महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद के लिए जोड़-तोड़ शुरू!
इंडि गठबंधन में भी मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर तस्वीर साफ नहीं है
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अशोक भाटिया
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बहरहाल केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने यह साफ कर दिया है कि एकनाथ शिंदे मौजूदा मुख्यमंत्री हैं, लेकिन महाराष्ट्र नए सीएम का फैसला चुनाव नतीजे आने के बाद एनडीए में शामिल तीनों दल बैठक कर तय करेंगे| इससे एक बात को साफ हो गई है कि शिंदे एनडीए के सीएम चेहरा नहीं है और चुनाव के बाद बीजेपी अपने पत्ते खोलेगी| इसी तरह की स्थिति इंडिया गठबंधन में भी है, कांग्रेस, उद्धव ठाकरे और शरद पवार मिलकर जरूर चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन सीएम पद को लेकर तीनों ही दलों की नजर है| शरद पवार ने भी अमित शाह की तर्ज पर कहा है कि गठबंधन नतीजे आने के बाद सीएम पद के लिए विमर्श करेगा| हालांकि, शिवसेना और एनसीपी के सूत्रों का मानना है कि गठबंधन की राजनीति में कई कारक मुख्यमंत्री के चेहरे को निर्धारित करते हैं, खासकर जब कोई भी पार्टी अकेले बहुमत नहीं पाती है| इसलिए अभी इस चर्चा में जाने का कोई मतलब नहीं है| वैसे भी महाराष्ट्र की राजनीति पिछले ५ सालों में जैसे बदल रही है उसके हिसाब से कुछ भी कहा नहीं जा सकता है|
मुख्यमंत्री पद के लिए फडणवीस को मिल रहे समर्थन के दो कारण गिनाएं जा रहे हैं| जैसा कि २०१४ से २०१९ के बीच जब फडणवीस राज्य के शीर्ष पर थे, महाराष्ट्र ने राज्य के कल्याण के लिए साहसिक प्रशासनिक कदम उठाए| पार्टी और आरएसएस में बहुत से लोग मानते हैं कि उन्हें २०२२ में एनडीए में शिवसेना को समायोजित करने के लिए मुख्यमंत्री का पद त्यागना पड़ा था और अगर भाजपा अपनी ताकत के बलबूते सत्ता में लौटती है, तो ऐसा फिर नहीं होना चाहिए| वर्ष २०१९ विधानसभा चुनावों से पहले, जब भाजपा अविभाजित शिवसेना के साथ गठबंधन में थी, उसने फडणवीस को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया गया| उनके राज्यव्यापी जनादेश यात्रा के बाद भाजपा ने १०५ सीटें जीत लीं| इसके साथ ही बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, जबकि अविभाजित शिवसेना ५६ सीटों पर सिमट गई| बाद में उद्धव ठाकरे ने अविभाजित एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई| इस गठबंधन के विद्रोह के सूत्रधार के रूप में फडणवीस को देखा गया था| फडणवीस ने शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने की पेशकश की और कहा कि वे सरकार में शामिल नहीं होंगे|बाद में उन्हें उपमुख्यमंत्री के रूप में शामिल होने के लिए पार्टी ने मना लिया| इन दो कारणों के चलते पार्टी में लोग चाहते हैं कि उन्हें फिर से वो सम्मान दिलाया जाए|
वहीं, कांग्रेस के अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन में भी मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर तस्वीर साफ नहीं है| २०१९ के चुनाव बाद बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ने के चलते शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को भले ही एनसीपी-कांग्रेस ने सीएम बनाने की शर्त मान ली थी, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद स्थिति बदल गई है| कांग्रेस महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, जिसके चलते उसकी महत्वाकांक्षा जागी है| शरद पवार ने जिस तरह से लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया है, उसके चलते सत्ता पर राज करने की इच्छा जागी है|
