वायु प्रदूषण से त्रस्त बच्चे
वायु हमारे पर्यावरण का वह घटक है, जो सबको समान रूप से प्राप्त है
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दिनेश प्रताप सिंह ‘चित्रेश’
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वायु हमारे पर्यावरण का वह घटक है, जो सबको समान रूप से प्राप्त है| यह प्रदूषित है, तो सब के लिए अस्वास्थ्यकर होता है| किन्तु बच्चे वायु प्रदूषण के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं| जब वह प्रदूषित हवा में सॉंस लेते हैं तो श्वसन संक्रमण का दुष्परिणाम अधिक हो सकता है| इससे बच्चों में अस्थमा और ब्रॉन्काइटिस की बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है| बच्चों का श्वसन तंत्र विकाशील अवस्था में होता है| प्रदूषित वायु स्वासनली और फेफड़ों के स्वस्थ विकास में बाधक हो जाती है| प्रदूषित वायु से फेफड़े की वायुथैलियों (एल्वियोलस) का विकास २० प्रतिशत तक कम होने सकता है, जो अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों स्तरों पर बच्चे के स्वास्थ्य के लिए घातक होता है|
वायु प्रदूषण प्राकृतिक प्रकोप नहीं, बल्कि मानवीय असावधानियों का परिणाम है| आज की तारीख में बड़े-बड़े कल-कारखाने और इस्पात संयन्त्र हैं, ताप विजलीघर हैं| इनमें कई इकाइयां आसपास स्थित होती हैं| यहॉं की भट्ठियों में सैकड़ों टन कोयले का दहन होता है| इससे बहुत अधिक कार्बन उत्सर्जन होता है, जो राख और कार्बन मोनो आक्साइड के साथ मिलकर वायुमण्डल में प्रवेश करता है| सड़कों और रेलमार्ग पर लाखों वाहन दौड़ रहे हैं| आसमान में वायुयान की उड़ानें भी अधिक हो चुकी हैं| इसमें जीवाश्म ईंधन का उपयोग होता है| यह वायु में सल्फर और नाइट्रोजन के आक्साइड, हाइड्रोकार्बन, सीसा, अमोनिया और अधजले पेट्रोल-डीजल के कण छोड़ते हैं| कचरा निपटान का असुरक्षित तरीका, खुली नालियॉं, मृत पशुओं के शव जैसी कई समस्याओं से वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है| वृक्षों के कटते जाने और गिद्धों के लुप्तप्राय होने से यह समस्या विकराल होती जा रही है|
पुराने भवनों, कारखानों और पुलों का गिराया जाना, बड़ी-बड़ी कालोनियों का विकास, फ्लाइओवर और सड़कों का अंधाधुंध निर्माण भी वायुमंडल को प्रदूषित करने के मामले में अग्रणी हैं| इससे ढेर सारा पार्टिकुलेट मैटर वायुमंडल में प्रवेश करता है| यह पी एम जितने सूक्ष्म होते हैं, फेफड़े की वायु थैलियों उतनी ही गहराई में जाकर बच्चों के स्वास्थ के लिए विनाशकारी बनते हैं| वयस्कों की तुलना में प्राथमिक और नर्सरी के बच्चे इससे अधिक प्रभावित होते हैं| एक निष्कर्ष के अनुसार, सड़क पर चलते समय बच्चे ३० प्रतिशत अधिक प्रदूषण की चपेट में आ सकते हैं| वास्तव में वह छोटे होते हैं, उनके श्वसन का क्षेत्र ठीक वही होता है, जहां वाहन की धूम्रनलियॉं (साइलेन्सर) धुआँ छोड़ती हैं| कई शोध के निष्कर्ष से पता चला है कि वायु प्रदूषण बच्चों की तांत्रिक तंत्र के विकास और संज्ञानात्मक क्षमता पर बुरा असर डालता है| जो बच्चे कम आयु से प्रदूषणग्रस्त वायु परिक्षेत्र में रहते आए हैं, भविष्य में उनके समक्ष ध्यान सम्बन्धी समस्या पैदा होने का आसार बहुत अधिक होता है| इनकी स्मृति भी निम्न स्तर की होती है, कल्पना और तर्क के स्तर पर भी इनका प्रदर्शन खराब होता है|
