बांग्लादेश: कब सुरक्षित होंगे अल्पसंख्यक?

सतखीरा जिला स्थित एक मंदिर से तो हस्तनिर्मित स्वर्ण मुकुट चोरी हो गया

बांग्लादेश: कब सुरक्षित होंगे अल्पसंख्यक?

बांग्लादेशी अल्पसंख्यकों के लिए उम्मीद की एकमात्र किरण भारत है

बांग्लादेश में हाल के वर्षों में दुर्गापूजा के दौरान जिस तरह से अल्पसंख्यकों पर हमलों की घटनाएं हुईं, उससे पता चलता है कि इस पड़ोसी देश में उपद्रवियों का दुस्साहस बढ़ता जा रहा है। जब शेख हसीना बांग्लादेश की प्रधानमंत्री थीं, तब कुछ उम्मीद थी कि वे अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करेंगी। 

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अब मुहम्मद यूनुस के राज में जो कुछ हो रहा है, उससे तो ऐसा लगता है कि उन्होंने पूरे बांग्लादेश के उपद्रवियों को खुली छूट दे दी है। यूनुस ढाकेश्वरी मंदिर जरूर गए और 'हर नागरिक के अधिकारों को सुनिश्चित' करने के लिए उपदेशों से भरा भाषण दे आए, लेकिन उपद्रवियों के खिलाफ कार्रवाई करने संबंधी कड़ी चेतावनी देने से बचते रहे। 

वे अपनी छवि एक शांतिपुरुष और बुद्धिजीवी जैसी बनाकर रखना चाहते हैं। उनके भाषणों और बयानों से यही झलकता रहता है कि 'क्या होना चाहिए', बस वे इस बात को लेकर मौन हैं कि 'अब तक क्या किया'! संभवत: मुहम्मद यूनुस को डर है कि अगर उन्होंने सख्ती दिखाई तो उनके साथ वही हो सकता है, जो शेख हसीना के साथ हुआ था। 

बांग्लादेश के ही एक दैनिक अखबार ने बताया था कि पुराने ढाका के टाटी बाजार इलाके में एक दुर्गापूजा पंडाल पर कथित तौर पर देसी बम फेंका गया। इससे कोई हताहत नहीं हुआ, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि उपद्रवियों में कानून का खौफ क्यों नहीं है? पुलिस के पास अपने इलाके के हर बदमाश की कुंडली होती है। ऐसी हरकतें कौन कर सकता है, यह पता लगाना उसके लिए कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है। जब वहां हर साल हिंदुओं पर हमले हो रहे थे तो पुलिस ने सावधानी क्यों नहीं बरती? सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किए गए?

बांग्लादेश के सतखीरा जिला स्थित एक मंदिर से तो हस्तनिर्मित स्वर्ण मुकुट चोरी हो गया! वह प्रधानमंत्री मोदी की ओर से उस मंदिर को भेंट किया गया था। आखिर बांग्लादेश की एजेंसियां क्या कर रही हैं? वहां जिस तरह अल्पसंख्यकों को सताया जा रहा है, उनके पूजा स्थलों का अपमान किया जा रहा है, वह अत्यंत निंदनीय है। 

क्या बांग्लादेश सरकार इन घटनाओं से सबक लेकर अपने सभी अल्पसंख्यकों और उनके पूजा स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की कोशिश करेगी? कहने को तो अब तक दर्जनभर मामले दर्ज कर कुछ लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। जब ये लोग राहत पाकर जेल से बाहर आ जाएंगे तो फिर कोई बखेड़ा करेंगे। दीपावली, क्रिसमस, मकर संक्रांति, होली ... समेत कई त्योहार आने वाले हैं, जिनके आयोजनों में उपद्रवी रंग में भंग डाल सकते हैं। 

बांग्लादेश सरकार को चाहिए कि वह अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए सख्त कानून बनाए। जो उपद्रवी उनके त्योहारों में खलल डालने की कोशिश करें, उन पर भारी जुर्माना लगाने के साथ ही उन्हें कई साल के लिए जेल भेजे। वहीं, भारत सरकार को अपना किरदार और मजबूती से निभाना होगा। 

बांग्लादेशी अल्पसंख्यकों के लिए उम्मीद की एकमात्र किरण भारत है। हाल में वहां जो कुछ हुआ, बहुत दुर्भाग्यपूर्ण रहा। जिस देश को आज़ाद करवाने के लिए हमारे सैनिकों ने लहू दिया था, जिस देश की अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए हमने सहयोग दिया था, आज उसी के कुछ लोग भारतविरोधी बयान दे रहे हैं! 

ये बांग्लादेशी भूल गए, अगर भारत ने इन्हें आज़ाद नहीं करवाया होता तो आज रावलपिंडी के जनरल इनकी छाती पर मूंग दल रहे होते। भारत ने इनके प्रति काफी नरमी दिखा दी, जिससे ये अपने बयानों और हरकतों के नतीजों को लेकर गंभीर नहीं हैं। 

कुछ समय पहले मालदीव के तेवर भी खासे तीखे थे, लेकिन जब खजाना खाली होने लगा तो मुइज्जू को आटे-दाल का भाव पता चल गया। भारत को बांग्लादेश के प्रति अपने रवैए में सख्ती लानी होगी। बांग्लादेशियों को साफ-साफ समझाना होगा कि अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न, भारतविरोधी बयानबाजी के बाद यह उम्मीद न रखें कि दिल्ली से आपके लिए ठंडी हवाएं आएंगी।

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