जयशंकर के 'शब्दबाण'

अगर पाकिस्तान आतंकवाद का रास्ता नहीं अपनाता तो दोनों देशों में हालात बहुत बेहतर होते

जयशंकर के 'शब्दबाण'

एस जयशंकर ने पाकिस्तान जाकर इस पड़ोसी देश का कच्चा चिट्ठा खोल दिया है

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पाकिस्तान के इस्लामाबाद में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सम्मेलन को संबोधित करते हुए जो 'शब्दबाण' छोड़े, उनसे कई लोगों को गहरी पीड़ा महसूस हुई होगी। यह अलग बात है कि वे उसे जाहिर नहीं कर सके। एस जयशंकर ने जब आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद का मुद्दा उठाया तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ उस सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे थे। विदेश मंत्री ने जिस तरह पाकिस्तान और चीन को आड़े हाथों लिया, वह प्रशंसनीय है। 

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एससीओ के सदस्य देशों को पाक-चीन की असलियत बताने के लिए इस्लामाबाद से बेहतर जगह और कोई नहीं हो सकती थी। इन दोनों देशों का रवैया शांति में बाधक है। पाकिस्तान तो दुनियाभर में आतंकवाद का पर्याय बन चुका है, लेकिन चीन की हकीकत अभी सामने आने लगी है। पाकिस्तान आतंकवाद को परवान चढ़ाने के लिए जो नए-नए प्रयोग करता रहता है, उसके लिए धन, तकनीकी मदद चीन मुहैया कराता है। पाकिस्तान के कई आतंकवादी संदेशों के आदान-प्रदान के लिए चीनी उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं। यही नहीं, उनके पास चीनी हथियार भी हैं। 

एस जयशंकर ने पाकिस्तान जाकर इस पड़ोसी देश का कच्चा चिट्ठा खोल दिया है। बेशक एससीओ के सदस्य देशों के बीच सहयोग बढ़ना चाहिए, व्यापार में वृद्धि होनी चाहिए, जनता खुशहाल होनी चाहिए। इसमें बड़ी समस्या है पाकिस्तान का अड़ियल रवैया। जयशंकर ने उस पर निशाना साधते हुए उचित ही कहा कि 'विकास एवं वृद्धि के लिए शांति एवं स्थिरता अनिवार्य हैं। जैसा कि चार्टर में स्पष्ट किया गया है, इसका अर्थ है- तीन बुराइयों का मुकाबला करने में दृढ़ रहना और समझौता नहीं करना।'

जयशंकर के ही शब्दों में - 'यदि सीमा पार की गतिविधियां आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद से जुड़ी हैं तो उनके साथ-साथ व्यापार, ऊर्जा प्रवाह, संपर्क और लोगों के बीच आपसी लेन-देन को बढ़ावा मिलने की संभावना नहीं है।' पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ एक ओर तो क्षेत्रीय चुनौतियों से निपटने के लिए एससीओ के ढांचे को मजबूत करने की बात करते हैं, दूसरी ओर 'क्षेत्र की बड़ी चुनौतियों' का जिक्र करने से परहेज करते हैं। यहां बड़ी चुनौती पाक प्रायोजित आतंकवाद है। 

अगर पाकिस्तान आतंकवाद का रास्ता नहीं अपनाता तो दोनों देशों में हालात बहुत बेहतर होते, बल्कि पाकिस्तान को इसका ज्यादा फायदा होता। आज पाकिस्तान में महंगाई की सबसे बड़ी वजह उसका आतंकवाद से प्रेम है। पाक को पिछले दशकों में विदेशों से बहुत आर्थिक सहयोग मिला था। उसने अरबों डॉलर से क्या किया? उसने उनसे अच्छे स्कूल, कॉलेज, अस्पताल आदि नहीं बनाए, बल्कि आतंकवादी संगठन बनाए। उसने किशोरों व युवाओं का 'ब्रेन वॉश' कर उन्हें आतंकवाद का प्रशिक्षण दिया और एलओसी की ओर धकेल दिया। वहां भारतीय सेना उनका खात्मा करती रही। आज भी ऐसा हो रहा है। 

अगर पाकिस्तान भविष्य में यही सब करता रहेगा तो वह सबसे ज्यादा नुकसान में रहेगा। भारत जिस तरह उन्नत वैज्ञानिक यंत्रों का निर्माण कर रहा है, उससे भविष्य में आतंकवाद और घुसपैठ जैसी गतिविधियों पर खूब सख्ती से शिकंजा कसा जाएगा। इस बात पर सबने गौर किया होगा कि एक दशक पहले आतंकवादी हमारे शहरों में आकर बड़ी घटनाओं को अंजाम देते थे। 'लावारिस सामान में बम हो सकता है'- जैसी चेतावनी पढ़ने-सुनने को मिलती थी। ऐसा नहीं है कि अब आतंकवादी कोशिशें नहीं करते। वे करते हैं, लेकिन अब एलओसी / सरहद पर ही ढेर कर दिए जाते हैं। देश में मौजूद उनके नेटवर्क का जल्द पर्दाफाश हो जाता है। 

अब शहबाज शरीफ स्वतंत्र हैं कि वे या तो आतंकवाद को बढ़ावा दें और अपनी बदहाल अर्थव्यवस्था में प्राण फूंकने के लिए आईएमएफ के सामने हाथ फैलाएं, अपनी जनता को आटे के लिए लंबी-लंबी कतारों में खड़ा करें, या अपने अतीत की गलतियों को सुधारें, भारत के साथ मैत्री संबंधों को बढ़ाएं और अपनी जनता की बेहतरी के लिए कुछ करें। फैसला उनका है। भारत तो उनके किसी झांसे में आने वाला नहीं है।

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