वायु प्रदूषण सर्दियों में और भी घातक हो जाता है| वास्तव में सर्दियों में हवा ठंडी होती है, यह गरम हवा की तुलना में अधिक सघन होती है| ठंडी हवा का बहाव भी बहुत धीमा होता है| इसलिए सर्दियों में हवा में तैरते और फंसे हुए प्रदूषक एक ही छोटे परिक्षेत्र में काफी देर तक मौजूद रहते हैं और सॉंस के जरिए अधिक मात्रा में शरीर के अन्दर जाते हैं| बच्चे वयस्कों की तुलना में सॉंस अधिक लेते हैं, इसलिए उनमें प्रदूषकों की अधिक मात्रा प्रवेश करती है| यह उनके रक्त संचार तंत्र को भी प्रभावित करता है| अस्वच्छ वायु से बच्चों में निमोनिया होने का खतरा भी बढ़ जाता है, यह एक ऐसी जानलेवा बीमारी है जिसकी चपेट में आकर विश्व में सर्वाधिक बच्चे मृत्यु की गोद में चले जाते हैं|
सर्दियों में दिल्ली जैसे कई शहर स्माग की समस्या से ग्रस्त हो जाते हैं| इसका कारण भी वायुमण्डल के प्रदूषण से सम्बन्धित है| दिवाली के समय पटाखों का धुआँ, पंजाब और हरियाणा में धान की पराली जलाने से होने वाला धुआँ के साथ औद्योगिक इकाइयों की दहन भट्ठियों की गैस और वाहनों का उत्सर्जन सब मिलकर आसमान में धुंध की चादर बनकर छा जाती है| इससे कभी-कभी अम्लीय वर्षा हो सकती है| वैसे तो यह सब के लिए खतरनाक होती है, किन्तु बच्चे इसकी चपेट में आकर शरीर पर खुजली और चकत्तों के शिकार हो सकते हैं| अम्लीय वर्षा का जल आँख में पड़ने से आँख में जलन, खजुलाहट और लाली की शिकायत हो जाती है| स्माग से ए. क्यू. आई. यानी वायु गुणवत्ता सूचकांक का स्तर चिंताजनक होने लगता है| एक्यूआई मूलतः वायु की गुणवत्ता की दैनिक रिपोर्टिंग है| यह यदि ० से ५० के बीच होती है तो नार्मल मानी जाती है| किन्तु जब २०१ से ३०० के बीच पहुँच जाती है तो अत्यधिक प्रदूषित स्थिति की सूचक हो जाती है| ऐसी स्थिति में बच्चों के स्कूल बंद कर देने पड़ते हैं| कार वगैरह के संचालन में ‘ओड-इवेन’ का सिलसिला शुरू हो जाता है| इस बार तो दिल्ली में यह ४०० के करीब पहुँच गया था, जो वायु की अत्यधिक प्रदूषित अवस्था का द्योतक था|
प्रदूषण की समस्या आधुनिक जीवन शैली और तेज विकास का प्रतिफल है| जीवन शैली को पीछे ले जाकर प्रकृति से जोड़ पाना अब सम्भव नहीं है| विकास की गति को भी नहीं रोक सकते| किन्तु विकास से पूर्व उससे जुड़ी पर्यावरणीय क्षति का आकलन करना और क्षतिपूर्ति के लिए समानान्तर योजनाएं बनाकर उसका शत प्रतिशत क्रियान्वयन तो होना ही चाहिए| नदियों के दोनों तटों पर और शहरी बस्ती के चारों तरफ हरित पट्टी का विकाश भी वायु प्रदूषण से बचाव का एक उपाय हो सकता है| आज के बच्चे कल के नागरिक हैं, विकास की सारी रूपरेखा सरकारें इनके भविष्य को ही ध्यान में रखकर तैयार करती हैं| किन्तु जब यह रोगी, कमजोर और अयोग्य होकर रह जाएंगे तो विकास का क्या होगा| इसलिए तत्काल सचेत होने की आवश्यकता है, अन्यथा बहुत देर हो जाएगी|