पिछली 'गलतियों' से सीखेंगे ट्रंप?

डोनाल्ड ट्रंप का ईरान के साथ छत्तीस का आंकड़ा रहा है

पिछली 'गलतियों' से सीखेंगे ट्रंप?

बाइडन रूस-यूक्रेन युद्ध रुकवाने में नाकाम रहे

अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर जीत दर्ज कर अपने विरोधियों के सारे दावों को धराशायी कर दिया। ट्रंप जनवरी 2017 से जनवरी 2021 तक राष्ट्रपति रहे हैं। उन्होंने उस कार्यकाल के लिए चुनाव जीतने के बाद अपने भाषण में इच्छा जताई थी कि वे दूसरी बार भी राष्ट्रपति निर्वाचित हों। 

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उनका पिछला कार्यकाल जिस तरह विवादों में रहा और कोरोना महामारी में कुप्रबंधन के आरोप लगे, उससे उनकी लोकप्रियता पर काफी असर पड़ा था। उसका फायदा जो बाइडन को मिला था, जो राष्ट्रपति तो बने, लेकिन उनके प्रदर्शन ने अमेरिका को कई मोर्चों पर निराश ही किया। 

बाइडन रूस-यूक्रेन युद्ध रुकवाने में नाकाम रहे। उनके सत्ता में रहते ईरान के हौसले बुलंद हुए, जिसने हमास, हिज्बुल्लाह जैसे उग्रवादी संगठनों को इतना मजबूत कर दिया कि वे इजराइल पर सीधा धावा बोलने लगे। इस यहूदी राष्ट्र पर मिसाइलों की भारी बौछार हुई थी। वह लड़ाई अब तक जारी है। डोनाल्ड ट्रंप की सबसे बड़ी परीक्षा तो इन दोनों मोर्चों पर होगी। 

यूक्रेन को जो बाइडन और उनकी मंडली से आश्वासन तो खूब मिले थे, जबकि धरातल पर स्थिति बिल्कुल अलग थी। इस देश को जन-धन का भारी नुकसान उठाना पड़ा है। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को डोनाल्ड ट्रंप से बड़ी उम्मीदें हैं। उन्होंने अपने बधाई संदेश में भी समर्थन की अपील कर दी। जेलेंस्की जानते हैं कि अब युद्ध को लंबा खींचना बहुत ज्यादा महंगा पड़ेगा। 

यूक्रेन की जनता इस स्थिति में नहीं है कि वह और जनहानि बर्दाश्त कर सके। रूस के तेवर आक्रामक जरूर हैं, लेकिन जनता वहां भी परेशान है। ऐसे में 'युद्धविराम' और 'शांति समझौता' जैसे विकल्प ही बाकी रह जाते हैं। अगर ट्रंप ईमानदारी से कोशिश करेंगे तो इन दोनों देशों को 'राहत' मिलने का कोई रास्ता निकाल सकते हैं।

डोनाल्ड ट्रंप का ईरान के साथ छत्तीस का आंकड़ा रहा है। मतगणना के रुझानों में उनकी बढ़त के संकेत मिलते ही ईरानी मुद्रा रियाल में गिरावट आने लगी थी। उनके द्वारा ईरान पर नए प्रतिबंधों की घोषणा किए जाने के कयास अकारण ही नहीं लगाए जा रहे हैं। उन्होंने साल 2018 में जिस तरह एकतरफा ढंग से समझौते से अलग होने का फैसला किया और ईरान के शीर्ष वैज्ञानिकों-सैन्य अधिकारियों पर हमले हुए, उससे दोनों देशों के बीच तनाव बहुत बढ़ गया था।

अगर ट्रंप के शपथग्रहण के बाद अमेरिका-ईरान के रिश्तों में तल्खी कम हो जाए तो यह बहुत बड़ा 'चमत्कार' माना जाएगा, जिसकी संभावना कम ही नजर आती है। ट्रंप इजराइल के साथ खुलकर एकजुटता जताते हैं। उनकी जीत की खबर आते ही इजराइल में लोग जश्न मनाने लगे। उन्हें पूरी उम्मीद है कि जारी लड़ाई में ट्रंप उनके देश के साथ मजबूती से खड़े होंगे। 

ट्रंप इस बात को लेकर दबाव डाल सकते हैं कि हमास द्वारा बंधक बनाए गए इजराइली नागरिकों को रिहा किया जाए। डोनाल्ड ट्रंप को अपनी पिछली 'गलतियों' से भी सीखना होगा। कोरोना महामारी ने उनकी खूब किरकिरी कराई थी। अमेरिका की एजेंसियां, जिनका फिल्मों में बहुत ज्यादा महिमा-मंडन किया जाता है, समय रहते 'खतरा' भांपने में विफल रही थीं। वहीं, महामारी से निपटने के प्रयासों में ढेरों खामियां नजर आई थीं। 

उस दौरान चीन, जहां से कोरोना वायरस पूरी दुनिया में फैला, की उद्दंडता बढ़ी। अब ड्रैगन की मनमानी को नियंत्रित करना जरूरी है। ट्रंप एक ओर तो आतंकवाद को समूल नष्ट करने की बातें करते रहे, जबकि दूसरी ओर पाकिस्तान को नकेल डालने की इच्छाशक्ति नहीं दिखा सके। 

अगर आतंकवाद के खिलाफ दृढ़ता से कार्रवाई करनी है तो पाक पर आर्थिक प्रतिबंधों समेत कई तरह की पाबंदियां लगानी होंगी। ट्रंप से उम्मीद है कि वे भारत के साथ सहयोग बढ़ाएंगे। दोनों देशों के बीच शिक्षा, व्यापार, रोजगार, पर्यटन समेत विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ना चाहिए। भारतीय प्रतिभाओं के लिए वीजा नियमों में भी आसानी होनी चाहिए।

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