मानवता के लिए सार्थक बने मानवाधिकार दिवस
मानवाधिकार वे मूल अधिकार हैं, जो इस धरती पर प्रत्येक व्यक्ति के पास हैं
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रमेश सर्राफ धमोरा
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मानव अधिकार वे मूल अधिकार हैं जो इस धरती पर प्रत्येक व्यक्ति के पास हैं| मानवाधिकार मौलिक अधिकार और स्वतंत्रता हैं| मानवाधिकारों में जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार, गुलामी और यातना से मुक्ति, राय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, काम और शिक्षा का अधिकार और बहुत कुछ शामिल हैं| बिना किसी भेदभाव के हर कोई इन अधिकारों का हकदार है| भारत का स्वतंत्रता आंदोलन मानवाधिकारों के लिए प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत रहा है| कुछ अधिकार ऐसे होते है जो व्यक्ति को जन्मजात मिलते है| उन अधिकारों का व्यक्ति के आयु, प्रजातीय मूल, निवास-स्थान, भाषा, धर्म पर कोई असर नहीं पड़ता|
भारत में २८ सितम्बर १९९३ से मानव अधिकार कानून अमल में आया| १२ अक्टूबर १९९३ में सरकार ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन किया| आयोग के कार्यक्षेत्र में नागरिक और राजनीतिक के साथ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार भी आते हैं| जैसे बाल मजदूरी, स्वास्थ्य, भोजन, बाल विवाह, महिला अधिकार, हिरासत और मुठभेड़ में होने वाली मौत, अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जाति और जनजाति के अधिकार| पूरे विश्व में इस बात को अनुभव किया गया है और इसीलिए मानवीय मूल्यों की अवहेलना होने पर वे सक्रिय हो जाते हैं| इसके लिए हमारे संविधान में भी उल्लेख किया गया है| संविधान के अनुच्छेद १४, १५, १६, १७, १९, २०, २१, २३, २४, ३९ ,४३, ४५ देश में मानवाधिकारों की रक्षा करने के सुनिश्चित हैं|
देश के विशाल आकार व विविधता तथा सम्प्रभुता सम्पन्न धर्म-निरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में इसकी प्रतिष्ठा, तथा एक भूतपूर्व औपनिवेशिक राष्ट्र के रूप में इसके इतिहास के परिणामस्वरूप भारत में मानवाधिकारों की परिस्थिति एक प्रकार से जटिल हो गई है| भारत का संविधान मौलिक अधिकार प्रदान करता है, जिसमें धर्म की स्वतंत्रता भी अंतर्भूक्त है| संविधान की धाराओं में बोलने की आजादी के साथ-साथ कार्यपालिका और न्यायपालिका का विभाजन तथा देश के अन्दर एवं बाहर आने-जाने की भी आजादी दी गई है| भारतीय परिदृश्य में यह समझ पाना थोड़ा मुश्किल है कि क्या वाकई में मनुष्य के लिए चिन्हित किये गए मानवाधिकारों की सार्थकता है|
इतिहास गवाह है की भारत ने कभी भी संस्कृति, धर्म या अन्य कारकों के आधार पर दूसरों को अपने अधीन करने की कोशिश नहीं की है| भारत एक ऐसा देश है जिसके मूल में मानवाधिकार की अवधारणा है| भारत के लोग मानवाधिकारों का सम्मान करते हैं और उनकी रक्षा करने का संकल्प भी लेते हैं| भारत विश्व स्तर पर आज भी मानवाधिकार का समर्थन करता रहा है| मानवाधिकार दिवस की नींव विश्व युद्ध की विभीषिका से झुलस रहे लोगों के दर्द को समझ कर और उसको महसूस कर रखी गई थी| किसी भी इंसान की जिन्दगी, आजादी, बराबरी और सम्मान के अधिकार का नाम ही मानवाधिकार है| भारतीय संविधान इन अधिकारों की न सिर्फ गारंटी देता है, बल्कि इसे तोडने वाले को अदालत सजा भी देती है|
