राजस्थान चुनाव: वसुंधरा का दबदबा जनता को नहीं मंजूर, फिर भी आलाकमान मजबूर?

राजस्थान चुनाव: वसुंधरा का दबदबा जनता को नहीं मंजूर, फिर भी आलाकमान मजबूर?

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जयपुर। राजस्थान में विधानसभा चुनावों की तारीख करीब आने के साथ ही सियासी हलचल बढ़ती जा रही है। भाजपा ने 200 सदस्यीय विधानसभा के लिए अपने 131 उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। इनमें से 85 विधायकों को पार्टी ने दोबारा मैदान में उतारा है। चर्चा है कि इनमें से ज्यादातर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के करीबी हैं। पहले चर्चा थी कि इस बार केंद्रीय नेतृत्व बड़े पैमाने पर विधायकों के टिकट काट सकता है लेकिन ऐसा नहीं हुआ और अब तक सिर्फ 25 नए चेहरों को उम्मीदवार बनाया गया।

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हालांकि अभी दूसरी सूची आनी शेष है और उसे लेकर भी कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं, पर बड़ी तादाद में मौजूदा विधायकों को दोबारा टिकट मिलने से यह संकेत जाता है कि इसमें वसुंधरा राजे का दबदबा रहा है। प्रदेश इकाई में वरिष्ठ नेताओं में मतभेद रहे हैं। वर्ष 2012 में जब वरिष्ठ भाजपा नेता गुलाब चंद कटारिया मेवाड़ में चुनाव यात्रा निकालना चाहते थे तो वसुंधरा की नाराजगी सामने आई। इसके बाद उन्हें यात्रा का विचार निरस्त करना पड़ा।

हालांकि अगले साल हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को मोदी लहर का जबरदस्त साथ मिला। गुजरात विधानसभा चुनाव जीत चुके मोदी को केंद्र में लाने की जोरशोर से मांग हो रही थी। उन्हें चुनाव प्रचार की बागडोर सौंपने के बाद राजस्थान में मतदाताओं ने सरकार बदल दी। राजस्थान में कुछ दशकों से यह परंपरा रही है कि यहां एक ही पार्टी को जनता दोबारा सत्ता नहीं सौंपती। वर्ष 2013 के चुनाव इस परंपरा के पालन से कहीं ज्यादा मोदी लहर का परिणाम थे। पार्टी ने 163 सीटें जीती थीं।

इसके बाद एक बार फिर वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बनाई गईं। इस कार्यकाल में भी पार्टी नेताओं के साथ उनके मतभेद उभरकर सामने आए। वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवारी ने भाजपा छोड़कर खुद की पार्टी बना ली। चर्चा है कि टिकट वितरण को लेकर केंद्रीय नेतृत्व ने भी वसुंधरा राजे के ज्यादातर सुझाव माने और उन्हीं नामों पर मोहर लगा दी।

हालांकि अभी पार्टी ने सरकार के कई मंत्रियों की सीट पर फैसला लंबित रखा है। इसके पीछे स्थानीय समीकरणों के अलावा उनके प्रदर्शन को वजह माना गया है। इन पर जल्द फैसला होने की संभावना जताई जा रही है। दूसरी ओर आम मतदाता प्रदेश सरकार से रोजगार, महिला सुरक्षा, सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार, शिक्षा, चिकित्सा के संबंध में तीखे सवाल पूछ रहा है। राजस्थान में एक बात चौंकाती है कि यहां काफी लोगों का रुख मोदी को लेकर तो नरम है लेकिन बात जब वसुंधरा राजे की हो तो उनके मिजाज बदल जाते हैं।

टिकटों का ऐलान होने के साथ ही राजधानी जयपुर के चौक-चौराहों पर यह चर्चा आम है कि इस बार केंद्रीय नेतृत्व ने राजस्थान चुनाव वसुंधरा राजे को सौंपकर यह संकेत दिया है कि यदि भाजपा भारी बहुमत से जीतकर आई तो पार्टी में उनका कद और बढ़ जाएगा। इसके उलट, यदि जनता ने सरकार बदलने की परंपरा कायम रखी तो वसुंधरा के लिए भी वापसी आसान नहीं होगी।

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