इन्साफ की उम्मीद

सिर्फ धन से परिवार नहीं चलते

इन्साफ की उम्मीद

बिल्कुल ही अनजान परिवार में रिश्ता तय करने के अपने जोखिम हैं

अतुल सुभाष आत्महत्या मामले में बेंगलूरु पुलिस द्वारा आरोपियों की गिरफ्तारी से इन्साफ की उम्मीद जगी है। अब अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि वे पर्याप्त सबूत जुटाएं और अतुल को इन्साफ दिलाएं। इस समूचे घटनाक्रम ने कई बड़े सबक दिए हैं। अब ऐसा न हो कि चार दिन बाद लोग किसी सेलिब्रिटी की शादी को लेकर चर्चा करने लगें और सबकुछ भूल जाएं। यह हमारे पारिवारिक और सामाजिक जीवन से संबंधित अत्यंत महत्त्वपूर्ण बिंदु है। इस घटना के बाद कई जगह रिश्तों में अविश्वास बढ़ने की आशंका है, जिसे हमें रोकना होगा। अगर किसी रिश्ते से विश्वास खत्म हो जाए तो पीछे क्या रह जाता है? विश्वास है तो प्रेम है, प्रेम है तो परिवार है, परिवार है तो समाज है और समाज है तो देश है। क्या वजह है कि हमारे दादा, परदादा के वैवाहिक रिश्ते अटूट होते थे? वे आखिरी सांस तक रिश्ते निभाते थे। यही नहीं, एक जाति के लोग दूसरी जाति में धर्मभाई/बहन बनाते थे और उनका बहुत सम्मान करते थे! दूसरी ओर, आज कई परिवारों में नौजवान बच्चों की शादी होते ही सालभर में मामले अदालतों तक चले जाते हैं! पहले, शादी के लिए लड़का/लड़की ढूंढ़ते तो उसके खानदान, चाल-चलन आदि के बारे में सबकुछ मालूम हो जाता था। अब लोग धोखा खा रहे हैं। महानगरों से लेकर कस्बों तक प्राइवेट डिटेक्टिव की मांग बहुत बढ़ गई है। लोग सोचते हैं कि शादी में लाखों-करोड़ों रुपए खर्च कर रहे हैं ... कुछ रुपए डिटेक्टिव पर खर्च करने में क्या हर्ज है? बात ठीक भी है। जब ब्याह-शादी का मतलब ही लाखों-करोड़ों का खर्च हो तो तसल्ली कर लेनी चाहिए।  

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वास्तव में जहां रिश्ता सिर्फ और सिर्फ धन देखकर किया जाता है, वहां देर-सबेर दरार पड़ती ही पड़ती है। गुजर-बसर के लिए धन एक हद तक जरूरी है। सिर्फ धन से परिवार नहीं चलते। कितने ही धनी परिवार ऐसे हैं, जिनके सदस्यों के आपस में ही मुकदमे चल रहे हैं। कोई झुकने को तैयार नहीं है। यह भी देखा गया है कि जब वे लोग साधारण-से घर में रहते थे, साथ बैठकर खाना खाते थे, साथ धारावाहिक देखते थे, साथ घूमने जाते थे तो किसी ने सपने में भी मुकदमेबाजी के बारे में नहीं सोचा था। जब 'मकान' भव्य हो गया, पैसा हावी हो गया, सब अलग-अलग बैठकर खाना खाने लगे, अलग बैठकर ओटीटी पर मनपसंद सामग्री देखने लगे, अलग टिकटें बुक करवाकर घूमने लगे तो छोटी-छोटी बातों का हल मुकदमेबाजी में सूझने लगा! भारतीय समाज में यह प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, जो अत्यंत आत्मघाती है। लोगों को सेलिब्रिटी के जूतों, हेयर स्टाइल, डायलॉग के बारे में बहुत कुछ याद रहता है, लेकिन यह याद नहीं रहता कि पिछली बार परिवार के साथ दिल खोलकर कब हंसे थे! जिसके पास जितना ज्यादा पैसा रहता है, वह अन्य लोगों से उतनी ही ज्यादा दूरी बनाने लगता है। जिसके पास ज्यादा पैसा नहीं होता, उसकी सही बात को भी खारिज कर दिया जाता है। उसके बच्चों से स्नेह कम ही जताया जाता है। जब रिश्ते की बुनियाद विश्वास और प्रेम के बजाय धन को बनाएंगे तो सर्वत्र समस्याएं ही पैदा होंगी। वह रिश्ता तब तक ही चलेगा, जब तक धन रहेगा। जब धन नहीं रहेगा, तो वह रिश्ता भी बिखर जाएगा। तब लोगों की आखिर तक यही कोशिश रहेगी कि थोड़ा पैसा और निकलवा लूं। अपने बच्चों के रिश्ते अथाह धन, लंबी-चौड़ी जायदाद, रुतबा, ओहदा देखकर तय करने के बजाय परिवार, संस्कार, चरित्र, ईमानदारी, सदाचार, समझदारी और अच्छा स्वभाव देखकर करेंगे तो उनके सुखी रहने की संभावना ज्यादा रहेगी। बिल्कुल ही अनजान परिवार में रिश्ता तय करने के अपने जोखिम हैं। इस बिंदु को ध्यान में रखना चाहिए।

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