सरकारें इच्छाशक्ति दिखाएं

मुफ्त सुविधाओं से खजाने पर बहुत भार पड़ रहा है

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सरकारें इस बात का खास ध्यान रखें कि रोटी महंगी न हो

उच्चतम न्यायालय ने कोविड महामारी के समय से मुफ्त राशन पाने वाले प्रवासी श्रमिकों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने और क्षमता निर्माण किए जाने के संबंध में जो प्रश्न पूछा, वह अत्यंत प्रासंगिक है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा नागरिकों को कई सुविधाएं दी जाती हैं, जिनमें कुछ मुफ्त भी होती हैं। कोई सुविधा कब तक मुफ्त दी जा सकती है और दी जानी चाहिए, इस पर चर्चा होनी चाहिए। सरकारों का फर्ज है कि वे मुफ्त शिक्षा और मुफ्त चिकित्सा जैसी सुविधाएं सबको उपलब्ध कराएं। इनके मुफ्त होने से ही काम नहीं चलेगा; गुणवत्ता भी अच्छी होनी चाहिए। सरकारें इस बात का खास ध्यान रखें कि रोटी महंगी न हो। हर व्यक्ति अपना पेट भरने में जरूर सक्षम हो। इसके लिए रोजगार के पर्याप्त अवसरों का सृजन किया जाए। जो लोग बहुत जरूरतमंद हों, कामकाज करने में समर्थ न हों, उनके लिए अन्न और धन का इतना प्रबंध जरूर करना चाहिए, जिससे वे गुजारा कर सकें। पिछले एक दशक में कुछ राज्य सरकारों ने मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त परिवहन समेत ऐसी कई सुविधाएं शुरू की हैं, जो बड़ी आकर्षक तो लगती हैं, लेकिन उनसे खजाने पर बहुत भार पड़ रहा है। कोई राजनीतिक दल इनके खिलाफ खुलकर नहीं बोल सकता, क्योंकि जनता को नाराज करने का जोखिम कोई नहीं ले सकता। जनता भी कहती है- 'जब मंत्री और अफसर इतनी सुविधाएं ले रहे हैं तो गरीब आदमी को मिल रही थोड़ी-सी सहायता क्यों अखर रही है ... क्या इतनी महंगाई में कुछ राहत पाने का हमारा कोई हक नहीं है?' वास्तव में मुफ्त सुविधाओं या नाममात्र के शुल्क पर दी जाने वाली सुविधाओं संबंधी योजनाओं को सियासी नफे-नुकसान से ऊपर उठकर इस तरह लागू करने की जरूरत है, जिससे देश में बड़े स्तर पर सकारात्मक बदलाव आए।

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अगर इन योजनाओं को लागू करते समय ही कुछ खास बिंदुओं का ध्यान रखा जाता तो अब तक कई क्षेत्रों में बदलाव जरूर दिखाई देते। उदाहरण के लिए, जिन राज्यों में लोगों को निश्चित यूनिट तक मुफ्त बिजली दी जा रही है, वहां उसके साथ सोलर पैनल लगवाने पर जोर दिया जाए। जो शहर वायु प्रदूषण से जूझ रहे हैं, वहां उन परिवारों को मुफ्त बिजली-पानी संबंधी योजनाओं में प्राथमिकता मिलनी चाहिए, जिनके घरों में पेट्रोल-डीजल से चलने वाले यात्रीवाहन नहीं हैं। उनमें भी ऐसे परिवारों को प्रोत्साहन देना चाहिए, जिनका कम-से-कम एक सदस्य कहीं आवाजाही के लिए साइकिल का इस्तेमाल करे। जो परिवार ऐसे पौधे लगाकर उन्हें बड़ा करें, जिनसे पर्यावरण को ज्यादा लाभ होता है, उन्हें मुफ्त सुविधाओं वाली योजनाओं में आगे रखना चाहिए। जो लोग बसों, मेट्रो और ट्रेनों में वर्षों से टिकट लेकर यात्रा कर रहे हैं, जो यातायात के नियमों का सही ढंग से पालन कर रहे हैं, विभिन्न करों का भुगतान समय पर कर रहे हैं, उन्हें बैंक में जमा राशि पर ज्यादा ब्याज मिलना चाहिए। जब वे बैंक से कर्ज लें तो वह कम दर पर मिलना चाहिए। सरकारों को चाहिए कि वे अपनी योजनाओं को इस तरह लागू करें कि लोग ईमानदार बनने और अच्छे नागरिक के तौर पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा पाएं। योजनाओं का मकसद जनता का कल्याण करना जरूर होना चाहिए। इनके जरिए एक बेहतर और ईमानदार समाज का निर्माण भी करना चाहिए। यह कोई असंभव या बहुत मुश्किल काम नहीं है। सरकारों और अफसरों को थोड़े-से अलग नजरिए के साथ सोचना होगा। भारतीय समाज अच्छी पहल का स्वागत करता है। इस साल उत्तराखंड स्थित केदारनाथ धाम को प्लास्टिक-मुक्त बनाने के लिए जिला प्रशासन ने बोतलें जमा कराने पर यात्रियों को आर्थिक प्रोत्साहन देना शुरू किया था। इसके तहत यात्री क्यूआर कोड युक्त प्लास्टिक बोतल जमा करवाकर 10 रुपए वापस प्राप्त कर सकते थे। यह राशि सीधे उनके बैंक खाते में भेजी गई। अगर ऐसे प्रयासों को बड़े स्तर पर लागू करें तो कितनी ही समस्याओं का जल्द समाधान हो जाए। इनके लिए सरकारें इच्छाशक्ति तो दिखाएं!

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