अभिषेक वर्मा: अर्जुन की तरह लक्ष्य पर नज़र, निशानेबाजी के विश्व सिरमौर

अभिषेक वर्मा: अर्जुन की तरह लक्ष्य पर नज़र, निशानेबाजी के विश्व सिरमौर

अभिषेक वर्मा: अर्जुन की तरह लक्ष्य पर नज़र, निशानेबाजी के विश्व सिरमौर

फोटो स्रोत: ट्विटर अकाउंट।

नई दिल्ली/भाषा। चार साल तक इंजीनियरिंग और तीन साल तक कानून की पढ़ाई करने के बाद अभिषेक वर्मा ने जब निशानेबाजी में हाथ आजमाने का फैसला किया तो उनके फैसले को सही ठहराने वाले लोगों की संख्या ज्यादा नहीं थी, लेकिन अपना सब कुछ दांव पर लगाकर अपने भविष्य पर निशाना साधने निकले अभिषेक ने सिर्फ एक वर्ष में भारतीय टीम में जगह बनाने का अपने पिता से किया वादा ही नहीं निभाया, बल्कि सिर्फ पांच वर्ष में विश्व वरीयता क्रम में शीर्ष स्थान हासिल करने के साथ ही तोक्यो ओलंपिक का टिकट भी पक्का कर लिया।

Dakshin Bharat at Google News
अंतरराष्ट्रीय निशानेबाजी संघ की आधिकारिक साइट पर 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा के पुरुष वर्ग की वरीयता सूची में लिखे नाम हर भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा कर देते हैं। विश्व वरीयता क्रम में 1589 अंकों के साथ अभिषेक वर्मा का नाम पहले स्थान पर लिखा दिखाई देता है और उसके ठीक नीचे 1500 अंकों के साथ सौरभ चौधरी का नाम है। इन दोनों के नाम के सामने चमकती तिरंगे की छवि देश के खेल प्रेमियों को तोक्यो ओलंपिक में कुछ सुनहरी सौगात मिलने की उम्मीद जगाती है।

अभिषेक वर्मा की कहानी किसी फिल्म की पटकथा की तरह नाटकीय है। एक अगस्त 1989 को हरियाणा के पानीपत में जन्मे अभिषेक वर्मा के पिता पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में जज हैं। 2017 में जब उनके पुत्र ने वकालत की तरफ जाने की बजाय शूटिंग रेंज की तरफ कदम बढ़ाने का फैसला किया तो पिता ने उन्हें रोका तो नहीं, हां ये वादा जरूर ले लिया कि अगर एक साल में भारतीय निशानेबाजी टीम में जगह नहीं बना पाए तो अदालत की राह पकड़नी होगी।

अभिषेक कहते हैं कि किसी औपचारिक प्रशिक्षण के बिना ही वह शूटिंग में बहुत अच्छे थे और उन्हें पूरा विश्वास था कि अगर सही मार्गदर्शन मिला तो उन्हें अपनी मंजिल तक पहुंचने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। भोंडसी, गुरुग्राम की एकलव्य शूटिंग अकादमी में उन्होंने ट्रायल दिया और कोच ओमेंद्र सिंह ने उनकी प्रतिभा को तत्काल पहचान लिया। उस समय गुरु और शिष्य में से कोई यह नहीं जानता था कि अभिषेक विश्व कप स्पर्धाओं और एशियाई कप में स्वर्ण पदकों की सीढ़ी बनाकर विश्व में पहले नंबर के खिलाड़ी बन जाएंगे।

अकादमी में आने के बाद का एक वर्ष अभिषेक की मेहनत, लगन, आत्मसंयम और अनुशासन की कहानी सुनाता है। खुद को सारी दुनिया से अलग कर वह अर्जुन की तरह मछली की आंख पर निशाना लगाने की कोशिश में लग गए। अभिषेक बताते हैं कि 12 महीने बस वह थे, शूटिंग रेंज थी और उनकी निशानेबाजी थी। इस दौरान न उन्हें खाने का होश था और न सोने का। सुबह सात बजे बिना कुछ खाए रेंज पर पहुंचते और शाम तक अभ्यास करते। बस एक ही धुन कि निशानेबाजी में कुछ करके दिखाना है।

अभिषेक की मेहनत धीरे-धीरे रंग दिखाने लगी और अभ्यास शुरू करने के छह माह के भीतर ही नॉर्थ जोन के एक निशानेबाजी मुकाबले में स्वर्ण पदक जीतकर उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर खेलने का हक हासिल किया और फिर एक बरस से भी कम समय में भारतीय निशानेबाजी टीम में जगह बनाकर पिता की चुनौती का बड़ी शान से जवाब दिया।

यहां से अभिषेक के एक नए सफर की शुरुआत हुई। 2018 के जकार्ता एशियाई खेलों में 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में 16 बरस के सौरभ चौधरी ने स्वर्ण जीता और अभिषेक वर्मा को कांस्य पदक हासिल हुआ। यह अंतरराष्ट्रीय निशानेबाजी के नक्शे पर उनका पहला सटीक निशाना था। यहां से अभिषेक और सौरभ के रूप में भारत को निशानेबाजों की एक बेमिसाल जोड़ी मिल गई।

इन दोनों ने आईएसएसएफ विश्व कप में स्वर्ण पदक जीतकर देश में निशानेबाजी का भविष्य उज्ज्वल होने का संकेत दे दिया। 2019 में सौरभ ने विश्व वरीयता क्रम में पहला स्थान हासिल किया था, जबकि अभिषेक दूसरे स्थान पर थे। अब अभिषेक विश्व वरीयता क्रम में पहले स्थान पर हैं, जबकि सौरभ दूसरे नंबर के साथ तोक्यो ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेने जा रहे हैं।

कहने सुनने में अभिषेक का सफर भले आसान लगता है, लेकिन यह अपने आप में किसी चमत्कार से कम नहीं है कि 25 साल की उम्र में पहली बार एक खेल में हाथ आजमाने के बारे में सोचने वाला एक शख्स दुनिया के उन गिने चुने खिलाड़ियों में शुमार है, जिन्हें ओलंपिक जैसी प्रतिष्ठित प्रतियोगिता में भाग लेने और अपने देश का गौरव बढ़ाने का मौका मिलने जा रहा है। अभिषेक के हौसले, जज्बे, दृढ़ निश्चय और मेहनत को सलाम।

Tags:

About The Author

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download