विघ्नहर्ता, शुभकर्ता श्रीगणेश बहुआयामी देवता
गणेश भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं
गणेश चतुर्थी को अधिक से अधिक भव्यता से मनाने का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है
ललित गर्ग
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गणेश के रूप में विष्णु शिव-पार्वती के पुत्र के रूप में जन्म थे| उनके जन्म पर सभी देव उन्हें आशाीर्वाद देने आए थे| विष्णु ने उन्हें ज्ञान का, ब्रह्मा ने यश और पूजन का, धर्मदेव पे धर्म तथा दया का आशीर्वाद दिया| शिव ने उदारता, बुद्धि, शक्ति एवं आत्म संयम का आशीर्वाद दिया| लक्ष्मी ने कहा कि ‘जहां गणेश रहेंगे, वहां मैं रहूंगी|’ सरस्वती ने वाणी, स्मृति एवं वक्तृत्व-शक्ति प्रदान की| सावित्री ने बुद्धि दी| त्रिदेवों ने गणेश को अग्रपूज्य, प्रथम देव एवं रिद्धि-सिद्धि प्रदाता का वर प्रदान किया| गणेशजी की आकृति विचित्र है, किन्तु इस आकृति के आध्यात्मिक संकेतों के रहस्य को यदि समझने का प्रयास किया जाये तो सनातन लाभ प्राप्त हो सकता है|
गणेश भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं, वे सात्विक देवता हैं| वे न केवल भारतीय संस्कृति एवं जीवनशैली के कण-कण में व्याप्त है बल्कि विदेशों में भी घर-कारों-कार्यालयों एवं उत्पाद केन्द्रों में विद्यमान हैं| हर तरफ गणेश ही गणेश छाए हुए है| मनुष्य के दैनिक कार्यों में सफलता, सुख-समृद्धि की कामना, बुद्धि एवं ज्ञान के विकास एवं किसी भी मंगल कार्य को निर्विघ्न सम्पन्न करने हेतु गणेशजी को ही सर्वप्रथम पूजा जाता है, याद किया जाता है| महाराष्ट्र का गणेशोत्सव विशेष रूप से प्रसिद्ध है| हजारों स्थानों पर भारतीय कला और संस्कृति की भिन्न-भिन्न गणेश-छवियों के दर्शन होते हैं| रात्रि में सर्वत्र रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं| अंतिम दिन बड़ी धूमधाम से गणेश-प्रतिमाओं का विसर्जन नदी तटों, सरोवरों अथवा समुद्र में किया जाता है| दिन-प्रतिदिन गणेश चतुर्थी को अधिक से अधिक भव्यता से मनाने का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है|
भारतीय संस्कृति एक ईश्वर की विशाल कल्पना के साथ अनेकानेक देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना से फलती-फूलती रही है| सब देवताओं की पूजा से प्रथम गणपति की पूजा का विधान है| दरअसल गणेश सुख-समृद्धि, वैभव एवं आनंद के अधिष्ठाता हैं| बड़े एवं साधारण सभी प्रकार के लौकिक कार्यों का आरंभ उनके दिव्य स्वरूप का स्मरण करके किया जाता है| व्यापारी अपने बही-खातों पर ‘श्री गणेशाय नमः’ लिख कर नये वर्ष का आरंभ करते हैं| प्रत्येक कार्य का शुभारंभ गणपति पूजन एवं गणेश वंदना से किया जाता है| विवाह का मांगलिक अवसर हो या नए घर का शिलान्यास, मंदिर में मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा का उत्सव हो या जीवन में षोड्स संस्कार का प्रसंग, गणपति का स्मरण सर्वप्रथम किया जाता है| स्कंद पुराण के अनुसार जो भक्ति-पूर्वक गणेश की पूजा-अर्चना करता है, उसके सम्मुख विघ्न कभी नहीं आते| गणपति गणेश अथवा विनायक सभी शब्दों का अर्थ है देवताओं का स्वामी अथवा अग्रणी|