पूरी दुनिया में मानवता के खिलाफ हो रहे जुल्मों-सितम को रोकने, उसके खिलाफ संघर्ष को नई परवाज देने में इस दिवस की महत्वपूर्ण भूमिका है| हर शख्स को बराबरी का अधिकार देना लोकतंत्र का अहम घटक है| यही वजह है कि आज ज्यादातर सरकार इस अधिकार को कायम करने की कोशिश कर रही है| इंसानी अधिकार हमारे अस्तित्व और दुनिया में आत्मसम्मान से रहने की गारंटी होते हैं| हमारी भौतिक और आत्मिक सुरक्षा बरकरार रखते हुए लगातार तरक्की में अहम होते हैं| इसके अंतर्गत भोजन का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, शोषण से रक्षा का अधिकार, प्रवास का अधिकार, बाल शोषण, उत्पीडन पर रोक, महिला हिंसा, असमानता, धार्मिक हिंसा पर रोक जैसे कई मजबूत कानून बनाए गए हैं| यही वजह है कि हर लोकतांत्रिक देश मानवाधिकार अधिकारों की सशक्त पैरवी करते नजर आते हैं|
इस दुनिया में जो भी मानव जन्म लेता है उसके साथ उसके कुछ अधिकार भी वजूद में आते हैं| कुछ अधिकार हमें परिवार देता है तो कुछ समाज, कुछ अधिकार हमारा मुल्क देता है, तो कुछ दुनिया| लेकिन आज भी दुनिया में बहुत से लोग ऐसे हैं जो या तो अपने अधिकारों से अंजान है या उनके अधिकारों का हनन किया जा रहा है| कभी जात के नाम पर तो कभी धर्म के नाम पर, कभी लिंग भेदभाव के जरिए तो कभी रंग भेद नीति को अपनाकर लोगों के इन अधिकारों को कुचला जा रहा है| हर तबके, हर शहर और दुनिया के कोने-कोने में किसी न किसी वजह से लोगों को बराबरी के हक से महरूम रखने का सिलसिला बदस्तूर जारी है| इतिहास गवाह है कि दुनिया में हुई बड़ी से बड़ी क्रांति के पीछे अधिकारों का हनन ही अहम वजह रही है| हमेशा ही अपने अधिकारों के लिए इंसान को लंबी जंग लडनी पड़ी है| दुनिया में तमाम जगह लोगों ने अपन हक की लड़ाई में लाखों कुर्बानियां दी हैं और आज भी बहुत से लोग अपने अधिकारों की जंग लड़ रहे हैं|
मानवाधिकारों की रक्षा के लिए कानून बनाये गए और उनको लागू करने या करवाने के लिए प्रयास भी हो रहे हैं| लेकिन वह सिर्फ कागजी दस्तावेज बन कर रह गए हैं| समाज में मानवाधिकारों के होने वाले उल्लंघन के प्रति अगर मानव ही जागरूक नहीं है तो फिर इनका औचित्य क्या है? देखे तो पता चलेगा की कितने मानवाधिकारों का हनन मानव के द्वारा ही किया जा रहा है| मानव के द्वारा मानव के दर्द को पहचानने और महसूस करने के लिए किसी खास दिन की जरूरत नहीं होती है| अगर हमारे मन में मानवता है ही नहीं तो फिर हम साल में पचासों दिन ये मानवाधिकार का झंडा उठा कर घूमते रहें कुछ भी नहीं किया जा सकता है|
सरकार भी मानवाधिकारो का हनन रोक पाने में पूर्णतया सफल नहीं हो पा रही है| देश में आये दिन मानवाधिकार हनन की घटनायें घटित होती रहती है| मगर सरकारी स्तर पर शख्त कार्यवाही अमल में नहीं लायी जाती है| जिससे भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृति पर रोक लग सके| यह कितना दुर्भाग्यपू्र्ण है कि तमाम प्रादेशिक, राष्ट्रीय और अन्तरर्राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय सरकारी और गैर सरकारी मानवाधिकार संगठनों के बावजूद मानवाधिकारों का लगातार हनन होता रहता है|