नशे पर नियंत्रण

प्राय: शराब और विभिन्न नशीली सामग्री के पक्ष में कुतर्क गढ़े मिलते हैं

नशे पर नियंत्रण

इसका किसी भी रूप में न तो सेवन करें और न ही महिमा-मंडन करें

एफएम रेडियो चैनलों पर नशीले पदार्थों को महिमा-मंडित करने वाली सामग्री और ऐसे गानों का प्रसारण नहीं करने के संबंध में सूचना और प्रसारण मंत्रालय के निर्देश स्वागत योग्य हैं। हालांकि यह फैसला पहले ले लिया जाता तो बेहतर होता। बहरहाल, उम्मीद की जानी चाहिए कि इससे एफएम रेडियो चैनलों पर धड़ल्ले से प्रसारित हो रही ऐसी सामग्री पर पाबंदी लगेगी, जो युवाओं को गुमराह कर रही है। 

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जो संगीत अंतर्मन की गहराइयों और ईश्वर की अनुभूति का माध्यम समझा जाता था, जिसके वाद्ययंत्र देवताओं से लेकर संतों के हाथों में शोभायमान रहे हैं, दु:खद है कि आज कुछ लालची प्रवृत्ति के लोगों ने उन्हें भी नहीं छोड़ा। उनका बुराई के प्रचार में जमकर इस्तेमाल किया। अगर यूट्यूब की बात करें तो यह देखकर आश्चर्य होता है कि (खासतौर से) पंजाबी गानों में शराब का बहुत महिमा-मंडन किया जा रहा है। कई अभिनेता बोतल, गिलास हाथ में लिए शराब पीने को बढ़ावा दे रहे हैं। युवा उन्हें आदर्श मान रहे हैं। ये गाने ब्याह-शादियों में खूब चलाए जाते हैं। इन पर हर पीढ़ी के लोग झूमते हैं। 

क्या यह युवाओं के मन में नशे की स्वीकार्यता बढ़ाने का एक कुत्सित प्रयास नहीं है? जिस देश में महात्मा गांधी ने नशे से मुक्ति को स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा बना दिया था, आज वहां नशे को आम ज़िंदगी का अभिन्न अंग बनाने पर जोर दिया जा रहा है। नशा समर्थक गानों के वीडियो में यह दिखाने की भरपूर कोशिश की जाती है कि यह 'वीरता' का काम है, इससे व्यक्ति 'बलिष्ठ' होता है, उसकी 'धाक' जमती है! जबकि वैज्ञानिक एवं सामाजिक अध्यन बताते हैं कि नशा विवेक, बुद्धि, स्वास्थ्य और धन का नाश करता है। नशा नाश की जड़ है। शराब की बोतल और सिगरेट के धुएं ने कितने ही परिवारों की खुशियों को लील लिया।

जब कोरोना महामारी के प्रसार पर नियंत्रण के लिए लॉकडाउन जैसा सख्त कदम उठाया गया तो उम्मीद जगी थी कि अब नशे पर कुछ पाबंदी लगेगी। हालांकि नशाप्रेमियों ने महंगे दामों पर 'माल' खरीदने से परहेज नहीं किया। जैसे ही लॉकडाउन में कुछ ढील दी गई, शराब की दुकानों के सामने लंबी कतारें लग गईं। इससे मालूम होता है कि नशे ने हमारे सामाजिक जीवन में किस हद तक घुसपैठ कर ली है। यह भी देखा गया है कि नशामुक्ति और महिला सशक्तीकरण का नारा लगाकर सत्ता में आने वाली कई पार्टियां अपना वादा भूल जाती हैं और मोहल्ले-मोहल्ले में ठेके खुलवा देती हैं। 

फिर यहां बैठकर असामाजिक तत्त्व आती-जाती बच्चियों और महिलाओं से अभद्र व्यवहार करते हैं। नशे और अपराध का गहरा संबंध है। इसके सेवन से विवेक एवं बुद्धि का लोप होता है, जिससे मनुष्य क्रोध, हिंसा तथा अपराध में लिप्त हो सकता है। फिर एक बुराई अनेक बुराइयों को जन्म देती है और यह चक्र चलता रहता है। 

प्राय: शराब और विभिन्न नशीली सामग्री के पक्ष में कुतर्क गढ़े मिलते हैं, ताकि इसके सेवन की अपील को और दमदार बनाया जा सके। चूंकि युवा इससे जल्दी प्रभावित हो जाते हैं, तो वे इसके ग्राहक भी जल्दी बनते हैं। जो एक बार नशे के जाल में फंस जाता है, फिर उसका बाहर निकलना बड़ा मुश्किल होता है। 

हालांकि दृढ़ इच्छाशक्ति से यह संभव है, लेकिन इससे बेहतर है कि शराब, गांजा, भांग, तंबाकू, अफीम, बीड़ी, सिगरेट, खैनी, गुटखा और सभी तरह की नशीली सामग्री से दूर रहा जाए। नशा समृद्धि, शांति, प्रेम और आरोग्य की ओर नहीं, बल्कि क्लेश और रोग की ओर लेकर जाता है। इसका किसी भी रूप में न तो सेवन करें और न ही महिमा-मंडन करें।

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