'सिविक सेंस' की इतनी कमी क्यों?

यह एक गंभीर सामाजिक समस्या है

'सिविक सेंस' की इतनी कमी क्यों?

हमारे देश की सुंदरता को बदरंग कर रही है

ओडिशा के भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन पर थूकने और गंदगी फैलाने वाले सैकड़ों लोगों पर जुर्माना लगाकर कड़ा संदेश दिया गया है। हालांकि जुर्माना लगाने मात्र से स्थिति बदलने वाली नहीं है। भारत में आज़ादी के बाद शिक्षा पर अरबों-खरबों रुपए खर्च किए गए। आज सब लोग जानते हैं कि सार्वजनिक स्थानों पर थूकना, गंदगी फैलाना अच्छी बात नहीं है। फिर भी कई लोग ऐसा करते हैं! शिक्षा पर इतनी भारी-भरकम राशि खर्च करने के बावजूद यह स्थिति क्यों है? रेलवे स्टेशन ही नहीं, अस्पताल, बस स्टैंड, सरकारी दफ्तर, सार्वजनिक स्थान ... सब जगह तस्वीर एक जैसी नजर आती है। कई लोग खैनी, गुटखा, पान और न जाने कितने प्रकार के 'पदार्थ' मुंह में दबाकर इधर-उधर 'पिचकारी' छोड़ते रहते हैं। सरकारें इन पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगातीं? एक तो सेहत का नुकसान, ऊपर से सार्वजनिक स्थानों पर गंदगी! ऐसी घटनाएं 'सिविक सेंस' की गहरी कमी को उजागर करती हैं। यह एक गंभीर सामाजिक समस्या है, जो हमारे देश की सुंदरता को बदरंग कर रही है। क्या वजह है कि जब हम न्यूयॉर्क, लंदन या टोक्यो जैसे शहरों के रेलवे स्टेशनों पर जाते हैं तो वहां बहुत अनुशासित होते हैं, नियमों का पूरा-पूरा पालन करते हैं, कतार में खड़े होते हैं, गंदगी फैलाने का तो ख़याल भी मन में नहीं आता है, लेकिन जैसे ही अपने देश के किसी रेलवे स्टेशन पहुंचते हैं तो नियमों का पालन करने में ढिलाई बरतने लगते हैं? नियमों का उल्लंघन सब लोग नहीं करते, लेकिन बहुत लोग करते हैं। वे गंदगी फैलाते हैं। जब कोई उन्हें टोकता है तो वे झगड़ा करने लगते हैं। यह दलील देते हैं कि अकेला मैं ही नहीं फैला रहा, 'उस व्यक्ति' को रोको!

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दरअसल सिविक सेंस की यह कमी रातोंरात पैदा नहीं हुई है। हमारी शिक्षा व्यवस्था में उन बातों को सिखाने पर कोई खास जोर नहीं दिया गया, जो देश को स्वच्छ एवं सुंदर बना सकें। अगर बच्चों को इस बात का गहराई से बोध करा दिया जाए कि गंदगी फैलाना बहुत बुरी बात है तो वे स्वच्छता को अपने जीवन का हिस्सा बनाएंगे। उनके सामने बड़ों को आदर्श प्रस्तुत करना होगा। पहले वे स्वच्छता संबंधी आदतों को अपनाएं। हर पखवाड़े या हर महीने, एक दिन ऐसा तय करना चाहिए, जब सब लोग मिलकर अपने मोहल्ले की सफाई करें। जब बच्चे देखते हैं कि उनसे बड़े लोग सड़कों और सार्वजनिक स्थानों पर थूकते हैं, इधर-उधर कचरा फैलाते हैं, बसों-ट्रेनों में मूंगफली खाकर छिलके बिखेरते हैं, तो वे खुद ऐसा क्यों नहीं करेंगे? जब वे अपने चारों ओर यही सब देखकर बड़े होंगे तो भविष्य में खुद गंदगी फैलाएंगे। इसके बाद यह सिलसिला आगे बढ़ता जाएगा। जो लोग सार्वजनिक स्थानों पर थूकते या गंदगी फैलाते हैं, उनकी आदतों पर काफी हद तक लगाम लगाई जा सकती है। इसके लिए वहां सीसीटीवी कैमरे स्थापित करने चाहिएं। जो व्यक्ति स्वच्छता संबंधी नियमों का उल्लंघन करे, उसकी सफाई उससे ही करवाई जाए। इसके साथ जुर्माना लगाया जा सकता है। इस बात का प्रचार सोशल मीडिया और अख़बारों के जरिए किया जाए। कुछ ही दिनों में लोगों की आदतों में सुधार दिखाई देने लगेगा। हालांकि इससे पहले जरूरी है कि पर्याप्त डस्टबिन लगाए जाएं। जगह-जगह मोटे अक्षरों में चेतावनी लिखी जाए कि 'आप कैमरे की नजर में हैं ... अगर यहां गंदगी फैलाएंगे तो उसकी सफाई आप ही को करनी होगी, जुर्माना लगेगा सो अलग!' यह प्रयोग एक महीने करके देखें, नतीजे उत्साहजनक मिलेंगे। सफाई कराने और जुर्माना लगाने में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।

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