आरक्षण का लॉलीपॉप
आरक्षण का लॉलीपॉप
गुजरात में आरक्षण के जिस लालीपॉप से हार्दिक पटेल खुश हैं और दावा कर रहे हैं कि ५० फीसदी से अधिक आरक्षण दिया जा सकता है, वह एक पूरे समुदाय को भुलावे में रखने की कोशिश से अधिक कुछ है ही नहीं। संविधान विशेषज्ञ डॉ. सुभाष कश्यप की मानें तो संविधान में कहीं भी लिखा नहीं है कि आरक्षण दिया जाए अथवा नहीं। भारतीय संविधान सभा के विमर्श में आरक्षण जरूर शामिल था। सामाजिक असमानता और आर्थिक असंतुलन को समाप्त करने दलितों और आदिवासी जातियों को सिर्फ १० साल के लिए नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण देना तय हुआ था लेकिन आजादी के ७० सालों के दौरान यह अवधि ब़ढाई जाती रही और अब आरक्षण एक राजनीतिक हथियार बन गया है। असमानता और असंतुलन के मूल्यांकन न जाने किए गए या नहीं, लेकिन आरक्षण जारी है। अब सवाल यह उठने लगा है कि उस सामान्य वर्ग की नौकरियों और शिक्षा का क्या होगा जो आरक्षण के कारण उनके हाथों से फिसल गई हैं? एक दिन वे भी आरक्षण का शोर मचा सकते हैं। मुद्दा गुजरात के पटेलों का है। उन्हें आरक्षण की दरकार ही नहीं है। दुनिया भर में उनके कारोबार फैले हैं। पटेल बुनियादी तौर पर व्यवसायी हैं। गुजरात के सूरत शहर में ही करीब ५००० छोटे-ब़डे कारखाने हैं, जो हीरे का कारोबार करते हैं। जो कारोबारी नहीं हैं, वे हीरा तराशते हैं, उसका सौंदर्य ब़ढाते हैं, पॉलिश करते हैं। उन्हें आरक्षण वाली नौकरी नहीं चाहिए। अमरीका में अधिकतर राजमार्गों पर पटेलों के मॉल, पेट्रोल पंप और अन्य ब़डी दुकानें/शोरूम हैं। गुजरात में न जाने किन पटेलों की जमीनें छिन गई हैं, आर्थिक स्रोत सूख गए हैं कि वे आरक्षण पर आमादा हैं? दरअसल यह आरक्षण संभव ही नहीं है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में नौ जजों की संविधान पीठ का फैसला है कि सरकारी नौकरियों और शिक्षा में ५० फीसदी से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता। हालांकि तमिलनाडु एक अपवाद है, जहां ६९ फीसदी आरक्षण है-५० फीसदी ओबीसी, १८ फीसदी दलित और एक फीसदी आदिवासी। तब यह कानून न्यायिक समीक्षा के दायरे में नहीं था। २०१० में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह भी फैसला दिया कि ५० फीसदी से ज्यादा आरक्षण तभी दिया जा सकता है, जब नागरिकों और जातियों का वैज्ञानिक डाटा उपलब्ध हो। सवाल है कि गुजरात में पाटीदारों के आरक्षण की मांग कितनी वैध और अवैध है? अब आरक्षण का वादा घोषणा पत्र में दर्ज करने, आरक्षण देने का आश्वासन देने, उसे चुनाव के दौरान खूब प्रचारित करने से कांग्रेस का क्या जाता है? यदि आरक्षण का बिल राज्य विधानसभा में पारित हो भी गया, तो अदालत उसे खारिज कर देगी, यह तय है।