नशाखोरी को बढ़ावा क्यों?

नशाखोरी को बढ़ावा देने वाले ऐसे गीतों का नकारात्मक असर हुआ है

नशाखोरी को बढ़ावा क्यों?

क्षणिक प्रसिद्धि और पैसा कमाने के लिए ऐसा करने वालों से सावधान रहना चाहिए

पंजाबी के एक मशहूर गायक का यह कहना हास्यास्पद है कि अगर देश में सभी 'ठेके' बंद कर दिए जाएं तो वे शराब-थीम वाले गाने गाना बंद कर देंगे! इसका मतलब यह हुआ कि पहले पूरे देश में सुधार करें, उसके बाद मैं खुद को सुधारने की कोशिश करूंगा। गायक, नेता, लेखक, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता ... ये ऐसे लोग हैं, जिनके शब्दों एवं कार्यों का समाज पर गहरा असर होता है। इन्हें सामाजिक जीवन में ऐसा व्यवहार करना चाहिए, जो आदर्श हो। पंजाबी एक महान भाषा है। इसका साहित्य समृद्ध है। इसका संगीत अद्भुत है। सिक्ख गुरुओं द्वारा इस भाषा में दिए गए आध्यात्मिक संदेश ने अनगिनत लोगों का उद्धार किया। दुर्भाग्य से कुछ लेखकों व गायकों ने इस भाषा के जरिए नशाखोरी और हिंसा को बढ़ावा देने वाले ऐसे गीत पेश किए, जिनका सर्वसमाज पर नकारात्मक असर हुआ है। शादियों, जन्मदिन की पार्टियों, होस्टल के कार्यक्रमों और अन्य शुभ अवसरों पर पंजाबी गाने खूब चलाए जाते हैं। पंजाबी में अच्छे गाने भी हैं, लेकिन पिछले कुछ दशकों में शराब और हिंसा को बढ़ावा देने वाले गानों की बाढ़-सी आ गई है। इनका किशोरों और युवाओं पर बहुत गलत असर होता है। कई माता-पिता तो अपने दो-तीन साल के बच्चों के ऐसे वीडियो भी सोशल मीडिया पर बहुत गर्व से पोस्ट करते हैं, जिनमें वे नशाखोरी को समर्थन देने वाले गानों पर नृत्य करते नजर आते हैं। क्या इससे बच्चे के मन में यह बात घर नहीं करेगी कि नशा करना एक सामाजिक परंपरा है, जिसे निभाने में बुराई नहीं, बल्कि अच्छाई है?

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पंजाबी वीरों की भाषा है। गुरु गोबिंद सिंहजी, महाराजा रणजीत सिंह, भगत सिंह और अनेक योद्धाओं ने इस भाषा के जरिए लोगों, खासकर युवाओं को चरित्र की पवित्रता एवं मन की निर्मलता का संदेश दिया था। युवाओं को याद रखना चाहिए कि शराब विवेकहीनता को बढ़ावा देती है। इसकी तारीफ करने वाले गानों पर थिरकने में कोई बहादुरी या अक्लमंदी नहीं है। यह कुतर्क देकर मन को झूठी दिलासा न दें कि 'अरे! यह गाना ही तो है, इससे कुछ नहीं होगा।' हो सकता है कि भविष्य में कुछ लोग यह कुतर्क देने लगें कि 'गानों से कुछ नहीं होता, लिहाजा चोरी, डकैती, हत्या, अपहरण, आतंकवाद आदि पर भी गाने होने चाहिएं!' कोई गाना चंद शब्दों का समूहभर नहीं होता है। उसके साथ संगीत की धुन और कुछ भावनाएं जुड़ी होती हैं। जब कोई व्यक्ति भजन या देशप्रेम से जुड़ा गीत सुनता है तो उसकी भावनाएं कुछ और होती हैं, अन्य विषयों से संबंधित गीत सुनते समय भावनाएं कुछ और होती हैं। शराब एक ऐसी बुराई है, जिसने कई शासकों के राजपाट चौपट कर दिए। कई शायर, विद्वान और प्रतिभाशाली लोग, जो समाज की बेहतरी में बहुत योगदान दे सकते थे, सिर्फ इस वजह से बर्बाद हो गए, क्योंकि उन्हें शराब से बड़ा लगाव हो गया था। अगर सामान्य जनजीवन पर नजर डालें तो हर गांव में ऐसे कुछ परिवार मिल जाएंगे, जो बहुत बेहतर स्थिति में हो सकते थे, लेकिन परिवार के किसी सदस्य ने सबकुछ शराब की बोतलों में डुबो दिया। ऐसे परिवारों में महिलाएं और बच्चे घोर आर्थिक संकट का सामना करते हैं। उनकी सामाजिक स्थिति पर भी प्रतिकूल असर होता है। उन परिवारों के कई बच्चे खुद छिपकर नशाखोरी करने लगते हैं। जब समाज में पहले से इतनी चुनौतियां, इतनी बुराइयां मौजूद हैं, तो कलाकारों को चाहिए कि वे अपनी प्रतिभा का उपयोग आदर्श समाज बनाने के लिए करें। अगर किशोर और युवा ऐसे गाने सुनेंगे, जिनमें शराब, हिंसा और अश्लीलता का खुलकर समर्थन किया जा रहा हो, तो उनका मन इन बुराइयों की ओर जाने के लिए क्यों नहीं ललचाएगा? कला का उद्देश्य बुराई को बढ़ावा देना तो बिल्कुल नहीं होता। क्षणिक प्रसिद्धि और पैसा कमाने के लिए ऐसा करने वालों से सावधान रहना चाहिए।

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