वाले हिंदुओं को अपनी सुरक्षा के लिए आगे आना होगा, अपने अधिकारों की मांग करनी होगी। सिर्फ सोशल मीडिया पर कुछ शेयर कर देना काफी नहीं है। संगठित होकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन भी करना होगा। खामोश रहने से उग्रवादियों के हौसले और ज्यादा बुलंद होंगे।
कनाडा के बुद्धिजीवी वर्ग को भी उग्रवादियों के खिलाफ आवाज उठानी होगी। अन्यथा भविष्य में शौक़ बहराइची का मशहूर शे'र ('बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही ... काफ़ी था ...') कुछ शब्दों के बदलाव के साथ कनाडा के लिए लिखे जाने की आशंका है! वे इसमें ट्रूडो या किसी खालिस्तानी का नाम शामिल करने के लिए स्वतंत्र होगे।