महागठबंधन से दूर रहना केजरीवाल के लिए जरूरी ही नहीं मजबूरी भी है, जानिए 3 वजह

महागठबंधन से दूर रहना केजरीवाल के लिए जरूरी ही नहीं मजबूरी भी है, जानिए 3 वजह

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव नजदीक आने के साथ ही विभिन्न दलों का गठजोड़ बनने-टूटने का सिलसिला शुरू हो गया। इस बीच दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने यह ऐलान कर सबको चौंका दिया कि ‘आप’ आगामी लोकसभा चुनावों में विपक्ष के महागठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगी। राजनीतिक विश्लेषक केजरीवाल के इस फैसले के कई मायने निकाल रहे हैं। आखिर क्या वजह है कि कुछ महीने पहले तक हर बात के लिए मोदी को घेरने वाले केजरीवाल विपक्ष के भावी महागठबंधन के बनने से पहले ही उससे अलग हो गए? वैसे केजरीवाल का यह फैसला चौंका सकता है लेकिन इसके दूसरे पहलुओं पर गौर किया जाए तो लगता है कि ऐसा उन्होंने ‘आप’ के राजनीतिक नफे-नुकसान को ध्यान में रखकर किया है, क्योंकि:

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1. जनलोकपाल आंदोलन के समय कांग्रेस पर कथित भ्रष्टाचार के आरोप लगाने वाले केजरीवाल ने जब कुछ दिनों के लिए कांग्रेस के सहयोग से दिल्ली में सरकार बनाई तो उनकी खूब आलोचना हुई थी। इसके बाद उन्होंने इस्तीफा दिया और बनारस जाकर मोदी को चुनौती दे डाली। हालांकि बनारस जाने वाला दांव बुरी तर​ह फेल हुआ, लेकिन उसके बाद दिल्ली की जनता ने उन्हें विधानसभा में जोरदार बहुमत दिया। अब अगर केजरीवाल लोकसभा चुनाव में कांग्रेसी खेमे के खिलाड़ी बनेंगे तो उन पर कई सवाल दोबारा उठाए जाएंगे, बहुत-से आरोप लगेंगे। इस तरह भावी महागठबंधन से बचना केजरीवाल के लिए जरूरी और मजबूरी दोनों हैं।

2. अभी ‘आप’ भले ही दिल्ली तक सीमित है लेकिन राजधानी क्षेत्र में सरकार बनाने के कारण उससे देश के दूसरे हिस्से में लोग परिचित हैं। अन्ना आंदोलन के दौरान कई लोग केजरीवाल के साथ जुड़े और विदा हो गए, लेकिन इस दौरान केजरीवाल अपनी एक स्वतंत्र पहचान बनाने में सफल रहे। महागठबंधन में जाना उनके लिए नुकसानदेह होता, क्योंकि तब वे एक भीड़ का हिस्सा होते, जिसकी कुछ शर्ते भी होतीं। लिहाजा इससे उनकी स्वतंत्र पहचान छुप जाती। संभवत: उन्हें राहुल गांधी को अपना नेता स्वीकार कर प्रचार करना होता, जिसके बाद वे स्वतंत्र रूप से कोई बयान नहीं दे पाते। अकेले चुनाव लड़ने में यह बंदिश नहीं होगी।

3. ‘आप’ अब सिर्फ दिल्ली में नहीं रुकना चाहती। कम से कम समीपवर्ती राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में वह अपना आधार तलाश रही है। पंजाब में उसे शुरुआती सफलता भी मिली है। हरियाणा से केजरीवाल का ताल्लुक है। राजस्थान में भी ‘आप’ सक्रिय है। पार्टी के नेता यहां संभावनाएं ढूंढ़ने में जुटे ​हैं। अगर ‘आप’ कांग्रेस और विपक्ष के अन्य दलों के साथ मिलकर लोकसभा चुनावों में उतरती तो उसकी भावी उम्मीदों को झटका लगता, क्योंकि सत्ता में रहते इन पार्टियों का एक अतीत है, कई आरोप भी हैं। इनके साथ रहकर केजरीवाल उनसे बच नहीं पाते। साथ ही उन पर भी अन्य दलों की तरह ही होने का ठप्पा लग जाता। इसलिए केजरीवाल ने महागठबंधन से दूर रहने में ही ‘आप’ का कल्याण समझा।

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