डिजिटल मंच और राष्ट्रीय सुरक्षा

जो आतंकवादी एलओसी पर आते हैं, भारतीय सैनिक उन्हें वहीं से परलोक भेज देते हैं

डिजिटल मंच और राष्ट्रीय सुरक्षा

आईएसआई के दुष्प्रचार के कारण पाकिस्तान में ज्यादातर लोग भारी भ्रम में फंसे हैं

पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई और उसके इशारों पर चलने वाले आतंकी संगठनों द्वारा डिजिटल मंचों का इस्तेमाल कर जम्मू-कश्मीर में युवाओं को बरगलाने की कोशिश चिंता का विषय है। हालांकि इससे यह भी पता चलता है कि हमारे सुरक्षा बलों की मुस्तैदी के कारण अब आईएसआई दहशत के परंपरागत तौर-तरीकों को अपनाने में नाकाम हो रही है। जो आतंकवादी एलओसी पर आते हैं, भारतीय सैनिक उन्हें वहीं से परलोक भेज देते हैं। पिछले एक दशक में ही सैकड़ों आतंकवादियों का यही हश्र हुआ है, जिससे आईएसआई का काफी 'निवेश' डूब गया। 

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पाकिस्तान जिस तरह आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहा है, उसमें आतंकवादी तैयार करना और उसे पालना बहुत महंगा सौदा हो गया है। इस पर भी जब कोई आतंकवादी एलओसी तक पहुंचते ही ढेर कर दिया जाए तो उसके आकाओं का फिक्रमंद होना स्वाभाविक है। अब उन्हें ऑनलाइन मंचों ने ऐसा माध्यम दे दिया, जिससे उनका काम आसान हो गया है। वे इसके जरिए युवाओं के मन में नफरत का जहर घोल रहे हैं। 

पहले, ऐसे कामों के लिए युवाओं को पीओके स्थित किसी आतंकवादी कैंप में ठहराया जाता था। वहां उन्हें नफरत भरे भाषण सुनाए जाते, उनके मन में कट्टरपंथी सोच भरी जाती थी। अब यही काम कुछ खास ऑनलाइन ऐप्स के जरिए किया जा सकता है। 

दहशत के इस खूनी खेल को परवान चढ़ाने के लिए आईएसआई पाकिस्तानी फौज की मीडिया शाखा आईएसपीआर का इस्तेमाल करती है। वह समय-समय पर ऐसी खुराफातें ढूंढ़कर लाती है, जिससे सूचनाओं में हेराफेरी कर भारत को नुकसान पहुंचाया जाए। इस काम में उसे तकनीकी मदद चीन से मिलती है। इसके अलावा तुर्की में विकसित कुछ ऐप्स पर आरोप लग चुके हैं कि वे कट्टरपंथियों और आतंकवादियों के लिए मददगार साबित हो रहे हैं।

सोशल मीडिया पर ऐसे कई ऑनलाइन समूह हैं, जिनमें असत्य, भ्रामक और आधी-अधूरी जानकारी पेश कर लोगों को गुमराह किया जा रहा है। उनसे संबंधित पोस्ट्स बहुत तेजी से वायरल होती हैं। निश्चित रूप से उनके पीछे एक ऐसा तंत्र होता है, जो उन्हें साजिशन तेजी से शेयर करता है। उनमें यह दुष्प्रचार किया जाता है कि 'भारत में अल्पसंख्यकों को उनकी धार्मिक परंपराओं का पालन करने की अनुमति नहीं दी जाती है ... वहां सरकार बहुत भेदभाव करती है ... सिर्फ एक समुदाय की पूजन पद्धति और त्योहारों को मान्यता दी गई है।' 

पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल कसाब, जो मुंबई पर 26/11 हमलों में शामिल था, को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस अदालती सुनवाई के लिए लेकर जा रही थी तो उसे तब बहुत हैरत हुई, जब एक मस्जिद से अज़ान सुनाई दी। कसाब को तो उसके आकाओं ने यह 'बताया' था कि भारत में अल्पसंख्यकों की धार्मिक गतिविधियों पर पूरी तरह से पाबंदी है। उसे एक और झटका तब लगा, जब यह पता चला कि भारत में सभी समुदायों के लोग त्योहार मिल-जुलकर मनाते हैं और उस दिन सार्वजनिक अवकाश भी होता है। 

आईएसआई के दुष्प्रचार का पाकिस्तान के नागरिकों पर भी इतना असर हो चुका है कि वहां ज्यादातर लोग भारी भ्रम में फंसे हैं। उन्हें आज भी यही लगता है कि भारत में अल्पसंख्यकों को समान अधिकार नहीं दिए जाते। ज्यादातर पाकिस्तानी इस बात पर विश्वास करते हैं कि पाकिस्तान पर भारत ने हमला किया था और हर जंग में उनका देश जीता था! ये बातें उन्हें स्कूल-कॉलेज के पाठ्यक्रमों में पढ़ाई जाती हैं। 

सोशल मीडिया का विस्तार होने पर कई पाकिस्तानियों को यह जानकर धक्का लगा कि पहला हमला पाकिस्तान ने किया था और हर जंग में उनका देश बुरी तरह हारा था। खासकर 16 दिसंबर, 1971 को ले. जनरल एएके नियाजी द्वारा भारतीय सेना के आगे किए गए आत्मसमर्पण की तस्वीर देखकर तो उन्हें अपनी आंखों पर भरोसा ही नहीं हुआ, क्योंकि उन्होंने तो बचपन से यही सुना था कि पाक फौज अजेय है! इन घटनाओं से यह निष्कर्ष भी निकलता है कि सोशल मीडिया को सच्चाई के प्रचार-प्रसार का मंच बनाया जा सकता है। 

आईएसआई के नफरती दांव को तो हमारी एजेंसियां विफल कर ही देंगी। इसके अलावा भारत में (पाकिस्तान की जनता को ध्यान में रखते हुए) उर्दू में ऐसी सामग्री तैयार होनी चाहिए, जिसमें हमारे देश की विविधतापूर्ण संस्कृति और सद्भाव को दिखाया जाए। कई पाकिस्तानियों ने यह स्वीकार किया है कि वे कुछ साल पहले तक अत्यंत संकीर्ण व कट्टरपंथी सोच से ग्रस्त थे, लेकिन भारतीय समाज का सद्भाव देखकर उनमें बदलाव आ गया है।

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