चेन्नई/दक्षिण भारत राज्य की मौजूदा अखिल भारतीय अन्ना द्रवि़ड मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) सरकार राज्य में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को बेहतर बनाने का दावा कर रही है। इसके द्वारा स्कूलों में बेहतर ढांचागत सुविधा उपलब्ध करवाने और पाठ्य सामग्री को बेहतर बनाने के लिए कई कदम भी उठाए गए है लेकिन अब यह राज्य के ऐसे सरकारी स्कूलों को बंद करने या विलय करने की योजना बना रही है जिनमें बच्चों ने दाखिला नहीं लिया है या फिर जिन स्कूलों में दाखिला लेने वाले बच्चों की संख्या कम है। राज्य के शिक्षाविदें का कहना है यदि सरकार ऐसा करती है तो यह सही नहीं होगा क्योंकि शिक्षा का अधिकार कानून २००९ के तहत सभी क्षेत्रों में स्कूलों की संख्या बढाने पर ज्यादा ध्यान देने की बात कही गई है ताकि बच्चों को पढने के लिए ज्यादा दूर नहीं जाना प़डे।र्े्रु्रु फ्द्य·र्ैंय्द्यर् ड·रू ध्ह्र द्बष्ठ्र र्ीं्रु फ्ष्ठ ·र्ैंद्ब च्णय्ॠराज्य स्कूली शिक्षा विभाग के आधिकारिक सूत्रों के हवाले से मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार राज्य के लगभग ३३ सरकारी वित्त पोषित स्कूल ऐसे हैं जिनमें कोई छात्र नहीं है और सरकार इन स्कूलों को बंद करने की योजना बना रही है। इन स्कूलों में पढाने वाले शिक्षकों को निकट के स्कूलों में नियुक्त कर दिया जाएगा। इसके साथ ही करीब ८०० स्कूल है जिनमें १० से कम छात्र हैं इन स्कूलों के बच्चों को निकट के किसी ऐसे स्कूलों में स्थानांतरित कर दिया जाएगा जहां पर पढने वाले बच्चों की संख्या अधिक है। विलय के बाद इन स्कूल की इमारतों का क्या किया जाएगा इसके बारे में अभी तक कुछ भी स्पष्ट नहीं किया गया है लेकिन ऐसा कहा जा रहा है कि स्कूलों के परित्यक्त भवनों को पुस्तकालय में बदला जा सकता है।द्धङ्गय्ह्र ·र्ैंय् ख्रय्यक्वध्य् द्धढ्ढणय्द्मष्ठ ·र्ैंर् ·र्ैंह्यप्रय्प्रय् ब्रुंश्च द्मय्·र्ैंय्द्बज्ञातव्य है कि राज्य में पिछले सात वर्षों में शिक्षा का कानून (आरटीई)लागू होने के बाद राज्य के जिन ३.२ लाख बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिला लेना चाहिए था उन बच्चों ने निजी स्कूलों में दाखिला लिया है। राज्य सरकार ने सरकारी स्कूलों में बच्चों के दाखिले की संख्या बढाने के लिए कई प्रयास किए गए हैं। जिन स्कूलों में बच्चों की संख्या कम है वहां के शिक्षकों और प्रधानाचार्य को अपने आसप़डोस के बच्चों के अभिभावकों से मिलने और उन्हें अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए समझाने के लिए भी कहा है लेकिन इसके बावजूद भी सरकारी स्कूलों में अपेक्षानुरुप दाखिले नहीं हुए हैं।फ्द्य·र्ैंय्द्यर् ड·रू ध्ह्र ·र्ैंर् फ्रु्यप्थ्य् झ्द्य फ्द्य·र्ैंय्द्य ·र्ैंय् क्द्भय्द्म द्मब्र््रराज्य के शिक्षाविदें का कहना है कि राज्य सरकार द्वारा सरकारी स्कूलों में उपयुक्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं करवाई गई है और यही कारण है कि इन स्कूलों के प्रति बच्चे और उनके अभिभावक आकर्षित नहीं होते। शिक्षा के अधिकार के लिए कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं के अनुसार राज्य के प्राथमिक विद्यालयों में साफ सफाई कर्मचारी, पहरेदार या शारीरिक शिक्षा शिक्षक नियुक्त नहीं किया जाता है और स्कूल के कार्यालय का रिकॉर्ड रखने और स्वच्छता बनाए रखने की जिम्मेदारी भी इन स्कूलों के शिक्षकों पर ही होती है। इसके साथ ही शिक्षकों को सभी पांच विषयों को प़ढाना होता है। ऐसी स्थिति होने के कारण ही अभिभावक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों मंें नहीं भेजते।ृय्द्यट्टर्ंश्च ·द्द द्धय्द्यष्ठ द्बष्ठ्र फ्द्य·र्ैंय्द्य ·र्ैंर् द्मर््यत्र डझ्लट्ट द्मब्र््रजुलाई २०१२ में मद्रास उच्च न्यायालय ने पाया कि राज्य में आरटीई अधिनियम सही ढंग से लागू नहीं किया जा रहा है क्योंकि नियमों में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि किसी इलाके में एक से अधिक स्कूल हैं तो बच्चे किस स्कूल में दाखिला लें। राज्य सरकार ने न तो शिक्षा के अधिकार कानून को चुनौती दी और न ही विभिन्न इलाको में स्थित ऐसे स्कूलों को चिन्हित किया जिनमें शिक्षा का अधिकार कानून के तहत बच्चे दाखिला ले सकते हैं। राज्य सरकार शिक्षा की नीतियों को बनाने में पूरी तरह से विफल हुई है। इसी क्रम में पिछले सात वषार्े के दौरान केन्द्र सरकार ने अपनी नई शिक्षा नीति में समग्र स्कूलों की अवधारणा का प्रस्ताव सामने रखा है जोकि पूरी तरह से स्पष्ट है और राज्य सरकार को भी इसका अनुसरण करना चाहिए।