आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए आरोपी को दोषी ठहराने के लिए केवल 'उत्पीड़न' पर्याप्त नहीं: उच्चतम न्यायालय
ये टिप्पणियां न्यायमूर्ति विक्रमनाथ और न्यायमूर्ति पीबी वराले की पीठ ने कीं
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नई दिल्ली/दक्षिण भारत। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि केवल उत्पीड़न किसी को आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध का दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष उकसावे का स्पष्ट सबूत होना चाहिए।
ये टिप्पणियां न्यायमूर्ति विक्रमनाथ और न्यायमूर्ति पीबी वराले की पीठ ने कीं, जिसने गुजरात उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर अपना फैसला सुनाया, जिसमें एक महिला को कथित रूप से परेशान करने और उसे आत्महत्या के लिए मजबूर करने के आरोप में उसके पति और उसके दो ससुराल वालों को बरी करने से इन्कार कर दिया गया था।यह मामला साल 2021 में भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए (विवाहित महिला के साथ क्रूरता करना) और 306 सहित कथित अपराधों के लिए दर्ज किया गया था, जो आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध से संबंधित है। इसमें 10 साल तक की जेल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
पीठ ने अपने फैसले में कहा, 'आईपीसी की धारा 306 के तहत दोषसिद्धि के लिए यह एक सुस्थापित कानूनी सिद्धांत है कि स्पष्ट मेन्स रीया (कार्य को उकसाने का इरादा) की उपस्थिति जरूरी है। केवल उत्पीड़न, अपने आप में, किसी आरोपी को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है।'
न्यायालय ने कहा कि अभियोजन पक्ष को अभियुक्त द्वारा कोई सक्रिय या प्रत्यक्ष कार्रवाई प्रदर्शित करनी होगी, जिसके कारण शख्स ने आत्महत्या की।
पीठ ने कहा कि 'मेन्स रीआ' के तत्व को आसानी से नहीं माना जा सकता या अनुमान नहीं लगाया जा सकता तथा यह स्पष्ट रूप से पहचाना जा सकने योग्य होना चाहिए।
इसमें कहा गया है, 'इसके बिना, कानून के तहत उकसावे को स्थापित करने की आधारभूत आवश्यकता पूरी नहीं होती है, जिससे आत्महत्या के कृत्य को भड़काने या इसमें योगदान देने के लिए जानबूझकर और स्पष्ट इरादे की आवश्यकता पर बल मिलता है।'
पीठ ने तीनों व्यक्तियों को धारा 306 के तहत आरोप से मुक्त कर दिया। हालांकि उसने अपीलकर्ताओं के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के तहत आरोप को बरकरार रखा।
इसमें उल्लेख किया गया कि महिला के पिता ने उसके पति और ससुराल पक्ष के दो लोगों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 306 और 498-ए सहित कथित अपराधों के लिए प्राथमिकी दर्ज कराई थी।
पीठ ने कहा कि महिला की शादी साल 2009 में हुई थी। विवाह के पहले पांच वर्षों तक दंपति को कोई बच्चा पैदा नहीं हुआ, जिसके कारण उसे कथित तौर पर शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा।
अप्रैल 2021 में महिला के पिता को सूचना मिली कि उसने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली है।
उच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 306 और 498-ए के तहत आरोप तय करने के सत्र न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा था।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 306 उन लोगों को दंडित करती है, जो किसी अन्य व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाते हैं।
इसमें कहा गया है कि किसी व्यक्ति पर इस धारा के तहत आरोप लगाने के लिए अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि आरोपी ने मृतक की आत्महत्या में योगदान दिया था।