उद्धव ठाकरे खेमा पहले ही सीएम पद की लालसा जाहिर कर चुका है और मानकर चल रहा है कि इंडिया गठबंधन अगर चुनाव जीतकर सत्ता में लौटता है तो उद्धव ठाकरे सीएम बनेंगे| ऐसे में सवाल उठता है कि जिस उद्धव ठाकरे ने इसी सवाल पर राजग से नाता तोड़ लिया, वह एमवीए की सरकार में दूसरे दल के नेतृत्व को स्वीकार करेंगे| ऐसे में फिर एक बार सियासी उथल-पुथल की संभावना बनती दिख रही है, लेकिन नतीजे के ऊपर सब निर्भर करेगा|
मुख्यमंत्री पद के अलावा भी कई मतभेद दोनों गठबंधन में शामिल दलों के बीच हैं| उद्धव ठाकरे की शिवसेना शुरू से ही हिंदुत्व के एजेंडे पर रही है और सावरकर को अपने आदर्श नेताओं में गिनती रही है| सीएम पद के लिए उद्धव ठाकरे ने अपने विरोधी विचारधारा वाली कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी, लेकिन वैचारिक टकराव बना रहा| सावरकर के सवाल पर मतभेद हैं| उद्धव ठाकरे नहीं चाहते कि राज्य में कांग्रेस सावरकर के खिलाफ बोले, जबकि कांग्रेस सावरकर को लेकर बीजेपी और संघ पर सवाल खड़े करती रही| हिंदुत्व और सावरकर के मुद्दे पर कांग्रेस और उद्धव खेमे में अलग-अलग सुर सामने आते रहते हैं|
वहीं, दूसरी ओर एनडीए गठबंधन में शामिल अजित पवार की एनसीपी का भी वैचारिक स्तर पर बीजेपी के साथ मेल नहीं खा रहा| बीजेपी अपने सियासी एजेंडे के मुताबिक हिंदुत्व की बिसात पर नैरेटिव सेट कर रही है| सीएम योगी से लेकर पीएम मोदी तक बंटेंगे तो कटेंगे, एक रहेंगे, नेक रहेंगे और सेफ रहेंगे की बात कर रहे हैं तो अजित पवार को यह सूट नहीं कर रहा है| अजित पवार ने साफ कह दिया है कि महाराष्ट्र में इस तरह की सांप्रदायिक विभाजन वाली राजनीति नहीं चलने वाली है|
अजित पवार ने कहा कि महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज और डॉ| अंबेडकर की विचारधारा चलेगी| यही नहीं बीजेपी के विरोध के बावजूद अजित पवार ने नवाब मलिक को टिकट ही नहीं दिया बल्कि पूरे दमखम के साथ उनके साथ खड़े हैं| इस तरह महाराष्ट्र में बने बेमेल गठबंधन चुनाव के बाद भी एक रहेंगे यह बड़ा सवाल है| सूत्रों का यह भी कहना है कि लोकसभा में मिली हार के बाद भाजपा कोर्स करेक्शन मोड में दिखाई देगा| भले ही फडणवीस सीएम पद के प्रमुख दावेदार हो सकते हैं, फिर भी महायुति के भीतर अपनी पसंद को अपने सहयोगियों पर थोपने के लिए भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरना होगा| बल्कि सबसे बड़ी पार्टी के साथ-साथ इस तरह का बहुमत लाना होगा कि शिवसेना या एनसीपी के साथ बीजेपी को सौदेबाजी न करनी पड़े| पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो अजित पवार और शिंदे अपनी शक्ति दिखा सकते हैं| क्योंकि महाविकास अघाड़ी किसी भी शर्त पर सरकार बनाने के लिए तैयार होगी| एनसीपी तो अभी से इस तरह व्यवहार कर रही है जैसे चुनाव बाद किसी के साथ जाने को स्वतंत्र है| हंग विधानसभा होने की स्थित में बहुत कम विधायकों के साथ भी ये दोनों पार्टियां सौदेबाजी के लिए स्वतंत्र होंगी|इसलिए अभी से फडणवीस का नाम क्यों बीजेपी ले रही है यह समझ से बाहर है| हंग असेंबली हुई तो एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री पद का ऑफर दोनों ही ओर होगा| ऐसे में देखना है कि चुनाव के बाद कौन किसके साथ कैसे रहते हैं, लेकिन सरकार गठबंधन के लिए सिर्फ ३ दिन का ही समय मिलेगा?