बेहद सख्त रवैया!

तेहरान की मेट्रो में एक विवादित घटना के बाद कोमा में जाने के एक महीने बाद ईरानी किशोरी अरमिता गेरावंड की मौत हो गई

बेहद सख्त रवैया!

इस घटना ने एक बार फिर महसा अमीनी प्रकरण की यादें ताजा कर दीं

ईरान में 'नैतिकता पुलिस' का बेहद सख्त रवैया इस देश के लिए मुसीबतें खड़ी कर सकता है। करीब एक साल पहले महसा अमीनी नामक युवती की ईरान पुलिस की हिरासत में मौत के बाद भड़की हिंसा को पूरी दुनिया ने देखा था। उस दौरान पुलिस के साथ भिड़ंत में सैकड़ों लोगों की मौतें हुई थीं। वहां जिस तरह मीडिया पर सरकारी पाबंदी है, उसके मद्देनजर यह कहना गलत नहीं होगा कि मृतकों का आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा था। उनमें महिलाओं की बड़ी तादाद थी।

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आज ईरान हमास और हिज्बुल्ला को खुला समर्थन दे रहा है। वह गाजा पट्टी में इजराइली कार्रवाई के बीच मानवाधिकार का मुद्दा उठा रहा है, लेकिन अपने नागरिकों के मानवाधिकारों की परवाह नहीं कर रहा। तेहरान की मेट्रो में एक विवादित घटना के बाद कोमा में जाने के एक महीने बाद ईरानी किशोरी अरमिता गेरावंड की भी मौत हो गई। वे तेहरान में पढ़ाई कर रही थीं। उन्होंने गहन चिकित्सा उपचार और देखभाल में 28 दिनों तक भर्ती रहने के बाद दम तोड़ा।

इस घटना ने एक बार फिर महसा अमीनी प्रकरण की यादें ताजा कर दीं। अरमिता (16) कुर्द थीं, जिन्हें मेट्रो में 'बेहोश' होने के बाद तेहरान के अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इस घटना से ईरान का कुर्द समुदाय आक्रोशित हो सकता है। ऐसा प्रतीत होता है कि ईरानी प्रशासन इस बार भी मामले को दबाने में जुट गया है। उसका यह बयान कि 'अरमिता का रक्तचाप अचानक कम हो गया था, जिससे उसकी मौत हो गई', पर शायद ही किसी को विश्वास हो।

ईरान पर पहले भी मानवाधिकार के उल्लंघन के आरोप लगते रहे हैं। खासतौर से उसकी नैतिकता पुलिस के बारे में कहा जाता है कि वह अपना दबदबा बनाए रखने के लिए किसी भी आम नागरिक को जेल में डाल सकती है।

निस्संदेह हर देश की एक संस्कृति होती है, कुछ सामाजिक तौर-तरीके होते हैं, खास तरह की परंपराएं होती हैं, शिष्टाचार होते हैं, जिनके संबंध में नागरिकों से अपेक्षा की जाती है कि वे उनका ध्यान रखेंगे। लेकिन 21वीं सदी में किसी देश की पुलिस द्वारा एक महिला के पहनावे को लेकर इतनी ज्यादा सख्ती बरते जाने की घटना हैरान करती है, जिसमें उसे जान तक गंवानी पड़ जाए! ईरान के अपने नियम-कानून हैं, लेकिन उसकी पुलिस को कुछ संवेदनशीलता दिखानी चाहिए।

महसा अमीनी के बाद अरमिता का मामला बताता है कि ईरानी पुलिस ने अतीत से कोई सबक नहीं लिया। अरमिता के अंतिम संस्कार में शामिल एक मानवाधिकार कार्यकर्ता नसरीन सोतौदेह को भी ईरान के अधिकारियों ने गिरफ्तार कर लिया। नसरीन एक वकील हैं, जिन्होंने अरमिता की मौत को ‘एक और हत्या’ बताया था। इजराइल और अमेरिका को दिन-रात कोसने वाले ईरानी अखबार इस बात पर चुप्पी साधे हुए हैं कि अरमिता के अंतिम संस्कार में कई गिरफ्तारियां हुई हैं।

इजराइली और अमेरिकी पुलिस की कई नीतियों की खुलकर निंदा की जा सकती है, लेकिन अगर वे अपने देश के नागरिकों के साथ ऐसा बर्ताव करने लग जाएं, जैसा कि ईरानी पुलिस करती है, तो वहां दोषी कर्मी सजा पाते हैं। ईरानी मीडिया इस बात की तो खोज कर लेता है कि जो बाइडेन के दफ्तर में कौनसी 'साजिश' रची जा रही है, लेकिन यह बता पाने में सक्षम नहीं है कि अरमिता के साथ ट्रेन में क्या हुआ था?

उसका मीडिया यह प्रचारित कर रहा है कि अरमिता ने स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर अपना सिर दे मारा था। इसके कुछ सेकंड बाद उन्हें घायल अवस्था में वहां से ले जाया गया था। जबकि सरकारी टेलीविजन की खबर में ट्रेन के अंदर का फुटेज नदारद है। इस बात पर कोई कुछ नहीं बोल रहा कि फुटेज जारी क्यों नहीं किया गया? तेहरान मेट्रो की अधिकांश ट्रेनों में कई सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं। जब ऐसी बातों को दबाया जाता है तो संदेह पैदा होना स्वाभाविक है। ईरानी पुलिस अपने रवैए में थोड़ी नरमी लाए, अन्यथा भविष्य में उसका सामना विरोध-प्रदर्शन की बहुत बड़ी लहर से हो सकता है।

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