कार्य-संस्कृति में लचीलापन

अब 'रिमोट वर्किंग' का चलन बढ़ रहा है

कार्य-संस्कृति में लचीलापन

सरकारों को चाहिए कि वे कंपनियों को रिमोट वर्किंग और अन्य लचीली व्यवस्थाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करें

दुनिया के कई देशों में कार्य-संस्कृति में तेजी से बदलाव आ रहे हैं। भारत भी इससे अलग नहीं है। कुछ दशक पहले तक जहां कार्यस्थल के लिए ऐसे वातावरण को उपयुक्त समझा जाता था, जहां सख्त नियम हों और उन्हें कड़ाई से लागू किया जाए। वहीं, अब कार्य-संस्कृति में लचीलेपन का समावेश किया जा रहा है, जिसके परिणाम बहुत उत्साहजनक आ रहे हैं। 

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अब 'रिमोट वर्किंग' का चलन बढ़ रहा है। कहीं भी बैठकर काम करने की यह व्यवस्था लचीली तो है ही, आकर्षक भी है। खासकर युवाओं द्वारा इतनी पसंद की जा रही है कि वे इसे वेतन से ज्यादा प्राथमिकता दे रहे हैं। इससे कर्मचारियों को भी फायदा होता है, क्योंकि उन्हें आवागमन पर ऊर्जा व धन खर्च नहीं करना पड़ता, वहीं कंपनियों को भी फायदा होता है, क्योंकि उन्हें कम संसाधन लगाने पड़ते हैं। 

कार्य-संस्कृति में ऐसे बदलाव लाने को लेकर पश्चिमी देशों की कंपनियां तेजी दिखाती हैं। यूरोप के विभिन्न देश, जहां निर्बाध आवागमन होता है, में कई लोग कामकाज के सिलसिले में रोजाना एक देश से दूसरे देश आते-जाते हैं। इससे एक कदम आगे बढ़कर उन्होंने 'रिमोट वर्किंग' जैसी व्यवस्था पेश की। इसके तहत कर्मचारी मनचाही जगह बैठकर काम करने को स्वतंत्र होते हैं। बस, वे अपना सर्वश्रेष्ठ दें। फिर चाहे वे घर के बगीचे में बैठें, किसी पहाड़ की चोटी पर या दफ्तर की कुर्सी पर। 

रिमोट वर्किंग की वजह से कंपनियों को प्रतिभावान कर्मचारी पाने और उन्हें वहां बनाए रखने में मदद मिल रही है। प्राय: ऐसे कर्मचारी परंपरागत माहौल के साथ खुद को समायोजित नहीं कर पाते। ऐसे में रिमोट वर्किंग उन्हें काफी आजादी देती है।

कंपनियों को ‘द जॉब सर्च प्रोसेस: ए लुक फ्रॉम द इनसाइड आउट’ शीर्षक वाले एक सर्वेक्षण की ओर जरूर ध्यान देना चाहिए। यह कहता है कि दो-तिहाई लोगों ने मिलीजुली व्यवस्था या रिमोट वर्किंग को प्राथमिकता दी है। यही नहीं, इनमें से 71 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने यह स्वीकार किया कि उन्होंने नौकरी ढूंढ़ते समय घर से काम करने की आजादी, काम के घंटों में लचीलापन और जरूरत हो तो ब्रेक लेने की सुविधा को प्राथमिकता दी थी। 

रोजगार वेबसाइट इनडीड इंडिया का सर्वेक्षण यह भी बताता है कि आज का युवा सिर्फ वेतन को प्राथमिकता नहीं देता, वह लचीलापन भी चाहता है। सर्वेक्षण के इस आंकड़े की ओर ध्यान देना जरूरी है कि '63 प्रतिशत नौकरी चाहने वालों ने मिलीजुली व्यवस्था यानी घर और कार्यालय दोनों जगह से काम करने की सुविधा को प्राथमिकता दी। वहीं, 51 प्रतिशत कंपनियों ने भी अपने संचालन में इस तरह के लचीलेपन की पेशकश की।' 

भारतीय कंपनियों को इसका और विस्तार करना चाहिए। यह खासतौर से महिलाओं और कस्बाई व ग्रामीण प्रतिभाओं के जीवन में बड़ा बदलाव ला सकती है। इससे एक ओर जहां महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलेगी, वहीं कस्बों और गांवों में ज्यादा पैसा जाएगा तो लोगों की क्रय शक्ति बढ़ेगी। इससे स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा। 

चूंकि आज गांवों तक इंटरनेट सुविधा पहुंच गई है। बिजली की आपूर्ति बहुत बेहतर हो गई है। बैंक खाते खुल गए हैं। कुल मिलाकर एक ऐसा तंत्र विकसित हो चुका है, जिसे ऊर्जा दी जाए तो वह बहुत प्रगति कर सकता है। सरकारों को चाहिए कि वे कंपनियों को रिमोट वर्किंग और अन्य लचीली व्यवस्थाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करें। साथ ही कस्बाई और ग्रामीण प्रतिभाओं को इनसे जुड़ने के अवसर उपलब्ध कराएं। यह प्रयोग भारत की अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।

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