उसी 'बिंदु' पर बांग्लादेश

भारत ने जब-जब बांग्लादेश की मदद की, उसे एक मित्र राष्ट्र समझकर की

उसी 'बिंदु' पर बांग्लादेश

एक दशक में बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था ने अच्छा प्रदर्शन किया

बांग्लादेश में बीएनपी के एक वरिष्ठ नेता द्वारा भारतीय साड़ी जलाए जाने की घटना ने इस पड़ोसी देश को इतिहास के उसी बिंदु पर लाकर खड़ा कर दिया, जहां जुल्फिकार अली भुट्टो (पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री) ने संरा सुरक्षा परिषद में एक दस्तावेज को फाड़कर कहा था- 'मैं अपना समय यहां क्यों बर्बाद करूं?' दरअसल वर्ष 1971 के इसी दिसंबर महीने में भुट्टो ने वह दस्तावेज फाड़कर एक तरह से पाकिस्तान का नक्शा ही फाड़ दिया था। अब बीएनपी के नेता सिर्फ भारतीय साड़ी नहीं जला रहे। असल में, वे अपने देश का भविष्य जला रहे हैं, अपने लोगों की खुशहाली व समृद्धि को खाक में मिला रहे हैं। उनकी देखादेखी बांग्लादेश में कुछ लोग भारतीय उत्पादों के 'बहिष्कार' के तौर पर उन्हें आग के हवाले कर रहे हैं। बांग्लादेशी नेताओं को स्वतंत्रता है कि वे अपनी इच्छा के अनुसार, किसी उत्पाद को पसंद करें या न करें, लेकिन वे 'बहिष्कार' के नाम पर जिस तरह भारतविरोधी भावनाएं भड़का रहे हैं, उससे उन्हें गंभीर नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं। पिछले एक दशक में बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था ने अच्छा प्रदर्शन किया है। कई क्षेत्रों में उसकी प्रगति संतोषजनक रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह है- भारत की ओर से मिलने वाला सहयोग। अगर दिल्ली की ओर से मदद का हाथ न बढ़ाया जाता तो ढाका की दुर्दशा होते देर नहीं लगती। खैर, यह कसर अब मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में बीएनपी के कट्टरपंथी पूरी कर देंगे। उसके एक नेता का यह बयान कि 'बांग्लादेश किसी का मोहताज नहीं है, वह अपनी जरूरत की सभी चीजों का उत्पादन कर सकता है', को हमें गंभीरता से लेने की जरूरत है।

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भारत ने जब-जब बांग्लादेश की मदद की, उसे एक मित्र राष्ट्र समझकर की। अगर बीएनपी के नेताओं को लगता है कि वे सभी चीजों के मामले में आत्मनिर्भर हैं तथा उन्हें भारत समेत किसी देश की कोई जरूरत नहीं है तो उनकी 'भविष्य की यात्रा' के लिए शुभकामनाएं हैं। वे बिना किसी सहयोग के अपने देश को छह महीने ही चलाकर दिखा दें! आज वैश्विक व्यापार और तकनीक के दौर में कोई भी अक्लमंद नेता यह बात नहीं कह सकता कि हम सबकुछ अपने यहां पैदा कर सकते हैं, हमें किसी की जरूरत नहीं है। यहां तक कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था भी दुनिया के कई देशों पर निर्भर करती है। आज एक देश में कोई उथल-पुथल होती है तो उसका असर अन्य देशों में देखा जा सकता है। याद करें, जब मार्च 2003 में अमेरिका के नेतृत्व वाली सेना ने इराक में हमले किए थे तो तेल की कीमतों में उछाल आ गया था। साल 2020 में जब चीन में कोरोना वायरस का प्रसार तेजी से होने लगा तो कई देशों में शेयर बाजार गिरने लगे थे, मुद्राओं का अवमूल्यन होने लगा था। फरवरी 2022 में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो कई देशों में ईंधन (खासकर रसोई गैस) और गेहूं के दाम बढ़ गए थे। हाल में अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप के जीतते ही बिटकॉइन ने लंबी छलांग लगाई थी, जबकि ईरानी मुद्रा में भारी गिरावट आ गई थी। जो देश दुनिया के साथ व्यापारिक संबंध रखता है और आर्थिक विकास को प्राथमिकता देता है, उस पर अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम का असर कहीं-न-कहीं जरूर पड़ता है। हां, इस समय एक देश ऐसा है, जो इन घटनाओं के असर से काफी हद तक 'सुरक्षित' है। दुनिया के शेयर बाजार गिरें या उठें, वैश्विक आपूर्ति बाधित हो या न हो, विभिन्न संस्थान एआई के साथ कदम मिलाते हुए आगे बढ़ें या पिछली सदी में लौट जाएं ... उसकी सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता। वह है- अफगानिस्तान। अगर बांग्लादेशी भी एक 'अर्थशास्त्री' के नेतृत्व में इसी तरह 'आत्मनिर्भर' होना चाहते हैं तो उन्हें इससे कोई नहीं रोक रहा है।

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