सरहद पार से साजिश?
कोई भी प्रणाली 100 प्रतिशत कारगर नहीं हो सकती
बांग्लादेश और नेपाल में तस्कर बहुत सक्रिय हैं
उत्तर प्रदेश के संभल में जामा मस्जिद-हरिहर मंदिर सर्वेक्षण संबंधी विवाद के दौरान भड़की हिंसा के बाद पाकिस्तान निर्मित कारतूस बरामद होने का पुलिस का दावा चौंकाता है। यह कोई सामान्य घटना नहीं है। असामाजिक तत्त्व, उपद्रवी आदि पहले भी हिंसा के दौरान कारतूसों का इस्तेमाल करते रहे हैं, लेकिन वे 'स्थानीय' होते हैं। अगर सरहद पार से ऐसी सामग्री आती है तो यह निश्चित रूप से खतरे की घंटी है। पाकिस्तान हमेशा भारत का अहित चाहता है। वह आतंकवादियों को प्रशिक्षण, हथियार और विस्फोटक सामग्री देकर भारत भेजता रहता है। ऐसे ज्यादातर आतंकवादी मुठभेड़ों में मारे जाते हैं। भारतीय खुफिया एजेंसियां उनका पता लगाने के लिए मुस्तैद रहती हैं, लेकिन कोई भी प्रणाली 100 प्रतिशत कारगर नहीं हो सकती। अगर पाकिस्तानी कारतूस भारत भेजे गए होंगे तो उन्हें कौन लेकर आया होगा? निश्चित रूप से ऐसी चीजें या तो कोई आतंकवादी लेकर आ सकता है या तस्कर 'मदद' कर सकते हैं। किसी आतंकवादी द्वारा कारतूस लेकर उन्हें यहां तक पहुंचाना आसान नहीं है, तो असंभव भी नहीं है। एलओसी के रास्ते वर्षों से आतंकवादी आते रहे हैं। हो सकता है कि कोई आतंकवादी उस समय भारतीय सुरक्षा बलों के हत्थे नहीं चढ़ा। उसने बाद में अपने किसी मददगार के हाथ उन्हें इधर पहुंचा दिया। हालांकि इस रास्ते में जोखिम बहुत ज्यादा है। यहां से आने वाले ज्यादातर आतंकवादी देर-सबेर ढेर हो ही जाते हैं। वहीं, बांग्लादेश और नेपाल में पाकिस्तान के लिए काम करने वाले तस्कर बहुत सक्रिय हैं।
जिस तरह आतंकवादी अपनी गतिविधियों के संचालन के लिए नेटवर्क खड़ा करते हैं, उसी तरह तस्करों का काम भी नेटवर्क से चलता है। ऐसे में उक्त मामले की गहराई से जांच होने पर ही असली गुनहगारों के साथ उनके मददगार बेनकाब हो सकते हैं। संभल के पुलिस अधीक्षक कृष्ण कुमार विश्नोई के इस बयान के गहरे निहितार्थ हैं कि ये कारतूस ‘पाकिस्तान ऑर्डिनेंस’ में बने हुए हैं। इन कारखानों में बनने वाली सामग्री पर पाक सरकार और फौज की कड़ी नजर होती है। वहां कार्यरत कर्मचारी स्वेच्छा से कोई चीज बाहर लेकर नहीं जा सकते। ये कारखाने गोलियां, बम और अत्यंत घातक विस्फोटक सामग्री तैयार करते हैं, जिनका इस्तेमाल पाकिस्तानी फौज और अन्य सुरक्षाबलों द्वारा किया जाता है। अगर संभल में इस्तेमाल हुए कारतूसों का संबंध ‘पाकिस्तान ऑर्डिनेंस’ से है तो इसका साफ मतलब है कि ये वहां की सरकार और फौज की इजाजत से ही यहां आए हैं। इसमें आतंकवादियों या तस्करों ने अपनी भूमिका निभाई होगी, लेकिन वे सिर्फ माध्यम थे। पाकिस्तान में हथियार एवं विस्फोटक सामग्री निर्माण से संबंधित कारखानों में मामूली घुसपैठियों, आतंकवादियों, तस्करों आदि को सीधे प्रवेश की अनुमति नहीं होती है। आईएसआई या फौज के वरिष्ठ अधिकारी उनके आकाओं से संपर्क करते हैं। उसके बाद 'निचले स्तर' पर चीजें पहुंचाई जाती हैं। हाल के वर्षों में उत्तर प्रदेश एटीएस ने काफी संख्या में ऐसे लोगों को गिरफ्तार किया है, जिन पर आईएसआई के लिए जासूसी करने का आरोप है। उनमें से कुछ लोग ऐसे भी थे, जो आईएसआई को सैन्य महत्त्व से जुड़े स्थानों के अलावा धार्मिक स्थानों की तस्वीरें भी भेजा करते थे। निश्चित रूप से ये दोनों स्थान देश की सुरक्षा एवं आस्था की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। वहां उपद्रवी तत्त्वों के पास घातक सामग्री पहुंचना कई समस्याएं खड़ी कर सकता है। उम्मीद है कि भारतीय एजेंसियां हर कोण से जांच कर शांति व भाईचारे के शत्रुओं का पर्दाफाश करेंगी।