आतंक का बदलता चेहरा

आतंक का बदलता चेहरा

शनिवार रात लंदन में फिर एक बार आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में तीन हमलावरों ने पहले एक वैन को भी़ड में घुसे़डा और फिर चाकुओं से हमला करते हुए ७ लोगों को मौत के घाट उतार दिया। ५० से अधिक लोग इस हमले में घायल हुए हैं। वर्ष २००४ में हुए मेड्रिड ट्रेन हमले में १९२ लोगों की जान गयी थी और २०५० से अधिक घायल हुए थे। इस हमले के बाद से यूरोप के देशों ने आतंकवाद पर काबू पाने के उद्देश्य से कुछ कठोर नियम बनाए और उम्मीद जताई जाने लगी कि आतंकवादी गतिविधियों पर रोक लगाई जा सकेगी। परंतु ऐसा नहीं हुआ। मुख्यतौर पर फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम और इंग्लैंड आतंकी निशाने पर बने रहे हैं। वर्ष २०१५ में हुए पेरिस हमले में १३७ लोगों को अपनी जान गंवानी प़डी थी। पिछले ही महीने मेनचेस्टर में एक गायिका के कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे लोगों पर बम हमला हुआ था जिसमंे २३ लोगों ने अपनी जान गंवाई थी।जिस तरह से पिछले कुछ अरसे से आतंकवाद यूरोप के अलग-अलग क्षेत्रों में दस्तक दे रहा है उससे यह सा़फ हो चुका है कि सीरिया, लीबिया और अन्य संघर्ष ग्रस्त देशों में फ्रांस सहित अन्य यूरोपी देशों के दखल से आतंकी संगठन नाखुश हैं। आतंकी संगठन जिस तरह से इन हमलों को अंजाम दे रहे हैं उससे पता चलता है कि भले ही सुरक्षा तंत्र को चाक चौबंद कर लिया जाए लेकिन ऐसे हमलों को रोक पाना नामुमकिन जैसा हो चुका है। हमलावर भी़ड भा़ड वाले इलाकों में अपनी नापाक हरकत को अंजाम देते हैं। आम जनता ऐसे हमलों से निपटने के लिए तैयार नहीं होती और आम तौर पर महिलाओं और बच्चों को आसान निशाना बनाया जाता है। शनिवार के हमले में सामने आया है कि हमलावर चा़कू मार कर लोगों की हत्या करने की कोशिश कर रहे थे, ७ लोगों को मारने और ४८ को घायल करने में हमलावरों को केवल चाँद लम्हे ही लगे। ऐसे में प्रशासन केवल हमलों की जवाबी कार्यवाही करने के लिए सदा तैयार रह सकता है। आतंकी हमलों का रूप भी बदल रहा है। जिस तरह से इन आत्मघाती हमलों में सामने आया है कि अधिकांश हमलावर युवा हैं और जो मुख्य तौर पर इस्लामिक कट्टरपंथ की तरफ आकर्षित रहे हैं। इन युवकों को इंटरनेट के जरिए आतंकी संगठनों से संपर्क करने का मौका मिला। साथ ही आतंकियों को यह भी पता चल जाता है कि बा़जारों में आसानी से उपलब्ध रो़जमर्रा की वस्तुओं से घातक बम बनाने की प्रक्रिया क्या होती है। रसोई में इस्तेमाल आने वाला प्रमुख औ़जार ’’चा़कू’’ का शनिवार के हमले में जिस तरह से इस्तेमाल किया गया है वह चिंता को अधिक ब़डा देता है। ऐसे हमले घातक तो होते हैं लेकिन मानसिक नीचता को भी दर्शाते हैं। विश्व में कहीं भी ऐसे हमले आसानी से किए जा सकते हैं। आतंकी ताकतों के लिए यह ल़डाई दिन प्रतिदिन आसान होती जा रही है। उन्हें जनता के बीच खौफ ़फैलाने के लिए केवल कुछ गुमराह युवा और आसानी से मिलने वाली वस्तुओं की ही आवश्यकता है। वहीं दूसरी और प्रशासन की चुस्त प्रबल जवाबी कार्यवाही केवल क्षति को कम करेगी। भविष्य में यह भी संभव है कि विश्व के अलग-अलग देशों की सरकारें अपने नागरिकों के धर्म, मानसिक संतुलन, इंटरनेट पर बिताए गए समय और सोशल मीडिया पर उनके विचारों के आधार पर उन पर निवारक कार्यवाही करेंगी।

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