नायकों का सम्मान करें

पाकिस्तान अपनी जड़ों से कटकर रहना चाहता है

नायकों का सम्मान करें

सूचना क्रांति के युग में सच्चाई को छिपाना आसान नहीं है

पाकिस्तान के लाहौर में शादमान चौक का नाम महान स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के नाम पर रखने के प्रस्ताव को रद्द किया जाना अत्यंत निंदनीय है। इस भ्रमित पड़ोसी देश की ऐसी हरकत पर किसी को अचंभा नहीं होना चाहिए, क्योंकि इसके 'नायक' तो ओसामा बिन लादेन, दाऊद इब्राहिम, हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे खूंखार आतंकवादी हैं। यह ग़ौरी, ग़ज़नवी और उन क्रूर विदेशी आक्रांताओं पर गर्व करता है, जिन्होंने कभी उसी इलाके में नरसंहार किया था, जहां अब पाकिस्तान स्थित है। आज आम पाकिस्तानी को पता ही नहीं कि भगत सिंह कौन थे! किसने सोचा होगा कि एक दिन ऐसा भी आएगा, जब उसी धरती के लोग भगत सिंह के बलिदान से अनभिज्ञ होंगे, जहां उनका जन्म हुआ, जिसकी आज़ादी के लिए उन्होंने अपने प्राण तक दे दिए थे? पाकिस्तान के उस सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी, जिसकी राय के आधार पर प्रस्ताव को रद्द किया गया, के बौद्धिक स्तर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे भगत सिंह को क्रांतिकारी नहीं मानते। वे उनके शौर्य और वीरतापूर्ण कार्यों को ऐसे लोगों के साथ जोड़कर देख रहे हैं, जो निजी स्वार्थों के लिए कोई अपराध करते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि पाकिस्तान के ये पूर्व सैन्य अधिकारी अपनी नौकरी से ही 'निवृत्त' नहीं हुए, बल्कि बुद्धि से भी 'निवृत्त' हो गए! इन्हें क्रांतिकारियों और अपराधियों के बीच अंतर ही नहीं मालूम! भगत सिंह और समस्त बलिदानियों को किसी के प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने उस समय अपने देशवासियों की आज़ादी के लिए जो भी संभव था, वह किया। हमें उनका कृतज्ञ होना चाहिए। जो लोग अपने नायकों का सम्मान नहीं करते, वे ठोकरें खाते हैं। आज पाकिस्तान के साथ यही हो रहा है। अपने पूर्वजों से नफरत, उनके धर्म से नफरत, उनके प्रतीकों से नफरत, उनके त्योहारों से नफरत, उनकी भाषा से नफरत, उनके संस्कारों से नफरत और अब उनके त्याग एवं बलिदान से नफरत ...!

Dakshin Bharat at Google News
पाकिस्तान ऐसा कृत्रिम देश है, जो अपनी जड़ों से कटकर रहना चाहता है। यह कैसे संभव है? जो अपनी जड़ों से जुदा हो जाता है, वह मुर्झाता है। पाकिस्तान के स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रमों में नेताजी सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों-बलिदानियों के योगदान के बारे में कुछ नहीं पढ़ाया जाता। उसकी किताबें विदेशी आक्रांताओं की झूठी वाहवाही से भरी पड़ी हैं। पाकिस्तानी बच्चों के दिमाग में नफरत का जहर घोलने के लिए यह रटाया जाता है कि विदेशी आक्रांता बड़े न्यायप्रिय, दयालु, अनुशासित और महान थे। उनके क्रूर कारनामों को किसी-न-किसी कुतर्क से उचित ठहराकर अपना संबंध उनसे जोड़ने की कोशिश की जाती है। इससे पाकिस्तानी इतने भ्रम के शिकार हो चुके हैं कि न उन्हें अखंड भारत के स्वतंत्रता संग्राम के बारे में सही जानकारी होती है और न वर्ष 1947 के बाद हुईं घटनाओं के बारे में ज्यादा पता होता है। आज भी कई पाकिस्तानी मानते हैं कि वर्ष 1971 के युद्ध में उनका मुल्क जीता था! सोशल मीडिया के प्रसार से पहले ज्यादातर पाकिस्तानी इसी भ्रम में जी रहे थे। जब उन्होंने 16 दिसंबर के आस-पास ले. जनरल नियाजी की वह तस्वीर शेयर होते देखी, जिसमें उनके 93,000 फौजी ढाका में आत्मसमर्पण कर रहे थे, तो उन्हें बड़ा धक्का लगा। अब वहां लोग वर्ष 1965, 1971 और 1999 के युद्धों पर चर्चा करने लगे हैं। पाकिस्तान के जिस सेवानिवृत्त अधिकारी ने भगत सिंह के बारे में गलत बयानबाजी कर अपनी विवेकहीनता का परिचय दिया, सोशल मीडिया पर उसी के मुल्क के कई लोग उसे आड़े हाथों ले रहे हैं। सूचना क्रांति के इस युग में सच्चाई को छिपाना आसान नहीं है। देर-सबेर लोगों को सब पता चल ही जाएगा।

About The Author

Related Posts

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download