कतर का 'रवैया'
यहां सबसे पहला सवाल तो यही है कि क्या इन लोगों ने जासूसी की थी
भारत के जिन पूर्व नौसेना कर्मियों को सजाएं सुनाई गई हैं, उनमें कैप्टन, कमांडर, नाविक जैसी रैंक के अधिकारी हैं
भारतीय नौसेना के आठ पूर्व कर्मियों को कतर की अदालत द्वारा मृत्युदंड सुनाए जाने का फैसला हैरान करने वाला है। भारत सरकार ने भी इसे बेहद ‘स्तब्ध’ करने वाला बताया है। उसने मामले में सभी कानूनी विकल्पों पर विचार करने का आश्वासन दिया है। उम्मीद है कि निकट भविष्य में इन लोगों के लिए राहत का कोई रास्ता खुलेगा और ये सकुशल स्वदेश लौटेंगे। कतर में करीब 8 लाख भारतीय काम कर रहे हैं। वे इस देश के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। वहां कई कंपनियों के उच्च पदों पर भारतीय बैठे हैं। अगर यह कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा कि भारतीय कर्मचारी कतर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। इनके लिए कहा जाता है कि ये अपने काम के जानकार, बड़े मेहनती और दृढ़ निश्चयी हैं।
गंभीर किस्म के अपराधों में भारतीय कर्मचारियों का प्रतिशत तुलनात्मक रूप से बहुत कम है। कई लोग तो वहां दशकों से काम कर रहे हैं। वे कतर को अपना 'घर' समझते हैं। इस देश की अदालत का उक्त फैसला कहीं न कहीं इन सब लोगों को भावनात्मक रूप से भी प्रभावित करेगा। आठ भारतीय नागरिक, जिन्हें सजा सुनाई गई है, वे अल दाहरा कंपनी में काम करते थे और उन्हें पिछले साल जासूसी के कथित मामले में हिरासत में लिया गया था।यहां सबसे पहला सवाल तो यही है कि क्या इन लोगों ने जासूसी की थी? अपने देश में नौसेना की नौकरी से सेवानिवृत्ति के बाद ये लोग देश-दुनिया के सैन्य तौर-तरीकों, कानूनों से अच्छी तरह परिचित होंगे। क्या ये एक दूर देश में, जहां के वे नागरिक नहीं हैं, जहां लोगों के अधिकार बहुत सीमित हैं, जो कठोर सजाएं देने के लिए जाना जाता है, वहां जासूसी जैसा काम करने का जोखिम उठा सकते हैं; वह भी एक व्यक्ति नहीं, पूरे आठ? यह बात गले नहीं उतरती। कतर, सऊदी अरब, ईरान ... जैसे देशों में कार्यरत भारतीय बताते हैं कि वे बेहद सजग रहते हैं, ताकि भूल से भी ऐसी कोई ग़लती न हो जाए, जिससे उन्हें गंभीर खामियाजा भुगतना पड़े।
इन देशों में अपराधियों के हाथ काटने, गर्दन कलम करने, गोली मारने ... जैसे तरीकों से सजाएं दी जाती हैं, जिनके बारे में सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो मौजूद हैं, जिनमें लोगों को ऐसी भयानक सजाएं देते देखा जा सकता है। कोई भी उच्च शिक्षित और अपने कार्यक्षेत्र का अनुभवी भारतीय, वहां जाकर ऐसे काम से तो दूर ही रहेगा, जिसे करने से जान गंवाने की नौबत आ जाए। भारत के जिन पूर्व नौसेना कर्मियों को सजाएं सुनाई गई हैं, उनमें कैप्टन, कमांडर, नाविक जैसी रैंक के अधिकारी हैं। कतर के अधिकारियों की ओर से इन पर लगाए गए आरोपों को सार्वजनिक नहीं किया गया है। जब हर स्तर पर इतनी ज्यादा 'गोपनीयता' बरती जा रही है तो इससे कई संदेह पैदा होते हैं।
अगर कतर की अदालत ने इन्हें सजा सुना भी दी, तो क्या इन्हें अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया? आरोप जासूसी के लगाए गए हैं, (तो कथित आरोपों के अनुसार) वह सूचना किस स्तर की थी? क्या उससे कतर को जान-माल का कोई नुकसान हुआ है? ऐसे कई सवाल हैं, जिनके जवाब मिलने अभी बाकी हैं। नौसेना के इन पूर्व कर्मियों का रिकॉर्ड देखा जाए तो उसमें ऐसा कुछ नहीं मिलता, जिससे इन पर किसी आपराधिक गतिविधि में लिप्त होने का संदेह पैदा हो।
भारत के विदेश मंत्रालय ने माना है कि इनका कार्यकाल बेदाग था और इन्होंने सैन्य बल में प्रशिक्षकों सहित महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य किया था। हाल के वर्षों में कतर का रुख भारत के प्रति खास दोस्ताना नहीं रहा है। भारत में एक टीवी कार्यक्रम की टिप्पणी के बाद कतर से सख्त बयान आने शुरू हो गए थे। वहां फीफा विश्व कप में एक धार्मिक उपदेशक की उपस्थिति पर भी विवाद छिड़ गया था, जो भारत में कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए विदेश भाग गया था।
सात अक्टूबर को इजराइल-हमास भिड़ंत के बाद इजराइली विदेश मंत्री एली कोहेन ने कतर पर हमास की फंडिंग करने का आरोप लगाते हुए कहा था कि बंधक बनाए गए 200 से ज्यादा लोगों का भाग्य उसके (कतर के) अमीर के हाथों में था। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घटना को आतंकवादी हमला बताते हुए संवेदनाएं व्यक्त की थीं। उन्होंने कहा था कि हम इस कठिन समय में इज़राइल के साथ एकजुटता से खड़े हैं। क्या कतर के 'रवैए' की एक वजह यह भी है? नौसेना के इन पूर्व कर्मियों के परिवारों को भारत सरकार से बड़ी उम्मीदें हैं। उसे इन नागरिकों की सकुशल वापसी के लिए राजनयिक और कानूनी सहायता देते हुए दृढ़ता से प्रयास करने होंगे।