गणेशजी की सम्पूर्ण शारीरिक रचना के पीछे भगवान शिव की व्यापक सोच रही है| एक कुशल, न्यायप्रिय एवं सशक्त शासक एवं देव के समस्त गुण उनमें समाहित किये गये हैं| गणेशजी का गज मस्तक हैं अर्थात वह बुद्धि के देवता हैं| वे विवेकशील हैं| उनकी स्मरण शक्ति अत्यन्त कुशाग्र हैं| हाथी की भ्रांति उनकी प्रवृत्ति प्रेरणा का उद्गम स्थान धीर, गंभीर, शांत और स्थिर चेतना में है| हाथी की आंखें अपेक्षाकृत बहुत छोटी होती हैं और उन आँखों के भावों को समझ पाना बहुत कठिन होता है| दरअसल गणेश तत्ववेत्ता के आदर्श रूप हैं| गण के नेता में गुरुता और गंभीरता होनी चाहिए| उनके स्थूल शरीर में वह गुरुता निहित है| उनका विशाल शरीर सदैव सतर्क रहने तथा सभी परिस्थितियों एवं कठिनाइयों का सामना करने के लिए तत्पर रहने की भी प्रेरणा देता है| उनका लंबोदर दूसरों की बातों की गोपनीयता, बुराइयों, कमजोरियों को स्वयं में समाविष्ट कर लेने की शिक्षा देता है तथा सभी प्रकार की निंदा, आलोचना को अपने उदर में रख कर अपने कर्तव्य पथ पर अडिग रहने की प्रेरणा देता है| छोटा मुख कम, तर्कपूर्ण तथा मृदुभाषी होने का द्योतक है| गणेश का व्यक्तित्व रहस्यमय हैं, जिसे पढ़ पाना एवं समझ पाना हर किसी के लिये संभव नहीं है| शासक भी वही सफल होता है जिसके मनोभावों को पढ़ा और समझा न जा सके| इस प्रकार अच्छा शासक वही होता है जो दूसरों के मन को तो अच्छी तरह से पढ़ ले परन्तु उसके मन को कोई न समझ सके| दरअसल वे शौर्य, साहस तथा नेतृत्व के भी प्रतीक हैं| उनके हेरांब रूप में युद्धप्रियता का, विनायक रूप में यक्षों जैसी विकरालता का और विघ्नेश्वर रूप में लोकरंजक एवं परोपकारी स्वरूप का दर्शन होता है| गण का अर्थ है समूह्| गणेश समूह के स्वामी हैं इसीलिए उन्हें गणाध्यक्ष, लोकनायक, गणपति आदि नामों से पुकारा जाता है|
गज मुख पर कान भी इस बात के प्रतीक हैं कि शासक जनता की बात को सुनने के लिए कान सदैव खुले रखें| यदि शासक जनता की ओर से अपने कान बंद कर लेगा तो वह कभी सफल नहीं हो सकेगा| शासक को हाथी की ही भांति शक्तिशाली एवं स्वाभिमानी होना चाहिए| अपने एवं परिवार के पोषण के लिए शासक को न तो किसी पर निर्भर रहना चाहिए और न ही उसकी आय के स्रोत ज्ञात होने चाहिए| हाथी बिना झुके ही अपनी सूँड की सहायता से सब कुछ उठा कर अपना पोषण कर सकता है| शासक को किसी भी परिस्थिति में दूसरों के सामने झुकना नहीं चाहिए| गणेशजी के पैर छोटे हैं जो कर्मेन्द्रिय के सूचक और सत्व गुणों के प्रतीक हैं| मूषक गणपति का वाहन है जो चंचलता एवं दूसरों की छिद्रान्वेषण की प्रवृत्ति को नियंत्रित करने का प्रेरक है| गणेशजी की चार भुजाएँ चार प्रकार के भक्तों, चार प्रकार की सृष्टि और चार पुरुषार्थों का ज्ञान कराती है|
गणेशजी को प्रथम लिपिकार माना जाता है उन्होंने ही देवताओं की प्रार्थना पर वेद व्यासजी द्वारा रचित महाभारत को लिपिबद्ध किया था| अनंतकाल से अनेक नामों से गणेश दुख, भय, चिन्ता इत्यादि विघ्न के हरणकर्ता के रूप में पूजित होकर मानवों का संताप हरते रहे हैं| वर्तमान काल में स्वतंत्रता की रक्षा, राष्ट्रीय चेतना, भावनात्मक एकता और अखंडता की रक्षा के लिए गणेशजी की पूजा और गणेश चतुर्थी के पर्व का उत्साहपूर्वक मनाने का अपना विशेष महत्व है|
ऋद्धि-सिद्धि गणेशजी की पत्नियॉं हैं| वे प्रजापति विश्वकर्ता की पुत्रियां हैं| गणेश की पूजा यदि विधिवत की जाए, तो इनकी पतिव्रता पत्नियां ऋद्धि-सिद्धि भी प्रसन्न होकर घर-परिवार में सुख-शांति-समृद्धि और संतान को निर्मल विद्या-बुद्धि देती है| ‘सिद्धि से क्षेम’ और ‘ऋद्धि से लाभ’ नाम के शोभा सम्पन्न दो पुत्र हुए| जहां भगवान गणेश विघ्नहर्ता हैं तो उनकी पत्नियां ऋद्धि-सिद्धि यशस्वी, वैभवशाली व प्रतिष्ठित बनाने वाली होती है| वहीं शुभ-लाभ हर सुख-सौभाग्य देने के साथ उसे स्थायी और सुरक्षित रखते हैं| जन-जन के कल्याण, धर्म के सिद्धान्तों को व्यावहारिक रूप प्रदान करने एवं सुख-समृद्धि-निर्विघ्न शासन व्यवस्था स्थापित करने के कारण ही गणेशजी की मानव-जाति सदा ऋणी रहेगी| आज के शासनकर्ताओं को गणेश के पदचिन्हों पर चलने की जरूरत है|