अन्ना के आंदोलन से जुड़ना है तो शपथ लो कि राजनीति में नहीं जाओगे!

अन्ना के आंदोलन से जुड़ना है तो शपथ लो कि राजनीति में नहीं जाओगे!

हुब्बल्ली। भ्रष्टाचार के खिलाफ धर्मयुद्ध छे़डने वाले समाजसेवी अन्ना हजारे का समर्थन करने वालों को अब भ्रष्टाचार के खिलाफ उनके संघर्ष में भाग लेने के लिए १०० रुपए के बांड पेपर पर यह शपथ लिखकर देनी होगी कि वह कभी भी राजनीति में कदम नहीं रखेंगे और न ही किसी राजनीतिक दल के सदस्य बनेंगे। मंगलवार को धारवा़ड कृषि विश्वविद्यालय के संस्थापक दिवस कार्यक्रम का उद्घाटन करने से पहले पत्रकारों से बातचीत में अन्ना ने कहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पुडुचेरी की गवर्नर किरण बेदी पूर्व में उनके भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से जु़डे थे और फिर बाद में दोनों ने राजनीति के लिए समाज सेवा को अलविदा कह दिया। यह दोनों आज उच्च सम्मान वाले पदों पर आसीन हैं लेकिन उन्होंने देश से भ्रष्टाचार की ज़डें काटने के अन्ना के आंदोलन को झटका दिया है, क्योंकि अन्ना ने सामाजिक अन्याय के खिलाफ अपनी ल़डाई में कभी भी राजनीति का सहारा नहीं लिया। हजारे ने कहा कि इन दोनों से मिले अनुभव को देखते हुए उन्होंने सावधानीवश अपने आंदोलनों से जु़डने वालों से राजनीति के क्षेत्र में नहीं जाने की शपथ लेने की मांग की है। यह शपथ लेने वाले लोग ही अन्ना हजारे के आंदोलनों के प्रति पूर्ण समर्पण के साथ काम कर सकते हैं। अन्ना हजारे ने यह भी खुलासा किया कि अब तक उनके ४ हजार समर्थकों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी ल़डाई में शामिल होने के लिए राजनीति में कभी शामिल न होने के शपथ पत्र भरकर दिए हैं। अन्ना इससे काफी उत्साहित हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्र की सत्ता में सा़ढे तीन वर्षों का कार्यकाल पूरा कर लेने के बाद भी किसानों की स्थिति में सुधार करने के लिए अब तक कुछ नहीं किया है। उन्होंने कृषि और कृषकों की पूरी तरह से अनदेखी की है। उन्होंने मोदी सरकार पर लोकपाल विधेयक को बेहद कमजोर कर देने का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि इस विधेयक में लोकपाल संस्था को किसी प्रकार की ताकत नहीं दी गई है। गोवा और कर्नाटक राज्यों के बीच महादयी नदी के जल बंटवारे के विवाद पर पत्रकारों द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में अन्ना ने कहा कि अगर इस मामले मेें जरूरत प़डी तो वह गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर को स्वयं पत्र लिख सकते हैं। उन्हें ध्यान दिला सकते हैं कि कर्नाटक अपनी औद्योगिक जरूरतों के लिए नहीं, बल्कि अपने नागरिकों की प्यास बुझाने के लिए महादयी का पानी मांग रहा है। उन्होंने इसके साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि उन्हें इस मुद्दे की बहुत अधिक जानकारी नहीं है। बहरहाल, अगर कोई राज्य पीने का पानी मांग रहा है तो उसे पानी देने से इन्कार करना बहुत गलत है।

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